शेयर मार्केट से तगड़े मुनाफे की झूठी रिपोर्ट पेश कर आम लोगों को गुमराह करने वाले फिनफ्लूएंसर्स के खिलाफ बाजार नियामक SEBI सख्त हुआ है। सेबी ने इसे लेकर एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया है। ब्रोकरेज फर्म जीरोधा (Zerodha) के सीईओ नितिन कामत (Nithin Kamath) का मानना है कि यह ऐसी धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ पॉजिटिव कदम है। जीरोधा के पॉडकॉस्ट पर उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे लोगों के झूठे दावों को रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत लाया जाना चाहिए। नितिन के मुताबिक ब्रोकरेज फर्म अपने लेवल पर इन फाइनेंशियल इनफ्लूएंसर्स यानी फिनफिनफ्लूएंसर्स के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा सकते हैं। इसकी वजह ये है कि ये लोग अब काफी प्रभावशाली हो चुके हैं और अगर ब्रोकर अपने स्तर पर कोई कदम उठाता है तो उसके कारोबार को नुकसान पहुंच सकता है।
लॉन्ग टर्म में इंडस्ट्री के लिए नुकसानदेह हैं ऐसे इनफ्लूएंसर्स
जीरोधा के सीईओ नितिन कामत के मुताबिक इनफ्लूएंसर्स को मिलने वाले कुछ फायदों को सेबी के कंसल्टेशन पेपर में खत्म करने का लक्ष्य है। नितिन कामत के मुताबिक ये इनफ्लूएंसर्स सबसे बड़ी दिक्कत ये खड़ी कर रहे हैं कि नए निवेशकों के बीच ये स्टॉक मार्केट को लेकर काल्पनिक उम्मीदें स्थापित कर रहे हैं। कुछ इनफ्लूएंसर्स जानकारी दे रहे हैं लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि वे बाजार से फटाफट पैसे बनाने को लेकर काल्पनिक उम्मीदों को भी बढ़ावा दे रहे हैं।
जीरोधा के सीईओ के मुताबिक इससे इंडस्ट्री को भी नुकसान है क्योंकि जब लोग भारी मुनाफे की उम्मीद के साथ मार्केट में प्रवेश करते हैं और उन्हें घाटा होता है तो लंबे समय तक मार्केट में नहीं रह पाते हैं। कुल मिलाकर इनफ्लूएंसर्स के चलते लोग फटाफट पैसे बढ़ाने के लिए धड़ाधड़ डीमैट खाते खुलवा रहे हैं लेकिन इससे लॉन्ग टर्म में नुकसान भी हैं।
पॉजिटिव भूमिका भी निभाई है इनफ्लूएंसर्स ने
कुछ इनफ्लूएंसर्स को छोड़ दें तो इन्होंने पॉजिटिव भूमिका भी निभाई है। नितिन के मुताबिक पिछले दो से तीन साल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए इनफ्लूएंसर्स ने खुदरा निवेशकों को बड़ी संख्या में स्टॉक मार्केट से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई। जितने निवेशकों को पांच से छह साल लग जाते मार्केट से जोड़ने में, उतने लोगों को इनफ्लूएंसर्स ने दो से तीन साल में जुड़वा दिया। नितिन के मुताबिक देश के कैपिटल मार्केट की ग्रोथ के लिए लॉन्ग टर्म निवेशकों को जोड़ने की जरूरत है। भारत की बड़ी आबादी की तुलना में अभी उनकी हिस्सेदारी बहुत कम है। जुलाई तक की बात करें तो देश में 12.35 करोड़ डीमैट अकाउंट्स थे।