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Share Market में घरेलू निवेशकों का दबदबा! Mutual Fund ने NSE में बढ़ाई हिस्सेदारी, FIIs से आगे निकलने की राह पर DIIs

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में लिस्टेड कंपनियों में घरेलू म्यूचुअल फंड (एमएफ) का निवेश एक नए हाई लेवल पर पहुंच गया है ताजा आंकड़ों के अनुसार, म्यूचुअल फंड का शेयर मार्च 2024 के अंत में बढ़कर 8.92 प्रतिशत हो गया

अपडेटेड May 10, 2024 पर 9:09 PM
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म्यूचूअल फंड्स को लेकर अहम जानकारी सामने आई है।

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में लिस्टेड कंपनियों में घरेलू म्यूचुअल फंड (एमएफ) का निवेश एक नए हाई लेवल पर पहुंच गया है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, म्यूचुअल फंड का शेयर मार्च 2024 के अंत में बढ़कर 8.92 प्रतिशत हो गया, जो दिसंबर में 8.81 प्रतिशत था। उल्लेखनीय है कि इस तिमाही के दौरान म्यूचुअल फंड में कुल मिलाकर 81,539 करोड़ रुपये का शुद्ध इनफ्लो देखा गया।

इनफ्लो

इन मजबूत निवेशों के चलते घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) का कुल मिलाकर शेयर भी बढ़कर मार्च तिमाही में 1.08 लाख करोड़ रुपये के शुद्ध इनफ्लो के साथ 16.05 प्रतिशत हो गया, जो दिसंबर 31, 2023 को 15.96 प्रतिशत था। दूसरी ओर, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) का शेयर मार्च के अंत में 11 साल के निचले स्तर 17.68 प्रतिशत पर आ गया है। इससे FII-DII के बीच का अंतर अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया है, क्योंकि अब DII की हिस्सेदारी FII की तुलना में सिर्फ 9.23 प्रतिशत कम है।


FII और DII के बड़ा अंतर

FII और DII होल्डिंग के बीच का सबसे बड़ा अंतर मार्च 2015 तिमाही में दर्ज किया गया था, जब DII की हिस्सेदारी FII की तुलना में 49.82 प्रतिशत कम थी। भारत की सबसे बड़ी संस्थागत निवेशक एलआईसी (LIC) ने मार्च में 280 से अधिक कंपनियों में अपने शेयर को बढ़ाकर 3.75 प्रतिशत कर लिया है, जो दिसंबर 2023 के 3.64 प्रतिशत से अधिक है। तिमाही के दौरान बीमा कंपनियों का कुल शेयर 5.37 प्रतिशत से बढ़कर 5.4 प्रतिशत हो गया है। अकेले एलआईसी का बीमा कंपनियों में 70 प्रतिशत का हिस्सा है, जिसकी कुल हिस्सेदारी 14.29 लाख करोड़ रुपये है।

भारतीय बाजार आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा

प्राइम डेटाबेस ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रणव हलदेआ के अनुसार, भारतीय बाजार आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है और अगले कुछ तिमाहियों में DIIs का शेयर FIIs को पछाड़ सकता है। उन्होंने कहा कि सालों से, FII भारतीय बाजार में सबसे बड़े नॉन-प्रमोटर शेयरहोल्डर रहे हैं और उनके निवेश निर्णयों का बाजार की समग्र दिशा पर भारी प्रभाव पड़ा है। जब FIIs बाहर निकलते थे तो बाजार में गिरावट आती थी। अब ऐसा नहीं है। DIIs और रिटेल इन्वेस्टर अब एक मजबूत बैलेंसिंग रोल निभा रहे हैं।"

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