Rupee Breaches 91-Mark: रुपए ने पहली बार पार किया 91 का लेवल, पिछले 5 सत्रों में 1% से ज्यादा टूटा, आखिर क्यों नहीं संभल रही गिरावट

Rupee Breaches 91-Mark: FPI की बिकवाली और US-इंडिया ट्रेड डील को लेकर अनिश्चितता के बीच मंगलवार को इंट्राडे में भारतीय रुपया US डॉलर के मुकाबले 91.14 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया।

अपडेटेड Dec 16, 2025 पर 1:11 PM
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डॉलर के मुकाबले रुपए में रिकॉर्ड गिरावट देखने को मिल रही है। रुपए ने 91.08 का रिकॉर्ड निचला स्तर छुआ है।

Rupee Breaches 91-Mark: डॉलर के मुकाबले रुपए में रिकॉर्ड गिरावट देखने को मिल रही है। रुपए ने 91.08 का रिकॉर्ड निचला स्तर छुआ है। एक डॉलर का भाव पहली बार 91 के पार निकला है। पिछले 5 सत्रों में रुपया 1% से ज्यादा फिसला है जबकि पिछले 5 सत्रों में यह 1.29 तक कमजोर हुआ । 2022 के बाद अब तक रुपए में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिली है। 2025 में सभी एशियाई करेंसियों में मुकाबले ज्यादा गिरा है। इस साल यह करीब 6% गिरा है।

सुबह 11.45 बजे डॉलर के मुकाबले रुपया 91.14 पर ट्रेड कर रहा था, जो पिछले बंद भाव से 36 पैसे कम था।

क्यों नहीं संभल रहा है रुपया?


भारत पर अमेरिका के लगाए गए ऊंचे टैरिफ ने रुपए पर दबाव बनाया है। भारत का बढ़ता करंट अकाउंट डेफिसिट, विदेशों में ऊंची दरों से कैपिटल आउटफ्लो और विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली के कारण रुपया औंधे मुंह गिरा है। वहीं दूसरी तरफ RBI द्वारा करेंसी मार्केट में कम दखल देना भी इसमें दबाव का कारण बन रही है।

 लंबी अवधि में गिरता है रुपया !

50 सालों में औसतन 4-5% की सालाना गिरावट देखने को मिलती है। इस बार कमजोरी हाल के सालों से ज्यादा तेज है। 2024 में रुपया ओवरवैल्यूड माना जा रहा था। जबकि 2025 में यह थोड़ा अंडरवैल्यूड हो गया है। रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट (REER) के 100 से नीचे आने से संकेत मिलता है। 10 सालों में REER चौथी बार 100 के नीचे फिसला।

 बॉन्ड मार्केट में असर

सेंट्रल बैंक बॉन्ड की खरीदारी कर रहा है। बॉन्ड की कीमतें बढ़ती हैं, यील्ड घटती है। इससे FIIs की खरीद-बिक्री का सीधा असर पड़ता है। 10 सालों की यील्ड 6.48% पर पहुंची है। 4 महीनों बाद 1 हफ्ते में सबसे ज्यादा तेजी देखने को मिली। 2035 में बॉन्ड की मैच्योरिटी होनी है।

FIIs की भारी बिकवाली ना केवल रुपये बल्कि बॉन्ड बाजार पर भी दबाव बना रही है । ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप रेट अचानक तेजी से बढ़ी। ऑफशोर बाजार में ब्याज चुकाने की वजह से तेजी आई। यील्ड 6.55% से 6.65% के दायरे में रहने की उम्मीद है। पिछले हफ्ते RBI ने 500 बिलियन के बॉन्ड खरीदे। विदेशी निवेशकों की बिकवाली से दबाव कम नहीं हो रहा।

क्या कहते है एक्सपर्ट

फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स LLP के ट्रेजरी हेड और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनिल कुमार भंसाली ने कहा,  "भारत-US ट्रेड डील जल्द नहीं होने के कारण, रुपया पहले ही 91 मार्केट को पार कर चुका है और इस महीने 92 तक भी पहुंच सकता है। बाय-सेल स्वैप, टैक्स से जुड़ी रुपये की कमी, तेल की अटकलें, एक्सपोर्टर डॉलर जमा करना, FPI का पैसा निकालना, $50 बिलियन की हिस्सेदारी बेचना और कर्ज बेचना इस गिरावट की वजह हैं।"

बाजार जानकारों  का मानना है कि जब तक US-भारत ट्रेड बातचीत में कोई सफलता नहीं मिलती, रुपये की किस्मत में बदलाव की संभावना नहीं है।

जियोजित इन्वेस्टमेंट्स के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वी के विजयकुमार ने कहा कि आज रुपये में और ज़्यादा कमजोरी की उम्मीद नहीं थी क्योंकि नवंबर का ट्रेड डेटा उम्मीद से बेहतर आया। आज की गिरावट का एक कारण शॉर्ट पोजीशन को कवर करना हो सकता है। FII की लगातार बिकवाली एक बुरे चक्र की तरह काम कर रही है जो रुपये को नीचे खींच रही है।

आमतौर पर जब रुपया गिरता है, तो RBI रुपये की गिरावट को रोकने के लिए डॉलर बेचकर दखल देता है। लेकिन हाल ही में RBI की पॉलिसी करेंसी को गिरने देने की रही है। भारत में कम महंगाई (नवंबर में 0.71%) सेंट्रल बैंक के इस दखल न देने का कारण है। रुपये की गिरावट से इकॉनमी को नुकसान नहीं हो रहा है। भारत का नवंबर का ट्रेड डेफिसिट अक्टूबर के 41.68 बिलियन से घटकर $24.53 बिलियन हो गया, जो रुपये के लिए पॉजिटिव है।

ग्रीनबैक एडवाइजरी सुब्रमण्यम शर्मा ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से रुपये में गिरावट जारी है। महंगाई घटने और दरों में कटौती के बाद भी इसमें गिरावट देखने को मिल रही है। इसकी बड़ी वजह है यूएस- भारत की ट्रेड डील में हो रही देरी। साथ ही फआईआई की बिकवाली, आरबीआई द्वारा करेंसी में कम दखल देना यह सब इसमें गिरावट का कारण बन रही है। उन्होंने आगे कहा कि एफआईआई ने 18 बिलियन डॉलर भारतीय बाजार से निकाल चुके है। रुपये में और गिरावट की आशंका नजर आ रही है और यह जल्द ही रुपया 91 के स्तर के भी नीचे फिसल सकता है।

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