Pharma Stocks: फार्मा कंपनियों के शेयरों में एक नए कानून के चलते हलचल देखी जा रही है। खास बात यह है कि यह कानून भारत में नहीं, बल्कि अमेरिका में बनाया जा रहा है। इसका नाम है बॉयोसिक्योर एक्ट (Biosecure Act)। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस कानून के लागू होने से भारतीय फार्मा कंपनियों के शेयरों में शानदार तेजी देखने को मिल सकती है। अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स, यानी वहां के लोकसभा ने 9 सितंबर को एक नए कानून का ड्राफ्ट पास किया जिसे Biosecure Act का नाम दिया गया है। अब यह एक्ट वहां के राज्यसभा यानी अमेरिकी सीनेट के पास फाइनल वोट के लिए जाएगा। इस कानून का मुख्य उद्देश्य है अमेरिकी फार्मा कंपनियों की चीन पर निर्भरता को खत्म करना और टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर पर रोक लगाना।
इस एक्ट के तहत, 5 चीनी कंपनियों को सीधे निशाने पर लिया गया है - वूशी एपटेक (WuXi Apptec), वूशी बायोलॉजिक्स (Wuxi Biologics), बीजीआई (BGI), एमजीआई (MGI), और कम्प्लीट जीनोमिक्स (Complete Genomics)। इस कानून के लागू होने के बाद अब अगर कोई अमेरिकी कंपनी इन चीनी कंपनियों के साथ काम करती है, तो उन्हें अमेरिकी सरकार से मिलने वाला ग्रांट्स, लोन या कॉन्ट्रैक्ट्स बंद हो जाएगा। इस नए कानून के कारण करीब 120 अमेरिकी बायोफार्मास्युटिकल दवाएं जांच के दायरे में आ सकती हैं।
अब सवाल यह है कि इस नए कानून का सबसे ज्यादा फायदा किसे होगा? इसका सीधा जवाब है – भारतीय फार्मा कंपनियां! बॉयोसिक्योर एक्ट के बाद, अमेरिका और चीन के बीच कारोबार में कटौती होगी, और इसका सीधा फायदा भारत की उन फार्मा कंपनियों को होगा जो CDMO सेगमेंट यानी कॉन्ट्रैक्ट डेवलपमेंट एंड मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस में काम करती हैं। CDMO बिजनेस का मतलब है कि कॉन्ट्रैक्ट लेकर दूसरी कंपनियों के लिए दवाएं बनाना।
भारत की कई बड़ी फार्मा कंपनियों के पास इस फील्ड में महारत है। इसमें डिवीज लैब्स (Divi's Labs), लॉरैस लैब्स (Laurus Labs), न्यूलैंड लैबोरेटरीज (Neuland Laboratories), सिनजीन (Syngene), सुवेन फार्मा (Suven Pharma) और पीरामल फार्मा (Piramal Pharma)शामिल हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है नए बदलाव से इन कंपनियों को सीधे फायदा हो सकता है और ये अब अमेरिकी कंपनियों के लिए चीन का विकल्प बन सकती हैं।
ब्रोकरेज फर्म इनक्रीड इक्विटीज के मुताबिक, CDMO मार्केट बहुत तेजी से ग्रो कर रहा है। इसका मुख्य कारण है कि कई अमेरिकी बायोटेक और बायोफार्मास्युटिकल कंपनियों के पास खुद की मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए जरूरी पूंजी की कमी है। ऐसे में ये कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट पर मैन्युफैक्चरिंग का सहारा ले रही हैं और इसके चलते उन्हें भारत जैसे देशों की ओर रुख करना पड़ रहा है। इसका मतलब है कि अमेरिका के बायोफार्मा सेक्टर में पैठ रखने वाली भारतीय कंपनियों के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स आने शुरू हो सकते हैं।
असल में, यह बदलाव शुरू भी हो चुका है। यूएस की कुछ बड़ी फार्मा कंपनियां जैसे- बेजीन (Beigene) और एली लिली (Eli Lilly) ने चीन के बाहर अपने नए CDMO पार्टनर्स की तलाश पहले से ही शुरू कर दी है। इसके अलावा CDMO बिजनेस करने वाली भारतीय कंपनियों ने बताया कि बायोसिक्योर एक्ट के प्रस्ताव के बाद से ही उनके पास नए ऑर्डर के लिए बड़ी संख्या में इनक्वायरी आ रही है। इस उम्मीद के चलते, आज 10 सितंबर को इन कंपनियों के शेयरों में 3-4 प्रतिशत की तेजी भी देखी गई।
हालांकि Laurus Labs और Piramal Pharma अभी छोटे प्रोजेक्ट्स के साथ शुरुआत देख रही हैं, जबकि Neuland Labs अमेरिकी कंपनियों के साथ अधिक मीटिंग्स कर रही है, लेकिन अभी तक बड़े पैमाने पर ऑर्डर्स नहीं मिले हैं। दूसरी ओर, Syngene के पास पहले से ही लॉन्ग-टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स हैं, जिसके चलते वह इन कंपनियों से एक कदम आगे दिख रही है। Syngene ने बताया कि इस साल की पहली तिमाही में उसके RFPs में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जो पिछले चार सालों का उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन है। इससे ये साफ है कि चीन से हटकर अमेरिका की कई बड़े फार्मा कंपनियां अब भारत की ओर देख रही हैं।
भारत की CDMO इंडस्ट्री पहले से ही तेजी से ग्रो कर रही है। InCred Equities का अनुमान है कि इस इंडस्ट्रीज का साइज 2029 में बढ़कर 44.69 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा, जो 2023 में 19.63 अरब डॉलर था। यानी इस इंडस्ट्री के हर साल करीब 15 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। इसके अलावा सरकार की PLI स्कीम, FDI के जरिए लगातार आ रहे निवेश, प्राइवेट इक्विटी निवेश और कैपेक्स में हो रही बढ़ोतरी से भी भारतीय कंपनियों की ग्रोथ को बढ़ावा दे रही हैं।
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