Market outlook : ओमनीसाइंस कैपिटल के को-फाउंडर और पोर्टफोलियो मैनेजर अश्विनी शमी का कहना है कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की पहली किस्त नवंबर तक ही आने की उम्मीद है और इसलिए शॉर्ट टर्म में इससे बाजार को कोई राहत मिलने की संभावना नहीं है। हालांकि, उन्होंने कहा कि व्यापार समझौते से ज्यादा असर अमेरिकी फेड द्वारा ब्याज दरों में की जाने वाली कटौती का होगा। अगर यूएस फेड दरों में कटौती करता है तो इससे भारत में होने वाले एफआईआई निवेश में बढ़त देखने को मिलेगी। इससे बाजार में तेजी आएगी।
ट्रंप के रुख में हालिया बदलाव को देखते हुए, क्या आपको लगता है कि सल 2025 की चौथी तिमाही में भारत-अमेरिका व्यापार समझौता हो जाएगा? इसके जवाब में अश्विनी शमी ने कहा कि हालांकि दोनों पक्षों की मंशा स्पष्ट है कि वे लंबित मुद्दों को सुलझाकर व्यापार समझौते की दिशा में आगे बढ़ेंगे, लेकिन यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होने की उम्मीद है। वाणिज्य मंत्री ने संकेत दिया है कि व्यापार समझौते का पहला चरण नवंबर के आसपास पूरा होने की उम्मीद है। इस बीच, भारत ने यूके, ईएफटीए, यूएई, मॉरीशस और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों के साथ व्यापार समझौते या तो पूरे कर लिए हैं या वर्तमान में उन पर बातचीत चल रही है। इससे भारत को अमेरिका के साथ होने वाली द्विपक्षीय वार्ता में अतिरिक्त फायदा मिल सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि बाजार पर व्यापार समझौते से ज्यादा असर अमेरिकी फेड द्वारा ब्याज दरों में की जाने वाली कटौती का होगा। अगर यूएस फेड दरों में कटौती करता है तो इससे भारत में होने वाले एफआईआई निवेश में बढ़त देखने को मिलेगी। इससे बाजार में तेजी आएगी।
वित्त वर्ष 2026 में आगे होने वाली आरबीआई की मौद्रिक नीति बैठकों पर बात करते हुए शमी ने कहा कि उन्हें इस वित्तीय वर्ष के दौरान कई 25 बीपीएस दर कटौती की गुंजाइश नजर आ रही है। इसके देश के आर्थिक विकास और कॉर्पोरेट आय दोनों को सपोर्ट मिलेगा।
क्या आपको आगे भारतीय शेयर बाज़ारों में रिलीफ रैली की उम्मीद है? आगे कौन से फैक्टर बाज़ार को सपोर्ट कर सकते हैं? इसके जवाब में शमी ने कहा कि चूंकि व्यापार समझौते की पहली किस्त नवंबर तक ही आने की उम्मीद है, इसलिए इससे निकट भविष्य में कोई राहत मिलने की संभावना कम है। हालांकि, व्यापार समझौते से कहीं ज़्यादा, अमेरिकी फेड द्वारा ब्याज दरों में संभावित कटौती, विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश को बढ़ावा दे सकती है, जिससे बाज़ारों में तेज़ी आ सकती है। घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) की तरफ से अच्छी खरीदारी देखने को मिली है। ऐसे में अगर विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली रुकती है तो बाज़ारों में और तेजी आ सकती है।
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