एक दशक तक खपत में तेजी का रुझान था और इसके चलते इससे जुड़े शेयरों की फिर से रेटिंग की जरूरत आ पड़ी थी। अब ऐसा ही रुझान कैपिटल एक्सपेंडिचर में दिख रहा है। कैपिटल मार्केट्स फर्म जेफरीज (Jefferies) के मुताबिक सरकार कई योजनाओं के लिए कैपिटल एक्सपेंडिचर को बढ़ावा दे रही है और प्रॉपर्टी सेक्टर में भी तेजी का रुझान है। इसके चलते कैपेक्स साइकिल में तेजी के आसार हैं। कैपेक्स साइकिल में तेजी की एक वजह ये है कि औद्योगिक कंपनियों को ढेर सारे ऑर्डर मिल रहे हैं और कोरोना महामारी के पहले इसकी ग्रोथ 5 फीसदी पर थी जो अब सालाना आधार पर 15 फीसदी पर पहुंच गया। कैपिटल यूटिलाइजेशन भी 73 फीसदी पर है जो ऐतिहासिक औसत से ऊपर है जिसके चलते जेफरीज कैपिटल एक्सपेंडिचर के नए चरण में आने को लेकर पॉजिटिव दिख रहा है।
इंडस्ट्रियल शेयरों के फिर रेटिंग की जरूरत क्यों
जेफरीज के मुताबिक दस साल से अधिक समय से खपत बढ़ रही है और इसके चलते पीई रेश्यो भी बढ़ रहा है। अब इसी प्रकार का रुझान कैपेक्स साइकिल में दिख रहा है जिसके चलते जेफरीज का मानना है कि इंडस्ट्रियल स्टॉक्स की फिर से रेटिंग करनी होगी क्योंकि इसमें लिमिटेड स्टॉक्स ही हैं। चूंकि कैपिटल एक्सपेंडिचर में तेजी का फायदा उठाने के लिए निवेश के लिए स्टॉक्स सीमित हैं और कुछ कंपनियां ईएसजी मुद्दों से प्रभावित हैं। जेफरीज ने इंडस्ट्रियल सेक्टर की ओवरवेट रेटिंग बरकरार रखा है और निवेश के लिए एलएंडटी, थर्मैक्स, सीमेन्स, पॉलीकैब, केईआई और एबीबी इंडिया पर दांव लगाया है। जेफरीज के मुताबिक इनमें से कुछ शेयरों की रेटिंग दोबारा की जा चुकी है और अगर इनका पीई स्थाई बना रहता है तो ये आउटपरफॉर्म कर सकते हैं।
अपने पीक पर पहुंच चुका है खपत लेवल, इससे मिला संकेत
जेफरीज के मुताबिक पिछले दशक में प्राइवेट फाइनल कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर (जीडीपी में खपत की हिस्सेदारी) बढ़ी है और इसके चलते कंज्यूमर स्टॉक्स की रेटिंग में लगातार बदलाव हुआ। वित्त वर्ष 2011 में प्राइवेट फाइनल कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर जीडीपी के 54.7 फीसदी से उछलकर वित्त वर्ष 2021 में 61.3 फीसदी पर पहुंच गया। जेफरीज के मुताबिक एफएमसीजी शेयरों का एक साल के अनुमानित ईपीएस (अर्निंग पर शेयर) के मुकाबले इसका शेयर 2011 में 20 गुने पर था और अब यह 50 गुने पर है। इनवेस्टमेंट बैंक के मुताबिक री-रेटिंग की जरूरत इसलिए भी पड़ी क्योंकि निवेशक कमजोर इनवेस्टमेंट थीम की बजाय कंजम्प्शन थीम में पैसे लगाने को प्रमुखता दे रहे थे। हालांकि अब पिछले दो वर्षों में जीडीपी के मुकाबले प्राइवेट फाइनल कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर की चाल पलट गई जिससे संकेत मिल रहा है कि जीडीपी के मुकाबले खपत शिखर पर पहुंच चुका है।
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