स्टॉक मार्केट्स से मोटी कमाई का सपना हर इनवेस्टर देखता है। जिस इनवेस्टर को कोई मल्टीबैगर मिल जाता है, उसका काम आसान हो जाता है। मल्टीबैगर का मतलब ऐसे स्टॉक से है, जो कुछ सालों में इनवेस्टर के पैसे को कई गुना कर देता है। हालांकि, हजारों शेयरों में से मल्टीबैगर स्टॉक को पहचानना आसान नहीं हैं। दिग्गज निवेशक और मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के चेयरमैन रामदेव अग्रवाल के पास मल्टीबैगर स्टॉक को पहचानने का गजब का हुनर है। सीएनबीसी-टीवी18 को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपने इस हुनर के बारे में बताया।
बाजार की नजर में आने से पहले स्टॉक को पहचान लें
Ramdev Agarwal के मुताबिक, आपको मार्केट की नजर पड़ने से पहले उन कंपनियों को पहचानना आना चाहिए, जिनके फंडामेंटल्स स्ट्रॉन्ग हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण बालकृष्ण इंडस्ट्रीज है। उन्होंने बताया कि उन्होंने इस कंपनी में तब निवेश किया था, जब इसका मार्केट कैपिटलाइजेशन सिर्फ 100 करोड़ रुपये था। तब इसका पी/ई रेशियो सिर्फ 1 था। इसका रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE) 30-40 फीसदी के बीच था। इतने मजबूत फंडामेंटल्स के बावजूद इस स्टॉक का मुश्किल से कोई खरीदार था।
ज्यादा कीमत पर किसी शेयर को खरीदने से बचें
अग्रवाल ने कंपनी के मैनेजमेंट से मुलाकात की। उनके बिजनेस को समझा। कंपनी पर भरोसा किया। उसके बाद निवेश किया। सिर्फ 2 सालों में शेयर की कीमत 100 से बढ़कर 1,200 रुपये पर पहुंच गई। उनकी सलाह है कि नए निवेशकों को तेज ग्रोथ वाली कंपनियों के शेयरों को ऊंची कीमतों पर खरीदने से बचना चाहिए। उनका मानना है कि ग्रोथ के साथ वैल्यूएशन का सही होना जरूरी है। वह किसी स्टॉक में निवेश के लिए PEG रेशियो (प्राइस-टू-अर्निंग्स टू ग्रोथ) को सबसे जरूरी टूल मानते हैं।
PEG रेशियो 1 या इससे कम होना चाहिए
PEG रेशियो 1 या इससे कम होने का मतलब है कि ग्रोथ के लिहाज से स्टॉक की वैल्यू फेयर है। ज्यादा PEG रेशियो का मतलब है कि स्टॉक महंगा है। अग्रवाल का मानना है कि ज्यादा कीमत पर किसी शेयर को खरीदने से आप शुरुआत में भी संभावित रिटर्न की कुर्बानी दे देते हैं। उनका दूसरा मंत्र अनुशासन है। उनका कहना है कि निवेश में अनुशासन सबसे जरूरी है। उन्होंने एशियन पेंट्स का उदाहरण दिया।
कई बार शेयर हाथ से निकल जाता है
अग्रवाल ने कहा कि वह एशियन पेंट्स के शेयर को एक खास कीमत पर खरीदना चाहते थे। जब इसमें 20 रुपये पर ट्रेडिंग हो रही थी, तब वह इसे 15 रुपये की कीमत पर खरीदना चाहते थे। जब वह इसे 20 रुपये पर खरीदना चाहते थे, तब इसकी कीमत बढ़कर 25 रुपये हो गई। जब उन्होंने इसे 23 रुपये में खरीदने का फैसला किया तो उनके एक दोस्त ने इस स्टॉक में गिरावट आने का इंतजार करने को कहा। लेकिन, इस स्टॉक में गिरावट नहीं आई। यह बढ़कर 90 रुपये पर पहुंच गया। वह इस मल्टीबैगर स्टॉक में निवेश का मौका चूक गए। लेकिन, उन्हें इस बात का कोई अफसोस नहीं है।
कम से कम 25 फीसदी आरओई वाली कंपनी में निवेश
रामदेव अग्रवाल ROE को काफी महत्व देते हैं। वह ऐसी कंपनियों में निवेश करना पसंद करते हैं, जिनका आरओई कम से कम 25 फीसदी हो। हालांकि, उनका मानना है कि सिर्फ आरओई से कंपनी के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल सकती है। वह वर्किंग कैपिटल मैनेजमेंट पर भी ध्यान देते है। उनका फोकस खास तौर पर इस बात पर होता है कि किसी कंपनी को अपना बकाया पैसा कितना जल्द मिल जाता है। उनका कहना है कि अगर किसी कंपनी का आरओई 25 फीसदी है, लेकिन उसे अपना पैसा मिलने में 100 से 120 दिन लग जाते हैं तो यह ठीक नहीं है।
निवेश से पहले कंपनी के बिजनेस को समझें
उनकी सलाह है कि इनवेस्टर को किसी कंपनी में निवेश करने से पहले उसके बारे में ठीक तरह से समझना जरूरी है। वह कंपनी के प्रमोटर्स से व्यक्तिगत रूप से मिलते हैं। वह प्रमोटर्स की प्रतिबद्धता, प्रोडक्ट्स की ताकत और डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क को समझने की कोशिश करते हैं। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि किसी कंपनी की ग्रोथ कितनी टिकाऊ हो सकती है। उनका कहना है कि टिप्स और शॉर्टकट्स से निवेश में पैसा नहीं बनता है। इसके लिए अनुशासन, फेयर वैल्यूएशन पर निवेश, स्ट्रॉन्ग कैश फ्लो और बिजनेस की गहरी समझ जरूरी है।