भले ही तेल की लगातार ऊंची कीमतें और 2024 में आम चुनाव भारतीय बाजारों के लिए दो जोखिम हो सकते हैं, लेकिन इक्विटी में स्ट्रैटेजिक अलोकेशन बनाए रखना एक अच्छी रणनीति होगी। साथ ही बाजार में किसी भी संभावित करेक्शन को कैप्चर करने के लिए कुछ पैसा अलग रखें। यह बात इनवेस्टमेंट बैंक बार्कलेज प्राइवेट बैंक ने कही है। भारतीय इक्विटीज ने एक और वर्ष, साल 2023 में वर्ल्ड मार्केट्स से बेहतर प्रदर्शन किया है, और कोविड 19 के कारण आई गिरावट के बाद भी अपनी ग्रोथ जारी रखी है। बार्कलेज की ओर से सतर्क रहने की सलाह, भारतीय इक्विटीज के लगातार बेहतर प्रदर्शन पर संदेह को दर्शाती है।
बार्कलेज ने अपने आउटलुक 2024 में कहा, "बहुत से सकारात्मक मैक्रोइकोनॉमिक डेवलपमेंट्स का असर पहले से ही कुछ हद तक कीमतों पर दिखने लगा है, और 2023 के सॉलिड प्रदर्शन के बाद निवेशकों को 2024 में अधिक सिलेक्टिव होने की जरूरत हो सकती है। फैक्टर्स, सेक्टर्स, और थीम्स में रोटेशन तेज हो सकता है और ऐसी कंपनियों को चुनना महत्वपूर्ण होगा जो बाजार हिस्सेदारी बढ़ाना जारी रख सकती हैं, प्रॉफिट मार्जिन्स को प्रोटेक्ट कर सकती हैं, स्थायी आय वृद्धि दर्शा सकती हैं और जो उचित वैल्यूएशंस पर उपलब्ध हैं।"
बाजार में अधिकांश लाभ म्यूचुअल फंड के चलते
भारतीय बाजार में अधिकांश लाभ, म्यूचुअल फंड के माध्यम से लगातार घरेलू निवेश के कारण आया है। बार्कलेज का मानना है कि यह ट्रेंड 2024 में भी जारी रह सकता है, जिससे वर्ष के दौरान बाजार को सपोर्ट मिलेगा। एक मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक बैकड्रॉप के बीच वित्त वर्ष 2025 के लिए निफ्टी50 कंपनियों की अनुमानित आय वृद्धि 12-13 प्रतिशत की रेंज में है। यह अपेक्षित नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ से 1-2 प्रतिशत ज्यादा है, जो कि उचित है।
बार्कलेज ने कहा कि वैल्यूएशन के संदर्भ में बाजार लॉन्ग टर्म एवरेज की तुलना में थोड़ा अधिक प्राइस-टू-अर्निंग्स मल्टीपल्स पर ट्रेड कर सकते हैं, जो अधिक टिकाऊ उच्च आय वृद्धि को दर्शाता है। निफ्टी का 10 साल का औसत पीई करीब 23 गुना पर है। बार्कलेज ने कहा कि सेक्टोरल या थिमेटिक दृष्टिकोण से, इंफ्रास्ट्रक्चर, कैपिटल गुड्स, फाइनेंशियल्स और कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी जैसे डॉमेस्टिक साइक्लिकल्स अच्छी स्थिति में दिखाई देते हैं। वहीं मेटल और टेक्नोलॉजी जैसे ग्लोबल साइक्लिकल्स अधिक चुनौतीपूर्ण लगते हैं।
भारतीय बाजार के लिए एक बड़ा जोखिम पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने से पहले कच्चे तेल की कीमतों में हुई बढ़ोतरी है। हालांकि तेल की कीमत में गिरावट आई है, फिर भी यह 80 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर कारोबार कर रही है। भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरत का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है, जिससे महंगाई में कोई भी उतार-चढ़ाव कंपनियों और उपभोक्ताओं के लिए बुरी खबर बन जाता है। इसकी वजह है कि कच्चे माल और माल ढुलाई की लागत बढ़ जाती है। बार्कलेज ने कहा कि अगर तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रहती हैं, तो चालू खाता घाटा संभवतः उम्मीद से अधिक होगा।