अगर अमेरिका में फेडरल रिजर्व अपनी मॉनेटरी पॉलिसी में सख्ती जारी रखता है तो S&P इंडेक्स अपने उच्चतम स्तर से 30 फीसदी गिर सकता है। जेफरीज के इक्विटी हेड क्रिस वुड (Chris Wood) ने इंडिया में निफ्टी के भी गिरकर 14000 या 14500 तक आ जाने का अनुमान जताया। CNBC-TV18 से बातचीत में उन्होंने यह अनुमान जताया।
वुड ने कहा कि उन्होंने निफ्टी का जो अनुमान जताया है वह एक सामान्य अनुमान है। अगर इंडियन मार्केट में घरेलू संस्थागत निवेशकों का इनवेस्टमेंट जारी रहता है तो स्थिति अलग हो सकती है। अमेरिकी इकोनॉमी के बारे में उन्होंने कहा कि अगर इस कैलेंडर ईयर की चौथी तिमाही में अमेरिकी इकोनॉमी में स्लोडाउन के ठोस संकेत नहीं दिखते हैं तो उन्हें हैरानी होगी।
अमेरिका में फेडरल रिजर्व एक तरफ मॉनेटरी पॉलिसी को सख्त बना रहा है तो दूसरी तरफ बैलेंसशीट घटा रहा है। उन्होंने कहा, "जब तक ये दोनों चीजें जारी रहेंगी तक तक अमेरिकी शेयर बाजारों में कमजोरी बनी रहेगी। अगर S&P अपने उच्चतम स्तर से 30 फीसदी नीचे नहीं आता है तो हमें हैरानी होगी।"
उन्होंने कहा कि 10 साल से ज्यादा वक्त से अमेरिकी स्टॉक मार्केट में ईटीएफ के रास्ते बड़ा निवेश देखने को मिला है। इनमें से ज्याादतर फंड एसएंडपी से लिंक्ड है। इस साल की शुरुआत में एसएंडपी से लिंक्ड ETF में एक लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा निवेश हुआ। अगर अब ऐसे प्रोडक्ट से आप पैसा निकलते देख रहे हैं तो यह बड़ी गिरावट का संकेत हो सकता है।
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं लगता कि फेडरल रिजर्व अगले साल भी इस तरह का आक्रामक रुख जारी रहेगा। अगर फेडरल रिजर्व के रुख में बदलाव की बात करें तो ऐसा तीसरी तिमाही के अंत में हो सकता है। अमेरिकी सरकार की तरफ से फेडरल रिजर्व पर इनफ्लेशन को कंट्रोल में करने के लिए कुछ न कुछ कदम उठाने के दबाव डाले जा रहे हैं। इसकी वजह है कि अब तक हुए प्रमुख ओपिनियन पोल में इनफ्लेशन और कीमतों को लेकर लोगों ने सबसे ज्यादा चिंता दिखाई है।
इंडिया के बारे में उन्होंने कहा कि यहां विदेशी निवेशकों की बड़ी बिकवाली देखने को मिली है। इसके बावजूद इक्विटी मार्केट ने जबर्दस्त लचीलापन दिखाया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसकी सबसे बड़ी वजह घरेलू निवेशकों की तरफ से होने वाला लगातार निवेश है।
उन्होंने कहा, "समय बीतने के साथ अगर 12 महीने के रोलिंग बेसिस पर निवेशकों को अपने इनवेस्टमेंट पर मुनाफा नहीं होता है तो घरेलू इनवेस्टमेंट रुकने का रिस्क है। इंडियन मार्केट में लचीलापन की एक दूसरी वजह यह है कि इंडियन इकोनॉमी की स्थिति मजबूत है। हमें कई पॉजिटिव चीजें दिखी हैं। इनमें एक यह है कि प्रॉपर्टी मार्केट में हालात बदले हैं। हमें कैपेक्स साइकिल भी आती दिख रही है।"
वुड ने कहा कि RBI की सख्ती के कदम ऐसे नहीं हैं, जैसे फेडरल रिजर्व के हैं। इंटरेस्ट रेट में आधा फीसदी की वृद्धि एक स्वागतयोग्य कदम है। क्रूड की कीमतों में उछाल के बारे में उन्होंने कहा कि इससे इंडियन इकनॉमी पर उतना ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, जितनी उम्मीद की जा रही थी।