Hindenburg Effect: बाजार नियामक सेबी (SEBI) ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (FPIs) को लेकर एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया है। इसमें देश में 25 हजार करोड़ रुपये से अधिक की इक्विटी होल्डिंग वाले विदेशी निवेशकों को ज्यादा जानकारी देनी होगी। सेबी के इस कदम का मकसद न्यूनतम पब्लिक शेयरहोल्डिंग से जुड़े नियमों में गड़बड़ी को रोकना है। इसके अलावा सेबी ने यह नियम इसलिए तैयार किया है ताकि भारतीय कंपनियों के टेकओवर के लिए FPI रूट के गलत इस्तेमाल को रोका जा सके। सेबी के इस पेपर के मुताबिक हाई रिस्क वाले FPIs की पहचान के लिए पारदर्शिता के मानकों को बढ़ाए जाने की जरूरत है।
इन्हें हाई, मॉडेरेट और लो रिस्क की कैटेगरी में बांटा जाएगा। जिन FPIs की एक ही कॉरपोरेट ग्रुप में 50 फीसदी से अधिक इक्विटी एयूएम (एसेट अंडर मैनेजमेंट) है, उन्हें अतिरिक्त खुलासे करने होंगे। इस पेपर पर सेबी ने 20 जून 2023 तक प्रतिक्रियाएं मंगाया है।
एक ही ग्रुप में निवेश करने से क्या है रिस्क
सेबी के मुताबिक कुछ FPIs अपने इक्विटी पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा एक ही कंपनी या एक ग्रुप में रखते हैं। कुछ मामलों में तो यह होल्डिंग लॉन्ग टाइम तक बनी रहती है। इस प्रकार के निवेश से आशंका बढ़ती है कि कॉरपोरेट ग्रुप एफपीआई के रास्ते से मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग के नियमों को पूरा करने की कोशिश कर रहा है।
इससे दिक्कत ये है कि लिस्टेड कंपनी में जो फ्री फ्लोट दिख रहा है, वह वास्तविक नहीं है और इससे इस प्रकार के शेयरों में स्टॉक मैनिपुलेशन की आशंका बढ़ जाती है। सेबी के पेपर के मुताबिक एफपीआई को अतिरिक्त खुलासे पर 6 महीने के भीतर किसी ग्रुप में 50 फीसदी से अधिक होल्डिंग रखने की मंजूरी दी जाएगी। हालांकि जो मौजूदा एफपीआई हैं, अगर वे अपना निवेश घटा रहे हैं तो उन्हें अतिरिक्त खुलासे की जरूरत नहीं पड़ेगी।
Hindenburg का क्या है एंगल
24 जनवरी को अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग ने अदाणी ग्रुप की कंपनियों पर स्टॉक मैनिपुलेशन का आरोप लगाया था। अदाणी ग्रुप ने इन सभी आरोपों से इनकार किया था लेकिन ग्रुप की कंपनियों के शेयर झटके को संभाल नहीं सके और औंधे मुंह गिर पड़े। हिंडनबर्ग का आरोप था कि ग्रुप की कंपनियों ने ऑफशोर फंड्स के जरिए अपनी ही कंपनियों में निवेश किया और मनचाहे तरीके से शेयरों को मैनिपुलेट किया।
शेयरों के मैनिपुलेशन को रोकने के लिए सेबी ने यह प्रस्ताव पेश किया है कि सभी हाई-रिस्क फंड्स को अब इकनॉमिक और कंट्रोलिंग राइट्स वाले सभी होल्डर्स का खुलासा करना होगा। सरकारी फंड, सोवरेन वेल्थ फंड्स, पेंशन फंड्स और पब्लिक रिटेल फंड्स के अलावा बाकी सभी फंड्स को हाई-रिस्क ऑफशोर फंड्स माना जाएगा।