एसबीआई म्यूचुअल फंड के हेड (इनवेस्टमेंट) दिनेश बालाचंद्रन ने हमेशा वैल्यू और ग्रोथ इनवेस्टिंग के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है। वह जिन पोर्टफोलियो का प्रबंधन करते हैं, उन्हें देखने पर इसका पता चलता है। इनवेस्टमेंट की दुनिया में इस तरह का संतुलन कम देखने को मिलता है। आईआईटी बॉम्बे और फिर एमआईटी से पढ़ाई करने वाले बालाचंद्रन सीएफए चार्टरहोल्डर भी हैं। मनीकंट्रोल से बातचीत में उन्होंने इकोनॉमिक ग्रोथ और इनवेस्टमेंट सहित कई मसलों पर खुलकर बातचीत की। उन्होंने कहा कि वैल्यूएशन में कमी आ रही है। अगर कंजम्प्शन में रिकवरी जारी रहती है तो शेयरों में तेजी देखने को मिलेगी।
सरकार के रुख में आया है बदलाव
Corporate Earnings में रिकवरी की उम्मीदों के बारे में उन्होंने कहा कि पिछली चार तिमाहियों से अर्निंग्स में सुस्ती देखने को मिली है। इसकी बड़ी वजह फिस्कल कंसॉलिडेशन है। जीएसटी कंपनसेशन सेशन और इससे जुड़े उपाय कंसॉलिडेशन का हिस्सा रहे हैं। इसका असर ग्रोथ पर पड़ा है। फिलहाल एक्सटर्नल रिस्क भी दिख रहा है। लेकिन, इस बीच सरकार का रुख बदला है। पहले सरकार का रुख था कि हमने अपने हिस्से के उपाय कर दिए हैं। सरकार को अब आगे आने की जरूरत है। बाहरी दबाव नहीं बढ़ा होता तो जीएसटी रिफॉर्म्स नहीं हुआ होता।
बालाचंद्रन ने कहा कि उम्मीद है कि सरकार कंसॉलिडेशन की जगह ग्रोथ बढ़ाने वाले उपायों पर फोकस करेगी। अगर मौजूदा उपाय नाकाम रहते हैं तो सरकार को इकोनॉमी की रफ्तार बढ़ाने के लिए दूसरे उपाय करने होंगे। इससे अर्निंग्स में रिकवरी आएगी। इस वजह से मैं अर्निग्स में रिकवरी को लेकर तीन महीने, छह महीने और 12 महीने पहले के मुकाबले ज्यादा आशावान हूं। हमें अब भी सरकार के सपोर्ट की जररूत है। हम साइकिल के सबसे निचले स्तर के करीब हैं।
जीएसटी में कमी का बड़ा फायदा मिलेगा
जीएसटी के रेट्स में कमी के बारे में उन्होंने कहा कि अभी यह कहना मुश्किल है कि जीएसटी में कमी से होने वाली बचत का इस्तेमाल लोग किस तरह से करेंगे। लेकिन, यह सच है कि उनकी जेब में ज्यादा पैसे बचेंगे। 2022 में इनफ्लेशन का काफी ज्यादा असर कंजम्प्शन पर पड़ा था। कोविड के बाद सरकार के उपायों के बाद कंजम्प्शन तेजी से बढ़ा। लेकिन, इनफ्लेशन का खासकर ग्रामीण इलाकों में असर देखने को मिला। कंपनियों ने मार्जिन बचाए रखने के लिए कीमतें हाई बनाए रखीं। जीएसटी में कमी लागू होने से पहले ही कीमतों में स्थिरिता आ गई थी। इसलिए जीएसटी में कमी का बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद है। ग्रामीण इलाकों में सेंटिमेंट बेहतर हो रहा है।
एआई के असर के बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है
आईटी स्टॉक्स के बारे में उन्होंने कहा कि इस सेक्टर के लिए रिस्क है। डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी से शॉर्ट टर्म में इस पर कम असर पड़ सकता है। लेकिन, प्रतिस्पर्धा काफी ज्यादा है। दूसरी बात यह है कि आईटी स्टॉक्स सस्ते नहीं हैं। कंजम्प्शन में तो रिकवरी की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन, आईटी के मामले में ऐसा नहीं है। एआई एक बड़ी प्रॉब्लम है। अगले 5 से 10 साल की तस्वीर साफ नहीं दिख रही है। एआई इनसानों की जगह ले रहा है। यह इंटरनेट की तरह नहीं है, जिसने आईटी को बढ़ावा दिया।