
कर्ज चुकाने का जिम्मा आपका: अगर मुख्य उधारकर्ता लोन नहीं चुका पाता, तो बैंक सीधे गारंटर से वसूली कर सकता है। बिना किसी चेतावनी के बैंक आपके बैंक अकाउंट, सैलरी या प्रॉपर्टी को सीज कर सकता है। कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। इसलिए समझदारी से निर्णय लेना बेहद जरूरी है।
क्रेडिट स्कोर पर असर: अगर उधारकर्ता EMI नहीं चुकाता, तो आपका क्रेडिट स्कोर प्रभावित होगा। भविष्य में लोन लेना मुश्किल हो सकता है। बैंक आपको ऊंची ब्याज दर पर लोन दे सकता है या outright मना कर सकता है। इस वजह से वित्तीय योजनाओं में रुकावट आ सकती है।
भारी-भरकम जुर्माना: डिफॉल्ट होने पर सिर्फ मूल राशि ही नहीं, बल्कि ब्याज, लेट फीस, पेनाल्टी और प्रोसेसिंग फीस भी चुकानी पड़ सकती है। बड़े लोन की स्थिति में यह जीवनभर की आर्थिक परेशानी बन सकती है। इसलिए गारंटर बनने से पहले राशि और जोखिम को समझें।
कोर्ट-कचहरी का झंझट: कर्ज डिफॉल्ट होने पर बैंक आपको नोटिस भेज सकता है। कानूनी केस और वकील की फीस भी आपके जिम्मे आएगी। लगातार कोर्ट के चक्कर और समय की कमी मानसिक दबाव बढ़ा सकते हैं।
गारंटर बनने के बाद पीछा छुड़ाना मुश्किल: एक बार गारंटर बनने के बाद इससे निकलना लगभग नामुमकिन होता है। जब तक उधारकर्ता दूसरा गारंटी देने वाला नहीं लाता, आप बंधे रहेंगे। कई मामलों में बैंक गारंटर को हटाने की इजाजत नहीं देता।
रिश्तों में दरार और तनाव: करीबी दोस्त या रिश्तेदार के लिए गारंटर बनने पर लोन डिफॉल्ट होने पर रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है। आर्थिक दबाव मानसिक परेशानियों और डिप्रेशन का कारण बन सकता है। इसलिए भावनात्मक पहलू को भी ध्यान में रखें।
संपत्ति तक जब्त होने का खतरा: अगर मामला कोर्ट तक गया और फैसला आपके खिलाफ आया, तो बैंक आपके बैंक अकाउंट, गाड़ी, घर या सोने जैसी संपत्ति को जब्त कर सकता है। इसका सीधा असर आपकी वित्तीय सुरक्षा पर पड़ता है।
कानूनी धाराओं में मामला: Indian Contract Act, 1872 की धारा 126, 128, 133 और Bharatiya Nyaya Sanhita 2023 की धारा 318, 319 जैसी धाराओं के तहत केस दर्ज हो सकता है। धोखाधड़ी या पहचान बदलकर पैसे लेने जैसी परिस्थितियों में कानूनी कार्रवाई होती है।
सावधानीपूर्वक दस्तावेज जांचें: गारंटर बनने से पहले सभी कानूनी दस्तावेज ध्यान से पढ़ें। किसी वित्तीय विशेषज्ञ की सलाह लें और अपनी आर्थिक स्थिति का आंकलन करें। यह जोखिमों को कम करने का पहला कदम है।
सही स्थिति में ही गारंटर बनें: अगर उधारकर्ता भरोसेमंद और आर्थिक रूप से सक्षम है, तभी गारंटर बनने पर विचार करें। थोड़ी भी शंका होने पर साफ इनकार करना ही सुरक्षित है। यह फैसला आपके वित्तीय और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए अहम है।