ICMR नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडिमोलॉजी के साइंटिफिक एडवाइजरी कमिटी के चेयरमैन और कोविड वर्किंग ग्रुप के सदस्य डॉ जेपी मुलियिल का कहना है कि इस बात की संभावना है कि ओमीक्रोन अपने समाप्ति की और जा रहा है और भारत के लिए यही बेहतर होगा कि एक बार डेल्टा वेरिएंट के कुल टेस्टेड सैपेंल के 1 फीसदी से नीचे जाने पर कोरोना के कारण लागू सारे प्रतिबंधों को हटा लेना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि कोरोना को लेकर तमाम तरह की संभावनाएं है। पहले से ही ओमीक्रोन के 2 वेरिएंट BA 1 और BA2 खोजे जा चुके हैं जो दुनिया के तमाम देशों में फैल चुके हैं लेकिन भारत में कोविड के तीसरी लहर से यह बात साफ समझ में आई है कि संक्रमण के तेजी से फैलाव के बावजूद कोविड वैक्सीन के व्यापक कवरेज के चलते कोरोना के नए वेरिएंट के जरिए फैला संक्रमण बहुत घातक नहीं साबित हुआ है और आगे भी यह बहुत खतरनाक साबित नहीं होगा।
डॉ जेपी मुलियिल ने आगे कहा कि कोरोना वायरल इंफेक्शन के चलते लोगों में फ्लू जैसे लक्षण उभरते दिखेंगे। लेकिन हमारे हाई डिग्री नैचुरल इंफेक्शन और टिकाकरण के रिकॉर्ड को देखते हुए इससे ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है।
देश में उपलब्ध सभी वैक्सीन इस बीमारी की गंभीरता को टालने में कामयाब रही हैं। हालांकि यह भी सही है कि जिन लोगों ने वैक्सीन की सभी खुराके ले ली हैं या जिन्होंने 4 खुराके भी ली हैं उनमें भी ओमीक्रोन का संक्रमण देखने को मिला है लेकिन यह खतरनाक साबित नहीं हुआ है। ऐसे में हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि अगर इसके संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती होने और इसके कारण होनेवाली मौत का खतरा जीरो है तो इस संक्रमण से डरने की जरुरत नहीं है।
देश में 15 से 17 साल के बच्चों का वैक्सीनेशन शुरु हो गया है जब जेपी मुलियिल से पूछा गया कि क्या और कम उम्र के बच्चों को भी यह वैक्सीन देना चाहिए तो उन्होंने कहा कि तमाम स्टडी से यह बात साबित हुई है कि 12 साल से कम उम्र के बच्चों में कोविड से जुड़ी मौत लगभग जीरो पर रही है। एडल्टस को वैक्सीन दिए जाने का एक खास उद्देश्य होता है। अगर कोविड के कारण बच्चों को कोई गंभीर समस्या नहीं होती और उनके मौत का खतरा लगभग जीरो है तो हमें उनको वैक्सीन देने की क्या जरुरत है।