बाजार में 27 महीनों की सबसे बड़ी गिरावट, जून में सेंसेक्स, निफ्टी 5% फिसले, FIIs कर रहे हैं बिकवाली

अमेरिकी फेड के बाद भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दरें बढ़ाने से शेयर बाजारों में उथल-पुथल का सिलसिला बढ़ता हुआ दिखा

अपडेटेड Jun 29, 2022 पर 5:40 PM
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भारतीय शेयर बाजारों ने इस महीने मार्च 2020 के बाद से 27 महीनों में सबसे बड़ी गिरावट का सामना किया

भारतीय शेयर बाजारों में लगातार कुछ दिनों से उतार-चढ़ाव नजर आ रहा है। यहां तक कि इस महीने भी भारतीय बाजार मजबूती के लिए तरसते रह गये। शेयर बाजार के बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स और निफ्टी में अकेले जून में लगभग 5 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली। ग्लोबल मार्केट काफी हद तक ठंडे नजर आये। भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों ने इक्विटी बेचने का सिलसिला बनाये रखा।

इस बार जून में बाजार में 4.9 प्रतिशत की गिरावट रही। ये गिरावट मार्च 2020 के बाद से 27 महीनों में सबसे बड़ी गिरावट साबित हुई है। सेंसेक्स और निफ्टी दोनों अपने एक साल के निचले स्तर पर आ गए। उसी समय रुपया लगभग 1.8 प्रतिशत गिरकर 79 डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया। इसी समय 10 साल के बॉन्ड यील्ड सपाट नजर आये।

हालांकि भारतीय बाजारों में पिछले कुछ दिनों में तेल की कीमतों में नरमी और चीन द्वारा कोविड प्रतिबंध हटाने के कारण कुछ सुधार देखने को मिला।


रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के कारण आई हुई आर्थिक मंदी की आशंका से बाजार दबाव में है। भू-राजनीतिक संकट की वजह से दुनिया भर की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई में रिकॉर्ड वृद्धि देखने को मिली। इससे कच्चे तेल की कीमतें 119 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ीं। कमोडिटीज के भाव में उबाल आया। इतना ही नहीं वैश्विक खाद्य संकट की संभावना भी बढ़ी।

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बढ़ी हुई महंगाई ने अधिकांश केंद्रीय बैंकों को दर बढ़ाने के लिए मजबूर कर दिया है। इससे बिजनेस को रिवाइव करने के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले दो महीनों में पॉलिसी रेट को दो बार बढ़ाकर 4.9 प्रतिशत कर दिया। इतना ही नहीं आरबीआई ने आगे और दर वृद्धि से की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है।

Reliance Securities के मितुल शाह ने कहा कि यूएस फेड द्वारा वृद्धि करने के बाद आरबीआई द्वारा हाल ही में दरों में बढ़ोतरी ने बाजार में अभूतपूर्व उथल-पुथल पैदा कर दी है। अमेरिका में 40 साल की सबसे ज्यादा महंगाई नजर आ रही है। बाजार के सेंटीमेंट्स महंगाई के और बढ़ने की ओर इशारा कर रहे हैं। कंज्यूमर का कॉन्फिडेंस निचले स्तरों पर पहुंच गया जिससे 2022 के अंत तक अमेरिका में मंदी की संभावना नजर आ रही है।

विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की बिकवाली का दबाव बाजार में मंदी का प्रमुख कारण बना हुआ है। एफआईआई ने जनवरी और जून 2022 के बीच करीब 28.37 अरब डॉलर की इक्विटी बेची है। घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने इस अवधि के दौरान 2.27 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया।

मितुल शाह ने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि बाजार में निकट अवधि में दबाव दिखाई देगा। एफआईआई वित्त वर्ष 23 की दूसरी छमाही में बाजार में निवेश करते हुए दिखेंगे। वहीं डीआईआई निवेश 2022 में जारी रहेगा। इससे कुछ हद तक तेज गिरावट पर लगाम लगेगी।

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ब्रोकरेज फर्म BoB Cap ने कहा है कि केंद्रीय बैंक द्वारा दरों में बढ़ोतरी से कैपिटल फ्लो की गति बढ़ेगी। BoB Cap की रिपोर्ट में कहा गया है कि हम उम्मीद करते हैं कि अगले कुछ महीनों में महंगाई कम होती हुई नजर आएगी।

Prabhudas Lilladher के विक्रम कसात ने कहा है कि विकासशील देश अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अनुसार अपनी आर्थिक नीतियां बनाते हैं। इतिहास खुद को हमेशा नहीं दोहरा सकता है। लेकिन अगर डॉलर 40 साल पहले की तरह मजबूत होता रहा तो अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के आगे का सफर कठिन होता जायेगा।

 

 

 

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First Published: Jun 29, 2022 5:40 PM

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