69 साल के किसान वरसंगजी ने बीएससी (केमिस्ट्री) की पढ़ाई की है। नौकरी के साथ-साथ उनका खेती से गहरा जुड़ाव रहा है। कई सालों से वे प्राकृतिक खेती कर रहे हैं और अब आधुनिक तकनीक की मदद से “अंजीर” उगा रहे हैं।
वरसंगजी ने दो बीघा जमीन में 370 हनी टेस्टा किस्म के अंजीर के पौधे लगाए हैं, जो उन्होंने मोरबी के मोटा अंकड़िया गांव से ₹80 प्रति पौधे खरीदे थे। उन्होंने इनमें ड्रिप सिंचाई तकनीक अपनाई और पौधों को 12×8 फीट की दूरी पर लगाया।
लगाने के कुछ ही महीनों में पौधों ने फल देना शुरू कर दिया है। डेढ़ साल में पौधे पूरी तरह तैयार हो जाते हैं और उसके बाद लगातार सालों तक फल देते रहते हैं।
एक बीघा में लगभग ₹26,000 की लागत आती है यानी कुल 2 बीघा में ₹40,000 खर्च हुए। लेकिन बाजार में हरे अंजीर ₹200/kg में बिकते हैं, जबकि सूखे अंजीर की कीमत ₹1,500/kg तक जाती है। इससे कमाई की संभावना दिखती है।
किसान ने रासायनिक खाद और दवाओं को पूरी तरह त्याग दिया है। वो गाय के गोबर और गोमूत्र आधारित प्राकृतिक तरीका अपनाकर खेती करते हैं। उनका मानना है कि इससे मिट्टी की सेहत बनी रहती है और फसल की गुणवत्ता बढ़ती है।
अंजीर के पौधों के बीच खाली जगह को खाली नहीं छोड़ा गया है। वरसंगजी ने अंतर-फसल के रूप में हल्दी और अदरक बोई हैं ताकि पौधे बढ़ने तक भी उनको आमदनी मिलती रहे।
उन्होंने ग्राफ्टिंग (Air Layering) तकनीक से खुद अंजीर के नए पौधे तैयार करने की कोशिश की, जिसमें लगभग 50% सफलता मिली है। इससे भविष्य में पौधों की लागत भी बचेगी।
नंदसन गांव के ग्राम सेवक चिरागभाई मौर्य ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि बताते हैं कि आसपास किसी किसान ने अब तक अंजीर की खेती नहीं की। वरसंगजी आगे बढ़कर नई राह बना रहे हैं और अब उनका बगीचा इलाके के किसानों को प्रेरणा दे रहा है।