यूनिफी कैपिटल के फाउंडर मारन गोविंदसामी ने कहा है कि इंडियन मार्केट्स में हाई वैल्यूएशंस वाले कुछ खास सेक्टर्स में प्रमोटर्स अपनी हिस्सेदारी बेच रहे है। कम वैल्यूएशंस वाले सेक्टर्स में प्रमोटर्स अपनी हिस्सेदारी नहीं बेच रहे। यह कुछ सेक्टर्स में ओवरवैल्यूएशन का एक बड़ा संकेत है। एन महालक्ष्मी के साथ द वेल्थ फॉर्मूला के दिवाली ब्लॉकबस्टर एडिशन में गोविंदसामी ने मार्केट के बारे में कई बड़ी बातें बताईं।
एक साथ ज्यादा प्रमोटर्स के हिस्सेदारी बेचने का खास मतलब
उन्होंने कहा, "प्रमोटर्स के अपने हिस्सा बेचने की सैकड़ों वजहें हो सकती हैं। इनमें फैमिली सेटलमेंट्स, डायवर्सिफिकेशन या लिक्विडिटी की जरूरत प्रमुख हैं। लेकिन, जब एक साथ कई प्रमोटर्स ऐसा कर रहे हों तो इससे एक बड़ा संकेत मिलता है।" FY25 में 5.5 लाख करोड़ रुपये Market Capitalization वाले भारतीय शेयर बाजारों में प्रमोटर्स की कुल हिस्सेदारी 53 फीसदी थी। इसमें सरकार की 11.5 फीसदी हिस्सेदारी शामिल है, जो सरकारी कंपनियों के जरिए है। साथ ही इसमें मल्टीनेशनल कंपनियों की 9.5 फीसीद हिस्सेदारी है जो इंडिया में उनकी लिस्टेड सब्सिडियरीज के जरिए है। इमें 32 फीसदी हिस्सेदारी इंडियन प्राइवेट प्रमोटर्स की है।
इंडियन प्रमोटर्स और एमएनसी बेच रहे हिस्सेदारी
गोविंदसामी ने बताया कि प्रमोटर्स के हिस्सेदारी बेचने के संकेतों को समझने के लिए प्रमोटर्स की इन कैटेगरीज के बीच फर्क करना जरूरी है। उन्होंने कहा, "10 साल पहले सरकार विलफुल सेलर थी, जबकि एमएनसी विलफुल बायर्स थे। पिछले 1 से 2 सालों में हमने देखा है कि एमएनसी बेच रहे हैं, सरकार ने भी कोशिश की है, लेकिन सफल नहीं रही है। इंडियन प्रमोटर्स तेजी से बेच रहे हैं।"
मार्च 2020 में इंडियन प्रमोटर्स ने की थी बड़ी खरीदारी
ऐतिहासिक रूप से इंडियन प्राइवेट प्रमोटर्स कॉन्ट्रेरियन और मौकापरस्त रहे हैं। उन्होने कहा, "मार्च 2020 में कोविड की वजह से मार्केट क्रैश करने पर प्रमोटर्स सबसे बड़े खरीदार थे। 2008 में ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद उन्होंने मार्च 2020 में दूसरी सबसे बड़ी खरीदारी की थी। जब दुनिया की रफ्तार पर ब्रेक लग गया था और 10 महीनों में सूचकांक 60 फीसदी गिर गए थे तब प्रमोटर्स ने खरीदारी की, क्योंकि तब उन्हें बिजनेसेज में वैल्यू दिखी थी, न कि पोर्टफोलियो ट्रेड्स।"
सभी सेक्टर्स में प्रमोटर्स नहीं बेच रहे हिस्सेदारी
अब नजरिया बदल गया है। गोविंदसामी ने कहा, "अब हम देख रहे हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों और इंडियन प्रमोटर्स दोनों के अपनी हिस्सेदारी बेचने की रफ्तार जोर पकड़ रही है। लेकिन, ऐसा सभी सेगमेंट्स में नहीं हो रहा। उदाहरण के लिए आप आईटी में प्रमोटर्स को हिस्सेदारी बेचते हुए नहीं देख रहे हैं। ऐसी कंपनियां हैं, जिनमें प्रमोटर्स की 60-70 फीसदी हिस्सेदारी है और उन्होंने उसे नहीं बेचा है। भले ही उनकी हिस्सेदारी का मूल्य अरबों रुपये है।"
सिर्फ महंगे माने जाने वाले सेक्टर्स में दिख रही बिकवाली
यूनिफी कैपिटल के फाउंडर ने कहा, "प्रमोटर्स के अपनी हिस्सेदारी बेचने में फ्यूचर अर्निंग्स और वैल्यूएशंस के उनके अनुमान का बड़ा रोल है। और अभी बाजार के सिर्फ उन हिस्सों में हिस्सेदारी बेची जा रही है, जिनमें वैल्यूएशंस हाई है।" गोविंदसामी का कहना है कि अभी फॉरेन इनवेस्टर्स नहीं बल्कि प्रमोटर्स सबसे बड़े सेलर्स हैं। यह एक बड़ा संकेत है, क्योंकि यह बिकवाली सिर्फ महंगे माने जाने वाले सेक्टर्स में दिख रही है। डोमेस्टिक लिक्विडिटी इस सप्लाई का मुकाबला नहीं कर सकती।