सेबी के बोर्ड ने 12 सितंबर को हुई बैठक में आईपीओ के मामले में बड़ी कंपनियों को राहत देने का फैसला लिया। अब बड़ी कंपनियां अपने आईपीओ में अपने पेड-अप कैपिटल का मिनिमम 2.5 शेयर बेच सकेंगी। अभी लिस्टिंग के बाद 5 लाख करोड़ रुपये वाली कंपनियों को आईपीओ में कम से कम अपने पेड-अप कैपिटल का 5 फीसदी शेयर बेचने पड़ते हैं। इस नए नियम से मार्केट में बड़ी कंपनियां भी छोटे साइज के आईपीओ पेश कर सकेंगी।
एमपीएस नियम के पालन के लिए 3 साल की जगह 5 साल मिलेंग
जिन कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइजेशन 50,000 करोड़ से एक लाख करोड़ रुपये (लिस्टिंग के बाद) होगा, उन्हें 25 फीसदी के मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग (MPS) नियम के पालन के लिए 5 साल का समय मिलेगा। अभी ऐसी कंपनियों को इस नियम के पालन के लिए सिर्फ 3 साल का समय मिलता था। ऐसी कंपनियां जिनका मार्केट कैपिटलाइजेशन लिस्टिंग के बाद 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होगा, उन्हें मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग के नियम के पालन के लिए 10 साल मिलेगा।
आईपीओ के नियमों के पालन के लिए कंपनियों की चार नई कैटेगरी
सेबी के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने 12 सितंबर को बोर्ड की मीटिंग के बाद आज हुए अहम फैसलों के बारे में बताया। उन्होंने कहा, "हम मौजूदा 4,000 करोड़ लेवल की कैटेगरी के अलावा चार अतिरिक्त कैटेगरी पेश कर रहे हैं। पहला 4,000 करोड़ से 50,000 करोड़ का है। दूसरा, 50,000 करोड़ से 1 लाख करोड़ रुपये का है। तीसरा, 1 लाख करोड़ रुपये से 5 लाख करोड़ रुपये का है। चौथा 5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का है।"
1 लाख करोड़ तक के एमकैप की कंपनी छोटे आईपीओ पेश कर सकेगी
उन्होंने कहा ऐसी कंपनी जिसकी लिस्टिंग के बाद मार्केट कैपिटलाइजेशन 5,500 करोड़ रुपये लेकिन 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं होगा, उसके लिए मिनिमम पब्लिक ऑफर को संशोधित किया जा रहा है। इसे इश्यू के बाद 10 फीसदी के मार्केट कैपिटलाइजेशन के मौजूदा नियम से 1,000 करोड़ रुपये किया जा रहा है। प्लस इश्यू के बाद 8 फीसदी का मार्केट कैपिटलाइजेशन भी होगा।
5 लाख करोड़ एमकैप वाली कंपनी के लिए अलग नियम
सेबी चेयरमैन ने कहा, "जिस कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन इश्यू के बाद 1 लाख करोड़ रुपये और इससे ज्यादा होगा उसका मिनिम पब्लिक ऑफर (MPO) 6,250 करोड़ रुपये प्लस इश्यू के बाद मार्केट कैपिटलाइजेशन का कम से कम 2.75 फीसदी का हो सकता है। जिस कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन के इश्यू के बाद 5 लाख करोड़ रुपये का होगा उसका एमपीओ 15,000 करोड़ रुपये प्लस इश्यू के बाद मार्केट कैपिटलाइजेशन का 1 फीसदी होगा। "
लो-रिस्क फॉरेन इनवेस्टर्स के लिए सिंगल विंडो एक्सेस
सेबी के बोर्ड ने 12 सितंबर को हुई बैठक में लो-रिस्क फॉरेन इनवेस्टर्स को इंडियन मार्केट में एंट्री के नियमों को भी आसान बनाने का फैसला लिया गया। लो-रिस्क फॉरेन इनवेस्टर्स सिंगल विंडो एक्सेस के जरिए इंडियन सिक्योरिटीज मार्केट में पार्टिसिपेट कर सकेंगे। इस कदम का मकसद कंप्लायंस को आसान बनाना है। इससे दुनिया में इनवेस्टमेंट के अट्रैक्टिव डेस्टिनेशन के रूप में इंडिया की पहचान बनेगी।
REITs और InvITs को इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स का दर्जा
सेबी के बोर्ड ने मीटिंग में कुछ और बड़े फैसले लिए। इसमें रियल एस्टेट इनवेस्टमेंट ट्रस्ट्स (REITs) और इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट्स (InvITs) को इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स का दर्जा देने का प्रस्ताव शामिल है। इसके अलावा सेबी REIT और InvIT के नियमों के तहत स्ट्रेटेजिक इनवेस्टर की परिभाषा में बदलाव कर क्यूआईबी को इसके तहत लाएगा। रेगुलेटर ने स्टॉक एक्सचेंजों के गवर्नेंस फ्रेमवर्क में बदलाव करने का भी फैसला लिया। इसके लिए दो एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर्स की नियुक्ति को अनिवार्य बनाया जाएगा।