Chemical stocks : डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है। इकोनॉमी के अलग-अलग हिस्सों पर इसका असर हो रहा है। केमिकल सेक्टर को इसकी वजह से फायदा और नुकसान दोनों हो रहा है। डॉलर अगर ऐसे ही बढ़ता रहा तो आगे केमिकल सेक्टर की हालत और खराब हो सकती है। भारत का कुल केमिकल निर्यात अमूमन 20–25 अरब डॉलर होता है। मौजूदा स्थिति में इससे सरकार और निर्यातकों को ख़ास लाभ नहीं हो रहा है।
केमिकल इंडस्ट्री में एक्सपोर्ट में बाद पेमेंट डॉलर में आता है। इसलिए डॉलर मजबूत होने से एक्सपोर्टर्स को थोड़ा फायदा हो रहा है। लेकिन दूसरी तरफ इंपोर्टेड रॉ-मैटेरियल महंगा पड़ने लगा है। इसी वजह से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है। डॉलर पिछले 1 साल में करीब 7 फीसदी मजबूत हुआ है।
केमिकल मैन्यूफैक्चरिंग में इस्तेमाल होने वाले अहम रॉ-मटीरियल और अन्य इंटरमीडिएट्स चीन, कोरिया और जर्मनी से आते हैं। इसके लिए होने वाला भुगतान डॉलर में होता है। सरकार रॉ-मटीरियल इंपोर्ट पर करीब 7 फीसदी तक लाभ देती है ताकि एक्सपोर्ट बढ़े और इसी वजह से इंपोर्टेड इनपुट पर निर्भरता भी बढ़ी है।अब इंडस्ट्री की मांग है कि ड्यूटी ड्रॉबैक,जो अभी अधिकतम 2 फीसद है उसे बढ़ाकर कम से कम 5 फीसदी किया जाए, ताकि घरेलू केमिकल प्रोडक्शन को बढ़ावा मिले।
चॉइस वेल्थ के CEO निकुंज सराफ ने कहा कि रुपये का 90.10 से ऊपर जाना कॉर्पोरेट अर्निंग्स पर अतिरिक्त दबाव बना रहा है। इंपोर्ट पर ज़्यादा निर्भर सेक्टर्स, जैसे ऑटो, इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल्स, फार्मा API और एविएशन के लिए करेंसी में हर उतार-चढ़ाव इनपुट कॉस्ट बढ़ाता है। इससे इनकी EBITDA मार्जिन कम होती है और प्राइसिंग स्ट्रेटेजी बिगड़ जाती है। एक्सपोर्टर्स को रुपए की कमजोरी से फायदा हो सकता है, लेकिन यह फायदा एक जैसा नहीं होता और अक्सर यह ज़्यादा हेजिंग कॉस्ट और सुस्त ग्लोबल डिमांड के चलते बेअसर हो जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि रुपये में लगातार उतार-चढ़ाव से खास कर उन कंपनियों की इन्वेंट्री प्लानिंग गड़बड़ा जाती जो डॉलर से जुड़े कच्चे माल पर निर्भर करती हैं। इससे इनकी वर्किंग-कैपिटल ज़रूरतें बढ़ जाती हैं। हेजिंग फ्रेमवर्क वाली कंपनियों को भी इस तिमाही में मार्क-टू-मार्केट उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ रहा है।
कुल मिलाकर कहें तो आगे एनालिस्ट हमें ऐसी कंपनियों को डाउनग्रेड करते दिख सकते हैं जिनका मैनेजमेंट ज़्यादा सतर्क गाइडेंस देगा,जिनकी अर्निंग में ज़्यादा अंतर दिखेगा और जहां बैलेंस शीट इंपोर्टेड महंगाई के प्रति संवेदनशील है। आने वाली तिमाहियों में अर्निंग विजिबिलिटी को बहाल करने के लिए करेंसी में स्थिरता आनी ज़रूरी होगी।
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