केरल की राजनीति में बड़े उलटफेर के संकेत, क्या BJP की चाल सबको देगी मात!

हर्ष वर्धन त्रिपाठी
भारतीय राजनीति में इस तरह के बदलाव की उम्मीद शायद ही किसी ने की होगी। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री से दिल्ली की तरफ़ बढ़े थे तो कहा गया था कि गुजरात की राजनीति अलग है और दिल्ली की अलग, लेकिन नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने और दोबारा 2019 में पूर्ण बहुमत से प्रधानमंत्री बन गए। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए हो या फिर प्रधानमंत्री रहते नरेंद्र मोदी की राजनीति के केंद्र में हमेशा विकास की ही राजनीति रही। 2014 से पहले विकास के आधार पर राजनीतिक बढ़त बना पाना लगभग असंभव माना जाता रहा, लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसे कर दिखाया। हालाँकि, नरेंद्र मोदी की विकास की राजनीति के साथ हमेशा समाज के वह मुद्दे भी बेहद सलीके से गुँथे रहते हैं, जिसे धर्म, जाति, क्षेत्र की राजनीति कहा जाता है।
यह ज़रूर है कि नरेंद्र मोदी की धर्म, जाति, क्षेत्र विशेष की राजनीति उसे किसी दूसरे धर्म, जाति, क्षेत्र विशेष को कमतर दिखाने, काटने के बजाय जोड़ने, उसमें गर्व की भावना भरने की होती है। अब नरेंद्र मोदी से प्रभावित होकर केरल की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी का साथ पकड़कर आने वाले इंजीनियर एलाट्टुवलपिल श्रीधरन भी इसी राह पर चलते दिख रहे हैं। देश भर में मेट्रोमैन के तौर पर पहचाने जाने वाले ई श्रीधरन भारतीय जनता पार्टी, केरल के नेता बनने जा रहे हैं। औपचारिक पर पार्टी से जुड़ने से पहले श्रीधरन ने जो कुछ कहा है, नरेंद्र मोदी की विकास के साथ समाज के ज्वलंत मुद्दों को साथ लेकर चलने वाली राजनीति जैसा ही दिखता है।
भारतीय जनता पार्टी को सांप्रदायिक बताने वाले सवाल के जवाब में श्रीधरन ने कहाकि भारतीय जनता पार्टी कोई मठ, संप्रदाय नहीं बल्कि देश को प्यार करने वालों का समूह है। श्रीधरन की अब तक की पहचान यही है कि असंभव से लगने वाली परियोजनाओं को उन्होंने तय समय और लागत में पूरा करके दिखाया है। अब सवाल यही है कि क्या श्रीधरन केरल में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में ला पाएँगे। इसके जवाब में श्रीधरन कहते हैं कि व्यवसायिक जीवन में समय पर, कम लागत में भ्रष्टाचारमुक्त तरीक़े से काम करने वाली उनकी छवि से भारतीय जनता पार्टी को लाभ मिलेगा और केरल की जनता हर पाँचवें वर्ष कांग्रेस और वामपंथियों की अगुआई वाले यूडीएफ़ और एलडीएफ के शासन से ऊब चुकी है। उन्होंने चौंकाने वाला आरोप लगाया है कि पिछले 20 वर्षों में केरल में एक भी नई औद्योगिक इकाई नहीं लगी है। देश में केरल को आदर्श व्यवस्था वाले राज्य के तौर पर पेश करने वाले पत्रकारों पर यह बड़ा सवाल भी है।
अकसर राष्ट्रीय मीडिया में केरल की ख़बरों में आदर्श राज्य व्यवस्था का आवरण चढ़ा होता है। ठीक उसी तरह, जैसे एक समय में बंगाल को लेकर बताया-दिखाया जाता रहा। पश्चिम बंगाल जब वामपंथियों के शासन से मुक्त हुआ तब देश को पता चला कि अब वहाँ उद्योगों के नाम पर कुछ भी नहीं बचा है। श्रीधरन का दावा है कि पिछले दो दशकों में यूडीएफ़ और एलडीएफ की सरकार एक भी नया उद्योग राज्य में नहीं ला सकी हैं और राज्य पूरी तरह से विदेश जाकर कम करने वालों की कमाई से चल रहा है।
केरल में ही चाइनीज़ वायरस के पहले तीनों मामले आए थे और उसके बाद भले ही राष्ट्रीय मीडिया में अलग-अलग रिपोर्ट के ज़रिये केरल मॉडल को आदर्श बताने वाले ख़बरें छपीं और दिखीं, लेकिन सच यही है कि देश के दो राज्य- केरल और महाराष्ट्र- अभी भी वायरस के संक्रमण से जूझ रहे हैं। चाइनीज़ वायरस को रोकने में असफलता के अलावा मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के प्रमुख सचिव रहे शिवाशंकरन और उनकी नज़दीकी स्वप्ना सुरेश के सोने की तस्करी में आरोपी होने से केरल की छवि दाग़दार हुई है। लाइफ़ मिशन घोटाले में भी सरकार के मंत्रियों पर आरोप हैं। ऐसे समय में भारतीय जनता पार्टी ने ई श्रीधरन को अपने पाले में ले आकर बड़ा काम कर दिया है और इसी वर्ष होने वाले चुनाव में श्रीधरन मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर केरल की पूरी राजनीति बदल सकते हैं।
विशुद्ध रूप से विकास के पर्यायवाची श्रीधरन ने केरल में लव जिहाद का भी मुद्दा फिर से जीवित कर दिया है। श्रीधरन ने कहा है कि हिंदू और ईसाई समाज के लोग लव जिहाद में फँस रहे हैं। श्रीधरन की कही बातों को उन्हें संघी कहकर ख़ारिज कर देने की कोशिश शुरू हो चुकी है, लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा। श्रीधरन का पूरा जीवन सर्वश्रेष्ठ मानकों पर खरा उतरता रहा है। इसलिए उनके यह कहने से कि वह छात्र जीवन से संघ की बैठकों में शामिल होते रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ इस्तेमाल करना कठिन होगा।
ई श्रीधरन पर जीवन में कोई आरोप नहीं लगा है, लेकिन अब श्रीधरन राजनीति में आ गए हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति के समय एक बात अकसर सुनने को मिलती थी कि कितना भी बड़ा संत एक बार चुनाव लड़ जाए तो उसकी पीढ़ियों का खोट सुनने को मिल जाएगा। श्रीधरन साहब अब राजनीति में आ गए हैं तो उनके बारे में सबसे बड़ा खोट यही बताया जा रहा है कि उनकी उम्र 88 वर्ष की हो गई है। हालाँकि इसकी जवाब श्रीधरन साहब ने यह कहकर दे दिया है कि उन्होंने अपना सारा जीवन निष्ठापूर्वक काम करने में बिताया, अब सामाजिक जीवन में चाहते हैं। संयोगवश श्रीधरन उसी केरल में अपनी राजनीतिक यात्रा भारतीय जनता पार्टी के साथ शुरू करने जा रहे हैं, जहां पिछले 5 वर्षों से प्रशासनिक सुधार समिति के अध्यक्ष के तौर पर 97 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन कार्य कर रहे हैं।
वीएस अच्युतानंदन जब 2006 में मुख्यमंत्री बने थे तो उनकी उम्र क़रीब 83 वर्ष की थी। अभी अमेरिकी चुनावों में 74 वर्षीय डोनाल्ड ट्रम्प को हराकर 78 वर्षीय जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं। इसलिए उम्र शायद ही मतदाताओं के मन में कोई बाधा बने, वह भी तब श्रीधरन अभी भी पूरी तरह से चुस्त-दुरुस्त हैं और एक बड़ी परियोजना के सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं। कमाल की बात यह भी है कि इस सबका श्रेय श्रीधरन साहब अपनी दिनचर्या को देते हैं, जिसमें सुबह 4.30 बजे उठना और प्रतिदिन 45 मिनट गीता पाठ करना शामिल है। केरल के राजनीतिक परिवर्तन की ज़मीन सबरीमाला आंदोलन के समय तैयार हुई थी, उस पर उपज तैयार होती दिख रही है।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक और हिंदी ब्लॉगर हैं।
सोशल मीडिया अपडेट्स के लिए हमें Facebook (https://www.facebook.com/moneycontrolhindi/) और Twitter (https://twitter.com/MoneycontrolH) पर फॉलो करें।