Meerut Loksabha Election: क्या 'राम' अरुण गोविल मेरठ की अग्नि परीक्षा पार कर पाएंगे!
मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटकर बीजेपी ने जब अरुण गोविल को मैदान में उतारा तो विपक्षियों के सामने एक संकट जरूर आया कि वह गोविल के खिलाफ किसको मैदान में उतारे। अरुण गोविल के मैदान में उतरने से समाजवादी पार्टी तो इस कदर असमंजस में पड़ी कि उसे दो बार प्रत्याशी बदलने पड़े और फिर जब तीसरा नाम घोषित हुआ तब भी यह आशंका रही कि कहीं सपा प्रत्याशी को फिर से तो बदलेगी तो नहीं
Loksabha elections 2024: अरुण गोविल के सामने क्या BSP और समाजवादी पार्टी के नेता टिक पाएंगे. जानिए कैसा होगा मुकाबला
Meerut Lok sabha Election 2024: रामायण के राम अरुण गोविल मेरठ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में है । वह जहां जाते हैं लोग उनसे लपक कर मिलना चाहते हैं। कुछ लोग उनके पैर छूना चाहते हैं । कुछ महिलाएं और युवा सेल्फी लेना चाहती हैं। रामायण को दूरदर्शन पर आए तीन दशक से ज्यादा हो चुका है लेकिन अरुण गोविल का क्रेज बरकरार है। यह अलग बात है की विपक्षी उन पर हमला करते हैं और उन्हें बाहर का बताते हैं। विपक्षी कुछ भी कहें लेकिन अरुण गोविल के मैदान में उतरने से वे आशंकित भी है। इसीलिए विपक्षी नेता उन्हें नाटक का राम बताते हैं।
मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटकर बीजेपी ने अरुण गोविल को मैदान में उतारा। जब भाजपा नेतृत्व में अरुण गोविल का नाम प्रत्याशी के रूप में घोषित किया तो विपक्षियों के सामने एक संकट जरूर आया कि वह गोविल के खिलाफ किसको मैदान में उतारे। वास्तव में अरुण गोविल मेरठ के ही रहने वाले हैं। अरुण गोविल के मैदान में उतरने से समाजवादी पार्टी तो इस कदर असमंजस में पड़ी कि उसे दो बार प्रत्याशी बदलने पड़े और फिर जब तीसरा नाम घोषित हुआ तब भी यह आशंका रही कि कहीं सपा प्रत्याशी को फिर से तो बदलेगी तो नहीं।
बहुजन समाज पार्टी इस सीट पर देव व्रत त्यागी को मैदान में उतारा है। वह बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जबकि समाजवादी पार्टी ने सबसे पहले भानु प्रताप सिंह को टिकट दिया। बाद में भानू प्रताप सिंह का टिकट भी बदल दिया और सरधना के विधायक अतुल प्रधान को प्रत्याशी बना दिया। लेकिन अतुल प्रधान का भी टिकट भी काट दिया गया और फिर मेरठ की पूर्व मेयर सुनीता वर्मा को प्रत्याशी बनाया। अब सुनीता वर्मा पर सपा उम्मीद लगाए बैठी है कि वह पार्टी की झोली में यह सीट डाल देगी।
समाजवादी पार्टी के लिए आसान नहीं चुनौती!
लेकिन सपा के लिए चुनौती आसान नहीं है । वास्तव में सुनीता वर्मा हस्तिनापुर के पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी है। वे दलित नेता है और पहले पति-पत्नी दोनों बहुजन समाज पार्टी में थे। सुनीता वर्मा को बहुजन समाज पार्टी ने मेयर का टिकट दिया था और वह दलित मुस्लिम समीकरण के बल पर मेरठ की मेयर बन गई थी और सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने यह मानकर उन्हें टिकट दे दिया है कि दलित वोट सुनीता वर्मा के पाले में आएगा ही और साथ ही मुस्लिम वोट भी मिल जाएगा। सुनीता वर्मा आसानी से सीट निकाल लेगी।
लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है और यह सीट सुनीता वर्मा के लिए बहुत कठिन है । इसके कई कारण भी है । वास्तव में इस बार मायावती के साथ उनका पुराना सजातीय वोट पूरी तरह जुड़ चुका है और उनकी सभाओं में भारी भीड़ भी इकट्ठा हो रही है। इसलिए सुनीता वर्मा को दलित वोट मिल पाएगा इसमें संदेह है। मेरठ के ही मेवाराम जाटव कहते हैं कि वह बहन जी को जानते हैं। हाथी चुनाव निशान जानते हैं। सुनीता वर्मा को इसीलिए मेयर के चुनाव में वोट दिया था क्योंकि वह हाथी चुनाव चिन्ह पर आई थी । इस बार उन्हें वोट नहीं मिलेगा।
समाजवादी पार्टी से क्यों नाराज हुए गुर्जर वोटर
दूसरी ओर अतुल प्रधान का टिकट कटने के बाद गुर्जर वोटर भी सपा से नाराज हो चुका है। समाजवादी पार्टी के एक कार्यकर्ता कहते हैं की नेतृत्व ने टिकट देने में गलती कर दी है। उसे बार-बार टिकट नहीं बदलना चाहिए था और यह उम्मीद लगाना बहुत ही गलत है कि दलित वोट सपा की झोली में आ जाएगा। कुरुवंश की राजधानी हस्तिनापुर इसी जिले में है। जहां पर महाभारत की नीव पड़ी थी। मेरठ से ही 30 किलोमीटर दूर हस्तिनापुर में ही कौरवों और पांडवों ने शासन किया था। जैनियों का पवित्र तीर्थ भी हस्तिनापुर ही है।
हस्तिनापुर वही शहर है जहां पर 1857 की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई की शुरुआत हुई थी। अपने तमाम इतिहास को समेटे यह शहर राजनीतिक रूप से भी विशिष्ट रहा । वास्तव में मेरठ आने वाले लोग हस्तिनापुर को पहले देखना चाहते हैं। यहां हुई खुदाई में महाभारत कालीन वस्तुएं मिली है। गंगा तट पर बसे हस्तिनापुर का जिक्र आईने अकबरी में भी है। लेकिन फिलहाल यहां पर चुनावी लड़ाई जोर-जोर से चल रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां एक बड़ी रैली की थी। बहुजन समाज पार्टी मुसलमान मतदाताओं को यह गणित बता रही है जिससे चलते उसका दावा है कि वह चुनाव जीत रही है और भाजपा को हरा देगी। बीएसपी नेताओ के अनुसार देवव्रत त्यागी के बीएसपी प्रत्याशी होने के कारण त्यागी समाज का वोट उन्हें मिल रहा है। दलित समाज का वोट भी बीएसपी को मिल रहा है। अब यदि मुस्लिम मतदाता भी हाथी को वोट दे दें तो भाजपा को हराया जा सकता है।
BSP को वोटर का साथ मिलेगा या नहीं?
लेकिन मेरठ के ही रमेश त्यागी कहते हैं कि 10 से 15 प्रतिशत त्यागी वोट ही मायावती के प्रत्याशी को मिलेगा इससे ज्यादा नहीं। ज्यादा वोट बीजेपी में जा रहा है। लेकिन समाजवादी पार्टी के नेता यह प्रचार कर रहे हैं की बहुजन समाज पार्टी भाजपा से मिली हुई है और मुसलमान अपना वोट उसको ना दें। फिलहाल यहां पर मुसलमान सपा के पक्ष में ही दिख रहे हैं और बसपा के सामने दिक्कत यही है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री याकूब कुरैशी लगातार सुनीता वर्मा पर यह कहकर हमला बोल रहे हैं कि जब वह मेयर थी तो उन्होंने मेरठ के मुस्लिम क्षेत्रों की ओर ध्यान ही नहीं दिया। अब वोट मांगने आ गई है। लेकिन समाजवादी पार्टी के नेता याकूब कुरैशी पर हमला करते हैं और कहते हैं कि वह बीजेपी के इशारे पर इस तरह बयान दे रहे हैं। मेरठ के ही अमजद मियां कहते हैं की मुसलमान साइकिल के साथ जा रहा है। क्या बसपा के साथ नहीं जा रहा? वह कहते हैं कि लगता नहीं है।
लेकिन सपा के सामने भी दिक्कतें बहुत हैं और अब पार्टी के तमाम कार्यकर्ता यह महसूस कर रहे हैं कि प्रत्याशी बदलने का गलत असर हुआ है। सपा सिर्फ मुस्लिम वोटो के सहारे अटकी हुई है। उसने दलित वोटो की आस में प्रत्याशी बदले। वह दलित वोट उसे नहीं मिल रहा है। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है उसके सामने भी कम चुनौतियां नही है। क्षत्रिय पंचायत हुई है और उसमें बीजेपी का विरोध किया गया है । लेकिन इसका जमीन में असर कम दिखता है।
मेरठ के ही निलेश सोम कहते हैं की अब उनके जाति नेताओं ने पंचायत बुलाई है तो उसमें जाना जरूरी होता है। लेकिन कोई किसी के कहने से वोट नहीं देता है। मेरी मर्जी है मैं जहां भी चाहूं वोट दूं । पंचायत के कहने पर वोट नहीं मिलेगा वह बेमकसद प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय लड़ाई हो रही है और बसपा की कोशिश है कि इस त्रिकोणीय ही बनाए रखें। सपा इस चुनावी लड़ाई को बीजेपी के खिलाफ सीधी लड़ाई में बदल देना चाहती है। वह संभव नहीं दिख रही है।