Vedanta के फाउंडर अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) ने 29 सितंबर को अपने पांच बिजनेसेज को डीमर्ज करने का ऐलान किया। इनमें अल्युमीनियम, ऑयल एंड गैस, बेस मेटल्स, फेरस और पावर शामिल हैं। अग्रवाल ने कहा कि हमारा मानना है कि बिजनेस यूनिट्स को डीमर्ज करने से वैल्यू अनलॉक होगी और हर वर्टिकल की ग्रोथ की रफ्तार बढ़ेगी। अभी ये बिजनेसेज नेचुरल रिसोर्सेज के बड़े अंब्रेला के तहत आते हैं। उन्होंने कहा कि इनमें से प्रत्येक का अपना मार्केट है। प्रत्येक बिजनेस के अपने डिमांड- सप्लाई ट्रेंड्स हैं। डीमर्जर के बाद टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से हर बिजनेसेज को प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्होंने बोर्ड की बैठक के बाद यह बयान दिया था। यह कुछ शब्दों पर ध्यान देने की जरूरत है-'अनलॉकिंग वैल्यू', 'तेज ग्रोथ' और 'प्रोडक्टिविटी में वृद्धि'।
10 साल पहले कंपनी ने किया था विलय का ऐलान
मजेदार बात यह है कि वेदांता ने एक दशक पहले भी ये दलीलें दी थीं, जब Vedanta Resources Ltd ने अपने बिजनेसेज को मर्ज करने का ऐलान किया था। 2006 में वेदांता रिसोर्सेज ने Sesa Goa में 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। चार साल बाद उसने Cairn India में 20 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। 2011 में उसने केयर्न इंडिया में अतिरिक्त 38.5 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। इससे कंपनी में उसकी कुल हिस्सेदारी बढ़कर 58.5 फीसदी हो गई।
Vedanta ने 25 फरवरी, 2012 को Sesa Goa और Sterlite Industries के विलय का ऐलान किया था। दोनों को मिलाकर एक कंपनी बनाई गई, जिसका नाम Sesa Sterlite था। Cairn India में वेदांता की सीधी हिस्सेदारी भी सेसा गोवा को ट्रांसफर कर दी गई। इसके साथ ही कंपनी पर 5.9 अरब डॉलर का कर्ज भी ट्रांसफर हो गया। अनिल अग्रवाल ने इस कवायद के पीछे की वजह बताई।
25 फरवरी, 2012 को कंपनी फाइलिंग में उन्होंने कहा कि Sesa Sterlite सबसे बड़ी डायवर्सिफायड नेचुरल रिसोर्सेज कंपनियों में से एक होगी। यह इंडिया की इंडस्ट्रियल ग्रोथ में कंट्रिब्यूट करेगी। उन्होंने इस ट्रांजेक्शन को नेचुरल इवॉल्यूशन बताते हुए कहा कि इससे ग्रुप का स्ट्रक्चर ज्यादा आसान हो जाएगा। Sesa Sterlite इस ग्रुप की मुख्य ऑपरेटिंग कंपनी होगी। इसकी हाई क्वालिटी एसेट्स, ग्रोथे के अनुमान और स्ट्रॉन्ग मैनेजमेंट की वजह से यह शेयरहोल्डर्स के लिए वैल्यू क्रिएट करने की मजबूत स्थिति में होगी।
डीमर्जर के पक्ष में भी कंपनी दे रही वहीं दलीलें
इस बार भी जब वेदांता ने डीमर्जर का ऐलान किया है तब उसने उन्हें प्रमुख शब्दों को दोहराया है। इनमें ग्रुप का आसान स्ट्रक्चर, शेयहोल्डर्स के लिए वैल्यू आदि शामिल हैं। सवाल यह है कि मर्जर और डीमर्जर दोनों के नतीजें एक जैसे कैसे हो सकते हैं? इस बारे में मनीकंट्रोल ने कंपनी का जवाब जानने के लिए ईमेल भेजा था। उसका कोई जवाब नहीं आया। इस बीच, 29 सितंबर को कंपनी की कॉन्फ्रेंस कॉल में CLSA के इंद्रजीत अग्रवाल ने 2012-13 की वेदांता की मर्जर कवायद के बारे में सवाल पूछे।
आखिर पिछले 10 साल में क्या बदल गया?
अग्रवाल ने वेदांता के मैनेजमेंट से पूछा कि पिछले 5, 7 और 10 साल में क्या बदल गया है? करीब दो साल पहले वेदांता में प्रेसिडेंट-स्ट्रेटेजी ओमर डेविस ने कहा था कि एनर्जी ट्रांजिनस, चाइना प्लस वन, इंडिया की ग्रोथ, इनवॉर्ड इनवेस्टमेंट और रिसोर्स नेशनलाइजेशन शुरुआती थीम थे। ये तब उतने विकसित नहीं थे, जितने आज हैं। उन्होंने कई दूसरी दलीलें भी पेश की थी।
एनालिस्ट्स कंपनी की दलीलों से संतुष्ट नहीं
कई एनालिस्ट्स मीडियम टर्म में कंपनी की संभावनाओं को लेकर उत्साहित नहीं हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि डीमर्जर प्लान के ऐलान के ठीक बाद S&P Global Ratings ने वेदांता की पेरेंट कंपनी Vedanta Resources (VRL) की रेटिंग घटा दी थी। उसने बॉन्ड एक्सटेंशन एक्सरसाइज को देखते हुए यह कदम उठाया। VRL के बॉन्ड अगले साल जनवरी में मैच्योर होने जा रहे हैं। कंपनी इस बारे में अपनी लायबिलिटी को देखते हुए बॉन्ड्स निवेशकों से बातचीत कर रही है।
कुछ दूसरे एनालिस्ट्स का कहना है कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस से जुड़े मसले, कर्ज पेमेंट को लेकर पारदर्शिता का अभाव और एक कंपनी से दूसरी में फंड के ट्रांसफर को लेकर स्थिति अनिश्चित दिख रही है। इनवेस्टर्स भी इन मसलों को लेकर स्थिति स्पष्ट होने का इंतजार कर रहे हैं।