FIIs' Record Selling: अमेरिकी टैरिफ के चलते वैश्विक स्तर पर फैली अनिश्चितता और जियोपॉलिटिकल टेंशन के बीच भारतीय मार्केट को विदेशी निवेशकों ने एक और टेंशन दे दिया। एनएसडीएल के आंकड़ों के मुताबिक इस साल 2025 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय स्टॉक मार्केट से ₹1.5 लाख करोड़ से अधिक के शेयर बेचे हैं। अभी यह साल पूरा बीता भी नहीं है, चार महीने से अधिक का समय बाकी ही है लेकिन विदेशी निवेशकों की बिकवाली ने नया रिकॉर्ड बना दिया। कंपनियों की सुस्त पड़ती कमाई, फीके वैल्यूएशन, बढ़ती जियोपॉलिटिकल अनिश्चितता और विदेशी बाजारों में आकर्षक मौकों ने भारतीय स्टॉक मार्केट को लेकर विदेशी निवेशकों का क्रेज कम किया है।
किन बाजारों में जा रहे हैं विदेशी निवेशक?
विदेशी निवेशक एक तरफ भारतीय स्टॉक मार्केट से रिकॉर्ड पैसे निकाल रहे हैं तो दूसरी तरफ भारत के ही प्राइमरी यानी आईपीओ मार्केट में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं क्योंकि आईपीओ मार्केट में 15-20% का लिस्टिंग गेन मिल जा रहा है जिससे वैश्विक फंड शॉर्ट टर्म रिटर्न के लिए यहां आ रहे हैं। एनालिस्ट्स के मुताबिक भारत के मुताबिक अमेरिका, चीन और यूरोप के स्टॉक मार्केट सस्ते वैल्यूएशन के चलते अधिक आकर्षक दिख रहे हैं।
एनालिस्ट्स का यह भी कहना है कि भारत सबसे तेज बढ़ने वाली इकॉनमी बना हुआ है लेकिन मौजूदा माहौल में पोर्टफोलियो मैनेजर खरीदकर होल्ड करने की बजाट एसेट एलोकेशन पर ध्यान दे रहे हैं और इसमें भारत अब उनकी प्रॉयोरिटी पर नहीं है। इस साल 2025 में अब तक भारतीय मार्केट में सेंसेक्स और निफ्टी करीब 4-4% मजबूत हुए हैं तो दूसरी तरफ अमेरिका में एसएंडपी 500 और नास्डाक करीब 12% और यूरोप का FTSE 100, सीएस,और डीएएक्स 20% से अधिक मजबूत हुआ है। एशियाई मार्केट की बात करें तो जापान का निक्केई इस साल 18%, हॉन्ग कॉन्ग का हैंग सैंग 29% और चीन का सीएसआई 200 भी 10% उछल चुका है।
क्या कहना है एक्सपर्ट्स का?
घरेलू ब्रोकरेज फर्म एसबीआई सिक्योरिटीज के सनी अग्रवाल का कहना है कि कारोबारी सौदे को लेकर अनिश्चितता और अमेरिका-चीन के बीच संभावित बातचीत से विदेशी निवेशकों का मूड बदल रहा है। चीन के मार्केट का परफॉरमेंस कई वर्षों तक भारतीय मार्केट की तुलना में कमजोर रहा और अब विदेशी निवेशकों को यहां टैरिफ का फायदा मिलता दिख रहा है। वैल्यूएशन के हिसाब से देखें तो भारतीय इक्विटी बेंचमार्क इंडेक्सेज फिलहाल एक साल के फारवर्ड अर्निंग्स के हिसाब से 20 गुना के ऊपर हैं जो इसके 10 साल के औसत 19.3 गुना से अधिक हैं। वहीं एमएससीआई इंडिया अपने लॉन्ग टर्म एवरेज 20 गुना के मुकाबले 21.6 गुना और एमएससीआई चाइना अपने लॉन्ग टर्म एवरेज 11.3 गुना के मुकाबले 11.7 गुना पर है।
इक्विरस एसेट मैनेजमेंट के सीआईओ और फंड मैनेजर साहिल शाह का कहना है कि भारत को लेकर अमेरिकी नीतियों में बदलाव से निर्यात की स्पीड पर असर पड़ सकता है, खासतौर से हाई एंप्लॉयमेंट वाले क्षेत्रों में। साहिल का कहना है कि भारत से अमेरिका को निर्यात भारतीय जीडीपी का करीब 3% है और इसमें से 30% अभी टैरिफ के दायरे से बाहर है तो इसमें कोई भी रुकावट आती है तो देश की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ सकता है।
असित सी मेहता इन्वेस्टमेंट इंटरमीडिएट्स के रिसर्च हेड सिद्धार्थ भामरे को अगली दो से तीन तिमाहियों में भारतीय मार्केट में सीमित तेजी और गिरावट तक के आसार दिख रहे हैं। उन्होंने निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दी है।
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