WeWork India IPO: प्रॉक्सी एडवायजरी फर्म इनगवर्न (InGovern) ने वीवर्क इंडिया के आईपीओ को लेकर सवाल उठाए हैं। इनगवर्न ने यह सवाल ऐसे समय में उठाए हैं, जब एंकर निवेशकों से तगड़े रिस्पांस के बाद इश्यू खुलने पर इसे निवेशकों का फीका रिस्पांस मिला। प्रॉक्सी एडवायजरी फर्म के फाउंडर श्रीराम सुब्रमणियन ने मनीकंट्रोल से बातचीत में कहा कि आईपीओ का पूरी तरह से पूरी तरह से ऑफर फॉर सेल होना और लिस्टिंग के पहली की शर्तों से प्रमोटर के इरादे, वित्तीय स्थिरता और निगरानी पर सवाल उठते हैं। ऑफर फॉर सेल का मतलब है कि इश्यू के तहत कोई नया शेयर नहीं जारी होगा।
वीवर्क इंडिया के ₹3,000 करोड़ के आईपीओ के लिए प्राइस बैंड ₹615-₹648 है। इसके तहत ₹10 की फेस वैल्यू वाले 4.63 करोड़ शेयरों की बिक्री हुई जिसमें से करीब 45% आईपीओ खुलने से पहले एंकर निवेशकों को जारी हुए। एंकर निवेशकों से कंपनी ने ₹1348 करोड़ जुटाए थे।
क्या हैं WeWork India IPO को लेकर चिंताएं?
इनगवर्न ने एक सवाल तो आईपीओ से पहले कंपनी के प्रमोटर्स के गिरवी रखे शेयरों को छुड़ाने को लेकर उठाया है। Embassy Buildcon ने कंपनी के प्री-आईपीओ शेयरों का 53% हिस्सा करीब ₹2065 करोड़ के कर्ज के लिए गिरवी रखा है लेकिन आईपीओ के लिए इसे अस्थायी तौर पर छुड़ाया गया है। इसे लेकर एक एग्रीमेंट हुआ है कि अगर लिस्टिंग नहीं होती है तो 45 दिनों के भीतर शेयरों को फिर गिरवी रखा जाएगा। इनगवर्न का कहना है कि ऐसे मामले कम ही सामने आए हैं, जब सिर्फ ऑफर फॉर सेल के लिए गिरवी रखे शेयरों को अस्थायी तौर पर छुड़ाया गया हो। फाउंडर श्रीराम सुब्रमणियन का कहना है कि इसके चलते प्रमोटर्स की होल्डिंग लिस्टिंग से पहले बिना किसी प्रतिबंध के दिखती है लेकिन बाद में जब इन्हें फिर गिरवी रखना पड़ता है या कर्ज चुकाने में देरी होती है तो फिर से रिस्क की स्थिति बन जाती है।
प्रॉक्सी एडवायजरी फर्म इनगवर्न ने लगातार ऑपरेटिंग लॉस को लेकर भी चिंता जताई है। फाउंडर श्रीराम का कहना है कि कंपनी लगातार ऑपरेटिंग लेवल पर घाटे में है और लीज एग्रीमेंट व्यावहारिक रूप से कर्ज की तरह हैं। उनका कहना है कि घाटे में चल रही कोई कंपनी जब ऑफर फॉर सेल लाती है और प्रमोटर्स इसे डीलेवरेज के तौर पर इस्तेमाल करते हैं तो यह चिंता की बात है। फाइलिंग के मुताबिक कंपनी के वित्त वर्ष 2025 के रेवेन्यू का करीब 43% हिस्सा लीज पेमेंट में चला गया और इसे जो थोड़ा मुनाफा हुआ, वह डेफर्ड टैक्स गेन से था।
इनगवर्न ने ऑडिट को लेकर भी सवाल उठाए हैं। प्रॉक्सी एडवायजरी फर्म का कहना है कि बार-बार ऑडिट की जरूरत बोर्ड की कमजोर निगरानी को दिखाता है। इनगवर्न के रिव्यू में वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2024 में कमजोर वेंडर डॉक्यूमेंटेशन और संबंधित पक्षों की पारदर्शिता इत्यादि में अंदरुनी तौर पर नियंत्रण में कमियां पाई गईं। श्रीराम का कहना है कि इन्हें लेकर कंपनी ने क्या किया, इसे लेकर आईपीओ के रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में कोई जानकारी नहीं दी गई है। उनका कहना है कि लिस्टिंग के बाद रेगुलेटर्स को देखना होगा कि बोर्ड अपनी निगरानी मजबूत करता है या नहीं।
श्रीराम ने प्रमोटर से जुड़े मुकदमों को लेकर भी सवाल उठाए हैं। कंपनी के प्रमोटर्स के खिलाफ सीबीआई, ईडी और भ्रष्टाचार थामने वाले कानून के तहत कई कार्यवाही अभी पेंडिंग है। इनगवर्न के फाउंडर्स ने कहा कि दिक्कतों से जूझ रही कंपनियों को भी रेगुलेशन (6) के तहत आईपीओ लाने की मंजूरी सेबी देती है तो अब यह जिम्मेदारी निवेशकों की है कि वह सतर्क रहें।
इनगवर्न के फाउंडर ने ब्रांड पर निर्भरता को लेकर भी चिंता जताई। उनका कहना है कि वीवर्क इंडिया का वीवर्क ग्लोबल से 99 साल का लाइसेंस प्रमोटर्स के नियंत्रण और कंप्लॉयंस पर निर्भर है। अगर किसी भी प्रमोटर पर किसी भी मामले में आरोप साबित होते हैं या बदलाव होता है तो ब्रांड राइट्स को झटका लग सकता है और कंपनी के अस्तित्व पर भी असर पड़ सकता है।
6-7 अक्टूबर के लिए खुले वीवर्क इंडिया के आईपीओ के एंकरबुक में इश्यू खुलने से पहले 67 एंकर निवेशकों ने हिस्सा लिया। इसकी लिस्टिंग 10 अक्टूबर को होनी है। इनगवर्न के फाउंडर का कहना है कि अगर कोई शिकायत है तो लिस्टिंग का मतलब जांच खत्म हो जाना नहीं है। उन्होंने निवेशकों को सलाह दी है कि अगर शेयर लिस्ट होते हैं तो लिस्टिंग के बाद निवेशकों को चार बातों पर ध्यान देना चाहिए- ऑडिट क्वालिफिकेशन का समाधान हुआ या नहीं, प्रमोटर ने लिस्टिंग के बाद शेयरों को फिर से गिरवी रखा या नहीं, नुकसान की भरपाई कैसे हो रही है और प्रमोटर्स के खिलाफ मुकदमों पर क्या हो रहा है।
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