JDU सुप्रीमो नीतीश कुमार अबकी बार NDA का नहीं छोड़ेंगे साथ

पिछले साल जनवरी में भाजपा हाईकमान ने विरोध के बावजूद JDU को NDA में शामिल करके एक दूरदर्शिता का परिचय दिया गया था

अपडेटेड Jun 04, 2024 पर 8:13 PM
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बिहार में NDA को इतनी अधिक सीटें मिलने का एक बड़ा कारण यह रहा कि नीतीश कुमार का वोट बैंक का लाभ भाजपा यानी NDA को मिला

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की छवि ने मिलकर लोक सभा चुनाव में बिहार में संजीवनी का काम कर दिया। विपरीत हालात के बावजूद NDA ने बिहार में भारी चुनावी सफलता हासिल की। अब जब एक बार देश मिली जुली सरकार के दौर में प्रवेश कर रहा है, जदयू का सहयोग भाजपा के लिए और केंद्र की अगली सरकार के लिए मजबूत आधार बनेगा। JDU प्रवक्ता के.सी.त्यागी ने साफ शब्दों में कहा है कि जदयू NDA के साथ ही बना रहेगा।

पिछले जनवरी में जब एक बार फिर नीतीश कुमार का दल NDA में शामिल हुआ था तो भाजपा के भीतर और बाहर के कई नेताओं ने भाजपा के नेतृत्व के निर्णय को अच्छा नहीं माना था। कहा गया था कि नीतीश कुमार विश्वसनीय नेता नहीं हैं और उनका जनाधार भी कम हुआ है। पर, इस लोक सभा चुनाव के नतीजों से दोनों बातें गलत साबित हुई हैं।

बिहार में NDA को इतनी अधिक सीटें मिलने का एक बड़ा कारण यह रहा कि नीतीश कुमार का वोट बैंक का लाभ भाजपा यानी NDA को मिला। JDU ने यह भी कहा है कि हम NDA में ही बने रहेंगे। इस दृष्टि से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का वह निर्णय सही साबित हुआ जिसके तहत उसने नीतीश कुमार को पिछले जनवरी में एक बार फिर अपना लिया और मुख्यमंत्री बनाये रखा।


बिहार में NDA के दूसरे मजबूत स्तम्भ साबित हुए चिराग पासवान जिन्हें अपने पिता दिवंगत रामविलास पासवान का पूरा वोट बैंक उत्तराधिकार में मिल गया है। रामविलास पासवान के भाई और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस का यह दावा अंततः गलत साबित हुआ कि राम विलास पासवान का वोट बैंक उनके ही पास है। पारस का दावा रहा है कि बड़े भाई ने छोटे भाई को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी माना था।

दूसरी तरफ बिहार में लालू प्रसाद ने भी अपने दल RJD के साथ I.N.D.I.A ब्लॉक में कांग्रेस के अलावा VIP और कम्युनिस्ट दलों को भी जोड़ा। लालू प्रसाद राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। उनके पुत्र तेजस्वी यादव भी अच्छा कर रहे हैं। लालू के नेतृत्व वाले इस मजबूत प्रतिपक्ष के मुकाबले के लिए इस लोक सभा चुनाव से पूर्व बिहार राजग ने भी कई दलों को अपने साथ जोड़ा। प्रदेश राजग ने उसमें पूर्व मुख्य मंत्री जीतन राम मांझी के दल, पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी और लोजपा (रामविलास) को मिलाकर गठबंधन खड़ा किया।

नतीजतन NDA को आसपास के राज्यों पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश की अपेक्षा बिहार में इस लोस चुनाव में भारी चुनावी सफलता मिली। हालांकि यह सफलता सन 2019 के लोस चुनाव में बिहार में राजग को मिली सफलता के मुकाबले फीकी सफलता ही रही। सन 2019 में बिहार में राजग को कुल 40 लोस सीटों में से 39 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को एक सीट मिली। RJD कोई सीट नहीं जीत सकी थी।

अब सबकी नजरें JDU के प्रमुख और मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के अगले राजनीतिक कदम की तरफ है। अनुमान के घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं। मीडिया के एक हिस्से में इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा रहा है कि अगली मिलीजुली सरकार के पार्टनर के रूप में नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कितने मुद्दों पर सहमति बनेगी और कितनों पर मतभेद सामने आएगा? क्या केंद्र सरकार का कोई न्यूनतम कार्यक्रम बनेगा? क्या NDA के भावी राष्ट्रीय संयोजक की कैसी भूमिका रहेगी? आने वाले समय इन सवालों का जवाब देंगे।

Surendra Kishore

Surendra Kishore

First Published: Jun 04, 2024 8:06 PM

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