H-1B visa news : अमेरिकी बाजार में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले भारतीय आईटी शेयरों पर उस समय भारी दबाव बना जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एच-1बी वीजा पर 100,000 डॉलर का वार्षिक शुल्क लगाने संबंधी घोषणा पर हस्ताक्षर किए। H-1B वीज़ा वार्षिक शुल्क बढ़ाने का ट्रंप प्रशासन का यह फैसला आईटी कंपनियों के लिए भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स को नियुक्त करना महंगा बना देगा। ट्रंप सरकार का यह फैसला उसके इमीग्रेशन नियमों में बड़े बदलाव का हिस्सा है।
जब ऐसी खबरें आईं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एच-1बी वीजा आवेदनों के लिए 100,000 डॉलर शुल्क लगाने के आदेश पर हस्ताक्षर करने वाले हैं तो शुक्रवार, 19 सितंबर को इंफोसिस के शेयरों में 4.5 फीसदी तक की गिरावट आई। इन्फोसिस सहित तामाम भारतीय आईटी कंपनियां एच-1बी वीज़ा के सबसे बड़े यूजरों में से हैं। वे आमतौर पर अपने अमेरिकी प्रोजेक्ट्स में भारत के कुशल कर्मचारियों को नियुक्त करते हैं। लेकिन यह नया शुल्क कंपनियों के लागत-बचत मॉडल के लिए सीधा ख़तरा बन जाएगा।
शुक्रवार के कारोबारी सत्र में दूसरी टेक कंपनियों के शेयरों में भी गिरावट देखी देखने को मिली। कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजी के शेयर 4.3 फीसदी तक टूटे। जबकि एक्सेंचर के शेयर 1.3 फीसदी और विप्रो के शेयर 3.4 फीसदी गिर गए।
व्हाइट हाउस की यह घोषणा एच-1बी कटेगरी के तहत अमेरिका में विदेशी नागरिकों के प्रवेश नियंत्रित करने के लिए किया गया है। एच-1बी का इस्तेमाल खास व्यवसायों में कुशल पेशेवरों को नियुक्त करने के लिए किया जाता है। एच-1बी के प्रत्येक आवेदन के साथ 100,000 अमेरिकी डॉलर का भुगतान अनिवार्य हो गया है। ऐसी नियुक्ति करने वाली कंपनियों को अब भुगतान का प्रमाण रखना होगा, जिसकी पुष्टि वीज़ा प्रक्रिया के दौरान विदेश मंत्री द्वारा की जाएगी।
ल्यूटनिक ने एच-1बी वीजा पर की गई कार्रवाई का किया सपोर्ट
ओवल ऑफिस में इस कदम की घोषणा करते हुए, ट्रंप ने कहा कि भारी शुल्क यह पक्का करेगा कि केवल "अत्यंत कुशल" लोगों को ही देश में लाया जाए। इससे कंपनियों को अमेरिकी कर्मचारियों की जगह सस्ते विदेशी कर्मचारियों को लाने से रोका जा सकेगा। अमेरिका के कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड ल्यूटनिक की उपस्थिति में इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, "हमें कर्मचारियों की ज़रूरत है। हमें बेहतरीन कर्मचारियों की ज़रूरत है और यह कदम सुनिश्चित करता है कि ऐसा ही होगा।"
ल्यूटनिक ने आगे कहा कि इस कदम से अमेरिकी खजाने में 100 अरब डॉलर से ज़्यादा की राशि आएगी। इस पैसे का इस्तेमाल टैक्स कटौती और कर्ज़ में कमी लाने के लिए किया जाएगा। उन्होंने कहा,"या तो वह व्यक्ति कंपनी और अमेरिका के लिए बहुत मूल्यवान होगा,या फिर वह कंपनी छोड़कर जाएगा और कंपनी उसकी जगह किसी अमेरिकी को नौकरी पर रखेगी। यही तो इमीग्रेशन का उद्देश्य है -अमेरिकियों को नौकरी पर रखें और यह पक्का करें कि अमेरिका में आने वाले लोग टॉप लेवल के हों।"
भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ेगा बड़ा असर
इस नए कदम से भारतीय आईटी कंपनियों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा, क्योंकि ये एच-1बी वीज़ा के सबसे बड़े उपयोगकर्ताओं में से हैं। एच-1बी वीजा प्रोग्राम अमेरिका में तीन साल के लिए रोज़गार प्रदान करता है जिसे तीन साल के लिए और बढ़ाया भी जा सकता है। यह समय से भारतीय तकनीकी कर्मचारियों के लिए एक अमेरिका जाने का बड़ा जरिया रहा है।