स्टॉक मार्केट की भारी बिकवाली के बीच निवेशकों का पोर्टफोलियो डार्क रेड हो गया है। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि कमजोर रिटर्न और टैक्स के भारी बोझ के चलते भारतीय मार्केट का आकर्षण कम हो रहा है। ऐसे में लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG) पर टैक्स के रिव्यू की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है, जहां विदेशी निवेशकों से शेयर मार्केट से हुए मुनाफे पर टैक्स लिया जाता है। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि रेवेन्यू में गिरावट को देखते हुए सरकार टैक्स हटा तो नहीं सकती है लेकिन चाहे तो इसमें बदलाव तो कर ही सकती है।
पिछले साल बढ़ाई गई थी दरें
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल 2024 में बजट पेश करते समय कैपिटल गेन्स पर टैक्स की दरों में बढ़ोतरी का ऐलान किया था। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स की दर को 15 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स की दरों को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी किया गया था। एक साल के भीतर शेयर बेचने पर हुए मुनाफे को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहते हैं। खास बात ये है कि जब पिछले साल एलटीसीजी और एसटीसीजी पर टैक्स की दरों में बढ़ोतरी का ऐलान हुआ था तो कई एक्सपर्ट्स ने इसे वापस लेने की मांग की थी। हालांकि उस समय मार्केट में बुलिश माहौल को देखते हुए इस पर अधिक चर्चा नहीं हुआ लेकिन बेयरेश माहौल में एक बार फिर इसकी मांग ने जोर पकड़ लिया है।
क्या कहना है एक्सपर्ट्स का?
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के प्रमुख (प्राइम रिसर्च) देवर्ष वकील का मानना है कि एलटीसीजी टैक्स को खत्म कर देना चाहिए लेकिन इससे रेवेन्यू लॉस होगा तो सरकार होल्डिंग पीरियड ही 1 साल से बढ़ाकर 2-3 साल कर दे और फिर किसी तरह से इस टैक्स को हटा दे। उन्होंने आगे यह भी कहा कि लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स से खास रेवेन्यू भी तो नहीं मिलेगा क्योंकि अधिकतर पोर्टफोलियो पहले ही गहरे लाल हैं।
हाल ही में हेलियोस कैपिटल के समीर अरोड़ा ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) के लिए टैक्स दरों की कड़ी आलोचना की और इसे एक “बड़ी गलती” बताया था। एक मीडिया समारोह में उन्होंने कहा था कि सरकार को स्वीकार करना चाहिए कि विदेशी निवेशकों पर कैपिटल गेंस टैक्स लगाकर उन्होंने सबसे बड़ी गलती की है।
खेतान एंड कंपनी के पार्टनर दिवस्पति सिंह का भी कहना है मार्केट की मौजूदा गिरावट के साथ-साथ टैक्स के बोझ ने विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय मार्केट का आकर्षण कम कर दिया है। उन्होंने वैश्विक हेज फंड्स के लिए दोहरे टैक्स का मुद्दा भी उठाया।
प्राइमस पार्टनर्स के एमडी श्रवण शेट्टी का कहना है कि बड़े इंस्टीट्यूशंस के रूप में निवेश के लिए भारत एफआईआई को देखता आया है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इनकी जगह सोवरेन और पेंशन फंडों ने ले ली है। श्रवण का मानना है कि भारत को अब अपनी नीति में बदलाव की जरूरत है। उनका कहना है कि 7 फीसदी से अधिक की रफ्तार के लिए भारत को लॉन्ग-टर्म कैपिटल चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि निवेश प्रक्रिया को आसान बनाया जाए और टैक्स को कम किया जाए।