कम से कम तीन बार ऐसा हुआ है जब दिग्गज निवेशक वॉरेन बफेट (Warren Buffett) ने अपने पर्सनल अकाउंट से समान तिमाही या एक तिमाही बाद उन्हीं शेयरों की खरीद-बिक्री की, जिसे उनकी कंपनी बर्कशायर हैथवे (Berkshire Hathaway) ने खरीदा-बेचा। यह खुलासा प्रो पब्लिका (Pro Publica) की एक रिपोर्ट से हुआ है। वॉरेन बफेट इसी बर्कशायर हैथवे के चेयरमैन और सीईओ हैं। वहीं प्रो पब्लिका न्यूयॉर्क की एक गैर-लाभकारी संस्था है जो खोजी पत्रकारिता करती है। प्रोपब्लिका का दावा है कि उसने ये डिटेल्स वॉरेन बफेट के उन ट्रेड्स से निकाला है जो इंटर्नल रेवेंयू सर्विस (IRS) डेटा से लीक हुए हैं।
सनसनीखेज क्यों हैं ऐसी खरीद-बिक्री
अब सवाल ये उठता है कि वारेन बफेट कुछ भी खरीदे-बेचें, इसमें इतना सनसनीखेज क्यों है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वॉरेन बफेट लंबे समय से कहते रहे हैं कि बर्कशायर जो खरीदे, उसे वह भी खरीदे हैं तो यह हितों का टकराव हो सकता है और इससे वह बचना चाहते हैं। करीब 11 साल पहले 2012 में उन्होंने जेपी मॉर्गन चेज (JP Morgan Chase) के निवेश के बारे में खुलासा किया था। उन्होंने कहा था कि यह निवेश इसलिए किया क्योंकि बर्कशायर के पास इसका कोई शेयर नहीं है। वह वेल्स फार्गो (Wells Fargo) में पैसे लगाना चाहते थे लेकिन उन्होंने खुद कहा था कि चूंकि बर्कशायर के पोर्टफोलियो में ये था, तो वह इसे नहीं ले सकते।
खोजी रिपोर्ट में वेल्स फार्गो के उदाहरण से ही शुरुआत हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक वॉरेन बफेट ने बाकी किसी बड़े बैंक की तुलना में इस बैंक के बिजनेस मॉडल का बखान किया था। उन्होंने यह बखान 20 अप्रैल 2009 को एक इंटरव्यू के दौरान की थी जब बैंक वैश्विक मंदी से जूझ रहे थे। फिर चार दिन बाद ही 24 अप्रैल को बैंक के शेयर 13 फीसदी उछल गए थे। उस दिन वॉरेन बफेट ने निजी खाते से वेल्स फार्गो के 2 करोड़ डॉलर के शेयर बेचे थे। इसके अलावा अक्टूबर 2012 में वॉरेन बफेट ने जॉनसन एंड जॉनसन के 3.5 करोड़ डॉलर के शेयर बेचे थे। उसी के आस-पास बर्कशायर ने भी यह शेयर बेचा था। अगली दो तिमाहियों में बर्कशायर ने इसके और शेयर बेचे थे। प्रोपब्लिका ने वॉरेन बफेट के उस बयान को सामने रखा है जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि वह बर्कशायर के खरीदे हुए शेयर नहीं खरीद सकते हैं तो मजबूरी में उन्हें दूसरे विकल्प की तरफ जाना पड़ता है।
Warren Buffett के Berkshire Hathaway की पॉलिसी क्या है
बर्कशायर की पॉलिसी ये है कि अगर किसी एंप्लॉयी को ये पता है कि कंपनी ने किस शेयर में पैसे लगाए हैं या अपनी पोजिशन में बदलाव किया है तो उसमें एंप्लॉयी को उसकी तब तक खरीद-बिक्री करनी चाहिए, जब तक इसका सार्वजनिक खुलासा नहीं हो जाता है। प्रोपब्लिका की रिपोर्ट के मुताबिक 2011 में बर्कशायर के डेविड सोकोल को इसीलिए इस्तीफा देना पड़ा था क्योंकि उन्होंने एक ऐसी केमिकल कंपनी के शेयर खरीदे थे, जिसे बर्कशायर ने भी खरीदा था। इसी के आस-पास ही वॉरेन बफेट ने कहा था कि नियम समस्या नहीं हैं, बल्कि नियम तोड़ने वाले लोग समस्या हैं।