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शेयर बाजार में अब आगे मुनाफा होगा या घाटा? जानें निवेशकों के लिए क्या हो आगे की रणनीति

Stock Markets: शेयर बाजार ने तमाम चुनौतियों को पार करते हुए इस साल जबरदस्त रिटर्न दिया है। सेंसेक्स और निफ्टी इस साल अबतक करीब 21 फीसदी चढ़ चुके हैं। यह इसका पिछले 3 सालों में सबसे अधिक रिटर्न है। इस तेजी ने निवेशकों को शानदार मुनाफा कराया है, लेकिन इसके साथ बाजार का वैल्यूएशन भी आसमान पर पहुंच गया है और यही कई एक्सपर्ट्स के लिए चिंता की बात बन गई है

अपडेटेड Sep 27, 2024 पर 10:39 PM
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Stock Markets: तिमाही नतीजों के अलावा बाजार की नजर अब RBI की नीतियों पर रहेगी

Stock Markets: शेयर बाजार ने तमाम चुनौतियों को पार करते हुए इस साल जबरदस्त रिटर्न दिया है। सेंसेक्स और निफ्टी इस साल अबतक करीब 21 फीसदी चढ़ चुके हैं। यह इसका पिछले 3 सालों में सबसे अधिक रिटर्न है। इससे भी खास बात यह है कि साल 2015 के बाद से निफ्टी ने अब तक हर साल पॉजिटिव रिटर्न दिया है। इस तेजी ने निवेशकों को शानदार मुनाफा कराया है, लेकिन इसके साथ ही बाजार का वैल्यूएशन भी आसमान पर पहुंच गया है और यही कई एक्सपर्ट्स के लिए चिंता की बात बन गई है। निफ्टी 26,000 तो सेंसेक्स 85,500 का स्तर पार कर चुका है। ऐसे में अब बाजार की यहां से आगे कैसी चाल रहेगी? क्या निवेशकों को सावधान हो जाना चाहिए? या बाजार में अभी भी तेजी की गुंजाइश बाकी है, आइए जानते हैं-

सबसे पहले बात करते हैं वैल्यूएशन की। निफ्टी का फॉरवर्ड P/E रेशियो इस समय 20.8 गुना है। मिड-कैप और स्मॉल-कैप इंडेक्सों का वैल्यूएशन तो इससे भी अधिक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि घरेलू निवेशक पिछले कुछ समय से छोटे और मझोले शेयरों पर काफी पैसा लगा रहे हैं और इन शेयरों को ऊपर ले जाने में इनका काफी योगदान है। मिड-कैप का P/E रेशियो 33x और स्मॉल-कैप का 23x है। वैल्यूएशन अधिक होने पर आमतौर पर गिरावट का जोखिम बढ़ जाता है।

ऐसे में यह समझना जरूरी है कि शेयर बाजार की अगले 6 महीने में चाल कैसी रह सकती है? बाजार को जो फैक्टर्स सबसे अधिक प्रभावित करेगा, वह है कंपनियों के नतीजे। अक्टूबर आते ही कंपनियां दूसरी तिमाही के नतीजे जारी करने लगेंगी। इससे पहले जून तिमाही में निफ्टी की अर्निंग्स ग्रोथ लगभग 5% रहा था। लंबे समय के बाद निफ्टी की अर्निंग्स ग्रोथ हाई सिंगल डिजिट में रहा। इसके पीछे कंजम्प्शन में सुस्ती, प्राइवेट सेक्टर में कम पूंजीगत खर्च और सुस्त ग्लोबल रिकवरी जैसी वजहें रहीं।


तिमाही नतीजों के अलावा RBI की नीतियों पर भी बाजार की नजर रहेगी। अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में ब्याज दरें घटी हैं। ऐसे में अक्टूबर की बैठक के दौरान RBI पर भी ब्याज दरों को घटाने का दबाव हो सकता है। महंगाई हाल के महीनों में कम हुई है, लेकिन फूड इंफ्लेशन अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है। ऐसे में RBI इंटरेस्ट रेट को लेकर क्या फैसला करेगा? अभी इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है।

इन सबके अलावा अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव भी ग्लोबल मार्केट्स को प्रभावित करता है। अगर डेमोक्रेट्स पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस जीतती हैं, तो कारोबार सामान्य गति से चलता रहेगा। लेकिन अगर रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत होती है, तो इससे ग्लोबल आर्थिक और राजनीतिक दोनों स्थितियों पर असर पड़ सकता है।

साथ ही, यूक्रेन, मिडिल ईस्ट सहित दुनिया के कई देशों में जारी सैन्य संघर्ष भी बाजार की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं। अब तक मिडिलईस्ट और रूस-यूक्रेन में लड़ाई का ज्यादा असर ग्लोबल मार्केट पर नहीं पड़ा है। लेकिन, अगर मिडिलईस्ट की लड़ाई में बड़ी ताकतें कूदती हैं तो इसका असर मार्केट पर पड़ेगा।

अब वापस आते हैं वैल्यूएशन पर। मनीकंट्रोल की एनालिसिस बताती है कि भले ही मौजूदा वैल्यूएशन लॉन्ग-टर्म औसत से ऊपर हो, लेकिन बॉन्ड यील्ड और अर्निंग्स यील्ड के बीच का अंतर अब भी संतुलित है। यह अंतर 2.06% है, जो पिछले 10 सालों के औसत अंतर 2.4% से कम है। इसका मतलब है कि निफ्टी के पास अब भी लगभग 6% की बढ़ोतरी का मौका है। लेकिन अगर ग्लोबल और घरेलू जोखिमों से जुड़े फैक्टर्स एक्टिव होते हैं, तो बाजार में करेक्शन भी आ सकता है। लेकिन घरेलू निवेश और केंद्र के स्तर पर राजनीतिक स्थितरा से बाजार में बड़ा करेक्शन आने की संभावना कम है।

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