Vodafone Idea Shares: वोडाफोन आइडिया का शेयर 83% तक गिरकर ढाई रुपये पर आ सकता है। आपने भी यह हेडलाइन जरूर सुनी होगी। यह हेडलाइन बनी थी दुनिया की जानी-मानी ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) की एक रिपोर्ट पर, जिसमें उसने वोडाफोन आइडिया के शेयर तुरंत बेचने की सलाह दी थी। लेकिन खास बात यह है कि इसी गोल्डमैन सैक्स ने वोडाफोन आइडिया के FPO में बतौर एंकर निवेशक करोड़ों रुपये के शेयर खरीदे थे। यानी एक तरह वो शेयर बेचने की सलाह दे रहा है और दूसरी तरफ खुद ही करोड़ों के शेयर खरीद रहा है। आखिर यह पूरा गड़बड़झाला क्या है? सोशल मीडिया पर तो यह भी कहा जा रहा है कि कुछ बड़े ब्रोकरेज फर्म वोडाफोन आइडिया में गेम करने की कोशिश कर रहे हैं? इन सब दावों की हकीकत क्या है, आज के इस वीडियो में हम इसी बार में बात करेंगे। तो आइए वीडियो शुरू करते हैं
गोल्डमैन सैक्स ने 6 सितंबर को Vodafone Idea को लेकर एक रिपोर्ट निकाली। इस रिपोर्ट में उसने वोडाफोन के शेयर को एक बार फिर से बेचने की सलाह दी। ब्रोकरेज ने कहा कि कंपनी ने हाल ही में FPO और दूसरे तरीकों से फंडिंग जुटाई है, लेकिन इससे उसके मार्केट में अपनी घटती हिस्सेदारी रोकने में कोई मदद नहीं मिलेगी। गोल्डमैन सैक्स ने कहा कि वोडाफोन आइडिया की राइवल कंपनियां अपने कारोबार के विस्तार के लिए उसके मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक खर्च कर रही हैं। इसके चलते Vodafone Idea का मार्केट शेयर अगले 3-4 सालों में 3 प्रतिशत तक घट सकता है।
इस रिपोर्ट के बाद, Vodafone Idea के शेयर मार्केट में 14 प्रतिशत तक गिर गए। बाजार में हड़कंप मच गया और निवेशकों ने अपने शेयर बेचने की होड़ लगा गई। लेकिन तभी इंटरनेट पर कुछ स्मार्ट इन्वेस्टर्स ने वोडाफोन आइडिया के हालिया FPO (Follow-On Public Offer) की डॉक्युमेंट्स खंगालीं और पता चला कि गोल्डमैन सैक्स ने खुद इस FPO में एंकर इन्वेस्टर के रूप में 81.83 लाख शेयर खरीदे थे।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये कैसे संभव है? एक तरफ गोल्डमैन सैक्स कह रहा है कि VI की हालत खराब है और दूसरी तरफ वही गोल्डमैन सैक्स उसके शेयर खरीद रहा है। क्या ये कोई गेम है? या यहां कुछ गड़बड़ है?
तो चलिए, इसका भी राज जानते हैं। असल में, जो हम गोल्डमैन सैक्स के नाम से निवेश देखते हैं, वो जरूरी नहीं है कि वो उसका खुद का पैसा हो। दरअसल, कई विदेशी निवेशक, भारतीय बाजारों में निवेश करना चाहते हैं, लेकिन वो खुद को FPI (Foreign Portfolio Investor) के रूप में रजिस्टर कराने का झंझट नहीं पालना चाहते हैं। ऐसे में वे ODIs यानी ऑफ-शोर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए निवेश करते हैं। ये ODI वो किसी पहले से रजिस्टर्ड FPI से लेते हैं, जो उनके बदले में निवेश करता है।
गोल्डमैन सैक्स भी अपने क्लाइंट्स के लिए एक FPI के तौर पर काम करती है और उनके पैसों को भारत के शेयर बाजार में लगाने में मदद करती है। इसका मतलब ये है कि जब उन्होंने वोडाफोन आइडिया के FPO में भाग लिया, तो वो किसी क्लाइंट्स के लिए शेयर खरीद रहे थे, न कि अपने लिए। गोल्डमैन सैक्स के प्रवक्ता ने भी यही बताया कि उसका इनवेस्टमेंट बैंकिंग का डिपार्टमेंट और स्टॉक को लेकर रिसर्च डिपार्टमेंट, दोनों पूरी तरह से अलग हैं और स्वतंत्र होकर काम करते हैं।
यह मामला सिर्फ गोल्डमैन सैक्स तक ही सीमित नहीं है। स्विट्जरलैंड की दिग्गज ब्रोकरेज फर्म UBS के साथ भी ऐसा ही देखने मिला है। UBS ने अपने दो फंड के जरिए FPO में वोडाफोन आइडिया के करीब 4.45 करोड़ शेयर खरीदे थे। इन शेयरों को 11 रुपये के भाव पर खरीदा गया था। इसके बाद UBS ने एक रिपोर्ट निकाली कि वह वोडाफोन के शेयर पर काफी बुलिश है और उसने इसे 'Buy' रेटिंग के साथ 19 रुपये का टारगेट प्राइस दिया है। लेकिन इस रिपोर्ट के 2 दिन बाद ही UBS के फंड्स ने करीब साढ़े 15 रुपये पर ही वोडाफोन के शेयर बेच दिए।
ये सारी चीजें हमें बताती हैं कि जब भी बड़े इनवेस्टमेंट या ब्रोकरेज फर्म किसी स्टॉक में निवेश करते हैं, तो हर बार इसका मतलब ये नहीं होता कि वो उस कंपनी के भविष्य को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। कई बार ये केवल अपन क्लाइंट्स के लिए ट्रेड करते हैं, और उनके रिसर्च डिपार्टमेंट की राय उससे बिल्कुल अलग हो सकती है। इसलिए यह जरूरी है शेयर बाजार की हर खबर को ध्यान से समझें।