मार्सेलस में ग्लोबल इक्विटीज़ के हेड अरिंदम मंडल का कहना है कि नौकरियों पर AI के असर से लॉन्गटर्म में रोजगार और आर्थिक विकास के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। अगर जीएसटी कटौती लागू हो जाती है तो आर्थिक विकास में तेज़ी की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि, उनका मानना है कि ग्रोथ के लिए सबसे बड़ी दीर्घकालिक चुनौती रोज़गार है।
मनीकंट्रोल को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा,"मांग में तेज़ी को निरंतर विकास में बदलने के लिए,हमें बड़े पैमाने पर रोज़गार उपलब्ध करवाना होगा है। हालांकि, एआई कुछ सेक्टरों में भर्ती के पैटर्न में बदलाव ला रहा है। इसके चलते लंबी अवधि में हमें रोजगार सृजन के मोर्चे पर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।"
उन्होंने आगे कहा कि देश में होने वाले विदेशी निवेश का अमेरिकी रियल यील्ड,डॉलर की स्थिति और अर्निंग्स के साथ सीधा संबंध है। उन्होंने कहा,"अगर अमेरिकी बॉन्ड यील्ड कम होती है और भारत की अर्निंग स्थिर रहती है,तो FIIs भारत-अमेरिका व्यापार संबंधी अनसुलझे मुद्दों के बावजूद फिर से हमारे बाजारों की ओर रुख कर सकते हैं।"
अरिंदम मंडल को लगता है कि अमेरिका में मॉनिटरी कमेटी के रुख में नरमी कायम रह सकती है। लेकिन यह सब कुछ आंकड़ों पर निर्भर करेगा। अगली दो बैठकों में 25 बेसिस प्वाइंट की एक और कटौती हो सकती है। अगर कोर सर्विसेज की महंगाई में कमी जारी रहती है और लेबर मार्केट में और नरमी आती है, तो एक और कटौती भी संभव है। लेकिन अगर महंगाई में कमी आती है और ग्रोथ में स्थिरता दिखती है तो दरों में कटौती पर विराम लग सकता है।
अगर अमेरिका-भारत टैरिफ मुद्दा हल हो जाता है तो क्या बाजार में नया रिकॉर्ड हाई देखने को मिल सकता है? इसके जवाब में अरिंदम मंडल ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो बाजार के लिए सबसे बड़ी बाधा दूर हो जाएगी ओर रिस्क प्रीमियम कम हो जाएगा। टैरिफ मुद्दे के हल होने से सबसे ज़्यादा फायदा ऑटो, केमिकल,टेक्सटाइल और रिन्यूएबल एनर्जी से जुड़े एक्सपोर्ट ओरिएंटेड शेयरों को होगा। बाजार में टिकाऊ ग्रोथ और इसके नई ऊंचाइयों पर पहुंचने के लिए अकेले टैरिफ में कटौती पर्याप्त नहीं होगी। इसके लिए अर्निंग्स में ग्रोथ और ग्लोबल ब्याज दरों से भी सपोर्ट की जरूरत होगी।
क्या आपको लगता है कि भारत-अमेरिका व्यापार समस्या का कोई समाधान न होने पर भी, विदेशी संस्थागत निवेशक जल्द ही भारत की तरफ लौटेंगे? इसके जवाब में अरिंदम मंडल ने कहा कि हां वे फिर भी लौट सकते हैं। देश में होने वाले विदेशी निवेश का अमेरिकी रियल यील्ड,डॉलर की स्थिति और अर्निंग्स के साथ सीधा संबंध है। उन्होंने कहा,"अगर अमेरिकी बॉन्ड यील्ड कम होती है और भारत की अर्निंग स्थिर रहती है,तो FIIs भारत-अमेरिका व्यापार संबंधी अनसुलझे मुद्दों के बावजूद फिर से हमारे बाजारों की ओर रुख कर सकते हैं।" भारत का लॉन्ग टर्म आउटलुक काफी अच्छा है। लेकिन महंगा वैल्यूएशन और अर्निंग में मंदी चिंता का विषय रहे हैं। अगर इनमें से किसी एक में भी सुधार होता है,तो हमें विदेशी निवेशकों की वापसी देखने को मिल सकती है।
दूसरे उभरते बाजारों की तुलना में इस साल अब तक काफी पिछड़ने के बाद,उभरते बाजारों की तुलना में भारत का लार्ज-कैप वैल्यूएशन प्रीमियम अब अपने ऐतिहासिक प्रीमियम के करीब दिख रहा है।
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