Yes Bank Share Price: जब कोई कंपनी अपने वित्तीय नतीजे को जारी करने वाली होती है या कर देती है तो इस दौरान शेयरों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। निवेशकों के मूड से रिजल्ट आने की उम्मीद हो तो शेयर चढ़ते हैं और मूड के हिसाब से रिजल्ट नहीं आया तो शेयर लोट जाते हैं। ऐसा ही कुछ बैंकों के साथ भी होता है। पिछले हफ्ते शनिवार को निजी सेक्टर के Yes Bank ने जून तिमाही के नतीजे पेश किए थे। इसके नतीजे को लेकर निवेशक काफी उत्साहित थे तो शेयर पिछले कारोबारी हफ्ते 4 फीसदी उछल गए थे। हालांकि प्रॉफिट और रेवेन्यू बढ़ने के बावजूद कुछ कसौटियों पर यह निवेशकों के हिसाब से नहीं रहा तो महज तीन कारोबारी दिन में यह 6 फीसदी टूट गया और ब्रोकरेज आगे भी गिरावट के आसार देख रहे हैं।
यस बैंक का जून तिमाही में प्रॉफिट तिमाही आधार पर 69.2 फीसदी और सालाना आधार पर 10.3 फीसदी बढ़ा, फिर भी शेयर टूटने लगे। ऐसे में आखिर बैंक के नतीजों में क्या देखना चाहिए? इसे लेकर बाजार के जानकारों का मानना है कि ये 6 रेश्यो काम के हैं जिनके बारे में नीचे दिया जा रहा है। ये रेश्यो इसलिए भी जानने जरूरी हैं क्योंकि इससे बैंक की असली सेहत का अंदाजा लगता है।
यह कुल डिपॉजिट्स में चालू खाते और बचत खाते का कितना हिस्सा है, यह बताता है। इससे कम से कम लागत में बैंकों के फंड जुटाने की क्षमता का पता चलता है। यह जितना अधिक है, उतना बैंक के लिए अच्छा माना जाता है क्योंकि आमतौर पर बैंक चालू खाते और बचत खाते में अधिक दर से ब्याज नहीं देते हैं।
Net Interest Margin (NIM) Ratio
यह बैंक की प्रॉफिटेबिलिटी का मानक है। इसे निवेश से आय में से ब्याज पर खर्च को एवरेज अर्निंग एसेट्स से डिवाइड करके निकालते हैं। यह अधिक हो तो अच्छा माना जाता है क्योंकि इससे पता चलता है कि बैंक डिपॉजिट्स पर जितना ब्याज दे रहा है, उससे अधिक इसे लोन पर ब्याज की कमाई हो रही है।
नाम के हिसाब से ही यह कुल डिपॉजिट की तुलना में लोन के हिस्से को बताता है। इससे पैसों की निकासी और लोन के घाटे को कवर करने के लिए बैंक की लिक्विडिटी का पता चलता है। आमतौर पर यह 80-90 फीसदी के बीच हो तो अच्छा माना जाता है। इससे अधिक होने का मतलब है कि किसी संकट की स्थिति से निपटने के लिए बैंक के पास पर्याप्त रिजर्व फंड नहीं है।
Net Non-Performing Assets (NPA) Ratio
टोटल लोन में कितना हिस्सा नेट एनपीए का है, इससे पता चलता है कि टोटल एडवांसेज में कितना हिस्सा रिकवर नहीं होने वाला है। अगर किसी बैंक लोन की किस्त 90 दिनों तक यानी तीन महीने तक नहीं चुकाई जाती है, तो यह लोन एनपीए बन जाता है।
Provision Coverage Ratio (PCR)
यह टोटल प्रोविजन और ग्रॉस एनपीए का रेश्यो है। इससे पता चलता है कि बुरे कर्जों के घाटे के लिए बैंक ने अलग से कितने पैसे रखे हैं। आमतौर पर यह 70 फीसदी से अधिक हो तो बेहतर माना जाता है।
Capital Adequacy Ratio (CAR)
यह बैंक के सभी टियर के कैपिटल फंड्स और रिस्क-वेटेड एसेट्स का रेश्यो है। इससे यह पता चलता है कि बैंक कितना घाटा झेल सकता है। यह अधिक हो तो माना जाता है कि बैंक सुरक्षित है और यह अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा करने में सक्षम है। आरबीआई के नियमों के मुताबिक शेड्यूल्ड कॉमर्शिल बैंकों को इसे 9 फीसदी रखना है लेकिन सरकारी बैंकों को 12 फीसदी का रेश्यो मेंटेन करना है।