आईपीओ कंपनियों के सफर में एक अहम पड़ाव है। इससे कंपनी प्राइवेट से पब्लिक बन जाती है। बड़े आईपीओ मीडिया के फोकस में रहते हैं, लेकिन स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइज (एसएमई) आईपीओ से आर्थिक लोकतंत्र का माहौल बना है। इससे छोटी कंपनियों की पहुंच पूंजी बाजार तक बनी है।
आर्टिफिशियल ओवरसब्सक्रिप्शन बड़ी समस्या
हालांकि, इस ग्रोथ के साथ एक समस्या भी पैदा हुई है, जो आर्टिफिशियल ओवरसब्सक्रिप्शन का है। इसके पीछे कर्ज लेकर निवेश करने वाले रिटेल इनवेस्टर्स, स्पेकुलेटिव विहेबियर और इंटरमीडियरीज के प्रैक्टिसेज हैं, जिन पर सवाल पैदा होता है। इससे आईपीओ पेश करने का मकसद पीछे रह जाता है और इश्यू पूंजी जुटाने के माध्यम की जगह स्पेकुलेटिव इंस्ट्रूमेंट्स बनकर रह जाते हैं।
उधार के पैसे से निवेश से इश्यू हो रहे ओवरसब्सक्राइब्ड
एसएमई आईपीओ में दिलचस्पी की वजह इसकी एक्सेसिबिलिटी रही है। इसमें टिकट साइज छोटा होता है और तेज ग्रोथ की संभावना होती है। इसलिए फटाफट मुनाफा कमाने के लिए रिटेल इनवेस्टर्स इसमें इनवेस्ट करते हैं। हालांकि, यह आसान पहुंच दोधारी तलवार बन गई है। रिटेल इनवेस्टर्स उधार के पैसे या फिनेटक के जरिए मिलने वाले फाइनेंस के जरिए निवेश कर इश्यू की डिमांड बढ़ा देते हैं। आम तौर पर ओवरसब्सक्रिप्शन इनवेस्टर्स के आत्मविश्वास का संकेत है। लेकिन, इसका इस्तेमाल मार्केट में आर्टिफिशियल डिमांड पैदा करने के लिए हो रहा है।
एक इनवेस्टर कई अकाउंट्स के जरिए अप्लाई करता है
यह मैनिपुलेशन चिंता पैदा करती है। लिस्टिंग गेंस का फायदा उठाने के लिए रिटेल इनवेस्टर्स अक्सर कर्ज लेकर या थर्ड-पार्टी फंडिंग से बड़ी संख्या में शेयरों के लिए अप्लाई करते हैं, जो उनकी वित्तीय क्षमता के बाहर होती है। कई इनवेस्टर्स परिवार के सदस्यों के अकाउंट का इस्तेमाल कर कई अपल्किकेशंस डालते हैं। हालांकि, ऐसा करने पर रोक है।
आम निवेशक ओवरसब्सक्रिप्शन के पीछे का खेल समझ नहीं पाता
मर्चेंट बैंकर्स ओवरसब्सक्रिप्शन को इश्यू की सफलता के रूप में पेश करते हैं। इससे ज्यादा कंपनियां आईपीओ पेश करने के लिए अट्रैक्ट होती हैं। इससे डिमांड के मामले में एक ऐसी तस्वीर बन जाती है जो सच नहीं होती। बहुत ज्यादा सब्सक्रिप्शन के डेटा को देश एक आम इनवेस्टर यह समझ बैठता है कि आईपीओ में निवेशक ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
आम निवेशक स्टॉक क्रैश करने के बाद फंस जाते हैं
इस आर्टिफिशियल डिमांड के दूरगामी नतीजें होते हैं। लिस्टिंग के बाद कर्ज लेकर इनवेस्ट करने वाले इनवेस्टर्स तो शेयरों को बेच देते हैं, क्योंकि उन्हें अपना कर्ज चुकाना होता है। इससे शेयर की कीमतों में काफी ज्यादा उतारचढ़ाव दिखता है। शुरुआती तेजी के बाद कई एसएमई आईपीओ में शेयरों की कीमतें कुछ हफ्तों बाद क्रैश कर जाती हैं। इससे रिटेल इनवेस्टर्स (लॉस की वजह से) फंस जाता है।
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आईपीओ के असली मकसद को पहुंच रहा नुकसान
इससे न सिर्फ एसएमई आईपीओ सेगमेंट पर भरोसा घट रहा है बल्कि कंपनियों को भी नुकसान हो रहा है, जिनकी पहले बहुत ज्यादा वैल्यूएशन की उम्मीद की जाती है और फिर ऐसे ग्रोथ के लिए दबाव होता है, जो मुमकिन नहीं होती है। बार-बार ऐसा होने का असर उन निवेशकों पर पड़ता है, जो सही मकसद से एसएमई आईपीओ में निवेश करते हैं। इससे एसएमई आईपीओ में लिक्विडिटी घटनी शुरू हो जाती है, जिससे आईपीओ पेश करने के असल मकसद को बड़ी चोट लगती है। आईपीओ का असल मकसद ग्रोथ के लिए लंबी अवधि की पूंजी जुटाना है।