- रवि अनंतनारायणन
- रवि अनंतनारायणन
पतंजलि फूड्स (Patanjali Foods) के खिलाफ स्टॉक एक्सचेजों की कार्रवाई को लेकर अगर बाबा रामदेव (Baba Ramdev) से उनकी राय पूछी जाती, तो वे शायद अपने खास अंदाज में जवाब देते और पूछते कि 'क्या हम कहीं भाग रहे हैं। या हम बस इस शर्तों का अनुपालन करने ही वाले थे कि तभी ये कार्रवाई हो गई। या फिर वे ऐसी दूसरी कंपनियों की ओर इशारा कर सकते थे, जिनकी पब्लिक शेयरहोल्डिंग कम है लेकिन उनपर ऐसी कार्रवाई नहीं हुई है (उदाहरण के लिए PSU को अक्सर विशेष छूट मिल जाती है)। हालांकि इस खबर के बाद बाजार ने जैसी प्रतिक्रिया दी, वो साफ बताता है कि इनवेस्टर्स इस मामले में क्या सोच रहे हैं।
स्टॉक एक्सचेजों ने न्यूनतम पब्लिक शेयरहोल्डिंग नियम का पालन न करने पर पतंजलि फूड्स के प्रमोटरों के शेयर जब्त कर दिए और उनके लेन-देन पर रोक लगा दी है। इस खबर के बाद दिन के कारोबार में पतंजलि फूड्स का शेयर 4.8 फीसदी गिर गया था।
रिजॉल्यूशन प्लान के तहत कैपिटल रिस्ट्रक्चरिंग के चलते शुरुआत में कंपनी की पब्लिक शेयरहोल्डिंग गिरकर 1.1 फीससदी पर आ गई थी। लेकिन बाद में कंपनी ने 650 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी को फॉलो-ऑन-पब्लिक ऑफर (FPO) के जरिए बेचकर पब्लिक शेयरहोल्डिंग को बढ़ाकर 19.18 फीसदी कर लिया। हालांकि नियमों के मुताबिक, शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनी को अपनी न्यूनतम पब्लिक शेयरहोल्डिंग को बढ़ाकर 25% तक ले जाना होता है। इस नियम को पूरा करने के लिए पतंजलि फूड्स के पास रिजॉल्यूशन प्लान की तारीख से 3 साल तक का समय था। रिजॉल्यूशन प्लान 19 दिसंबर 2019 को आया था।
ऐसा लगता है कि रेगुलेटर ने इस समयसीमा के बीतने के बाद भी कुछ महीने तक पतंजलि को इस नियम को पूरा करने की छूट दी थी। हालांकि ऐसा नहीं किए जाने पर अब एक्सचेंजों ने कार्रवाई की है। पतंजलि फूड्स ने अपनी पोस्ट-अर्निंग कॉन्फ्रेस कॉल में 31 दिसंबर की तारीख का जिक्र किया था और कहा था कि वे इस तारीख तक डॉक्यूमेंट दाखिल करने और अगले कुछ महीने में इसके पूरा होने की उम्मीद कर रहे हैं।
शेयरों की घटती कीमत और प्राइमरी मार्केट में कमजोर माहौल, कुछ ऐसे कारण हो सकते हैं जिसके चलते प्रमोटर अभी फंड जुटाने से हिचकिचा रहे हैं। अक्टूबर के अंत से पतंजलि फूड्स के शेयरों में अबतक 35 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। ग्लोबल स्तर पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी और निवेशकों के कमजोर सेंटीमेंट का मतलब है कि नए शेयरों के लिए भूख कम हो गई है और ऐसी स्थिति में प्रमोटरों की ओर नए इश्यू को कुछ समय के लिए टालने की खबरें असामान्य नहीं हैं।
शायद पतंजलि फूड्स के प्रमोटर अपनी बाजार की स्थिति का हवाला देते हुए शेयरहोल्डिंग घटाने के लिए समयसीमा को 31 दिसंबर से आगे बढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे। लेकिन ऐसा लगता है कि इसे अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
पतंजलि फूड्स ने एक स्पष्टीकरण जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि जब्ती की कार्रवाई से उनके प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ेगा और उनके पास एक मजबूत मैनेजमेंट टीम है। प्रमोटरों ने कंपनी को बताया कि वे अपनी हिस्सेदारी कम करने के तरीकों पर चर्चा कर रहे हैं और 'अगले कुछ महीनों' में आवश्यक कटौती के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि पिछले FPO के बाद से प्रमोटरों की हिस्सेदारी पहले से ही 8 अप्रैल तक लॉक-इन अवधि में थे और इन्हें गिरवी नहीं रखा गया है। हालांकि ये असल मुद्दे नहीं हैं।
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मुद्दा यह है कि वे अपनी जिम्मेदारी को जानते थे और इसका पालन करने में असमर्थ थे। यह कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मुद्दा बन जाता है। इंस्टीट्यूशन शेयरधारक इन मुद्दों के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं और यह सही भी है। यह कंपनी के बोर्ड में शामिल प्रमोटरों के लिए एक व्यवधान बन जाता है। भले ही कंपनी के रोजाना के कारोबार को संभालने वाला सीईओ कोई प्रोफेशनल हो। यह एक गलत कदम है लेकिन अब जब यह हो गया है तो सवाल यह है कि आगे क्या?
जाहिर तौर पर प्रमोटरों की शेयरहोल्डिंग को अगले कुछ महीनों में कम करने पर काम चल रहा है और इसका तरीका तय किया जाना है। क्या प्रमोटर अपनी हिस्सेदारी बेच देंगे या पतंजलि फूड्स उसी तरह नए शेयर जारी करेगी जैसे उसने FPO में किया था? वे निवेशक अभी भी मुनाफे की स्थिति में हैं और इसलिए कंपनी को किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है, जो अन्य जारीकर्ताओं को शेयरों के ऑफर प्राइस से नीचे आने के कारण हो सकता है।
यदि प्रमोटर अपनी हिस्सेदारी बेचते हैं, तो उन्हें न्यूनतम 5.82 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की आवश्यकता होगी। मौजूदा बाजार भाव पर इस हिस्सेदारी की कीमत करीब 2,000 करोड़ रुपये है। इस हिस्सेदारी के लिए वे अधिक वैल्यूएशन की मांग कर सकते हैं, यह देखते हुए कि अक्टूबर के बाद से इसके शेयरों में तेज गिरावट आई है। लेकिन बायर्स इसे बाजार भाव के करीब रखने के लिए जोर दे रहे होंगे। यहां अब बायर्स का पलड़ा भारी होगा क्योंकि स्टॉक एक्सचेंजों की कार्रवाई के बाद प्रमोटरों पर खुले तौर पर दबाव है। एक विकल्प यह भी है कि पतंजलि किसी न किसी रूप में नए शेयर जारी करे।
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