Vikram-S Launch: ISRO को नौकरी छोड़ी, शुरू किया स्पेस टेक स्टार्टअप, अब लॉन्च किया भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट, Mission Prarambh के पीछे हैं ये दो लोग
Vikram-S Launch Updates: अब चार साल बाद, उनका स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) 18 नवंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट लॉन्च किया है
Vikram-S Launch: मिलिए Mission Prarambh के पीछे के इन दो लोगों से
Vikram-S Launch: जब पवन कुमार चंदना (Pawan Kumar Chandana) और नागा भारत डाका (Naga Bharat Daka) ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में अपनी नौकरी छोड़ने और एक स्पेस टेक स्टार्ट-अप शुरू करने का फैसला किया, तो उसका भविष्य धुंधला लग रहा था। IIT के दो पूर्व छात्रों ने साल 2018 में स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) शुरू किया। ये वो समय था, जब भारत में कोई प्राइवेट स्पेस एजेंसी (Private Space Agency) नहीं थी और एकमात्र ISRO ही इसमें सबसे आगे था।
अब चार साल बाद, उनका स्टार्टअप 18 नवंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट लॉन्च किया है, जो देश की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के लिए एक बड़ा कदम है।
ये सब-ऑर्बिटल सॉलिड-स्टेज रॉकेट तीन ग्राहक पेलोड ले जाएगा, जो 3डी-प्रिंटेड मोटर्स के साथ कार्बन कंपोजिट से बना है। इसका नाम विक्रम-एस, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है।
मिशन प्रारंभ (Mission Prarambh) की तुलना एलॉन मस्क (Elon Musk) के SpaceX से की जाती है, जिसने 2008 में पृथ्वी की कक्षा में पहला निजी तौर पर विकसित तरल ईंधन रॉकेट (Liquid Fuel Rocket) लॉन्च किया था।
भले ही भारत के स्पेस प्रोग्राम को दुनिया में सबसे सफल में से एक माना जाता है, लेकिन यह अमेरिका जैसे दूसरे देशों की तुलना में प्राइवेट स्पेस सेक्टर को आगे बढ़ाने में काफी हद तक पिछड़ गया है। हालांकि, अब देश के लिए स्काईरूट लॉन्च एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
Vikram-S Launch: कैसे शुरू हुआ ये सब?
32 साल के चंदना के लिए, रॉकेटरी और अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति आकर्षण IIT-खड़गपुर में शुरू हुआ, जहां वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग (डुअल डिग्री) की पढ़ाई कर रहे थे।
चंदना ने Moneycontrol को बताया, "हम हमेशा ISRO के लॉन्च की खबरें देखते थे। मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र के रूप में ये मेरे लिए आकर्षक था कि इंसानों की बनाई एक जटिल मशीन अंतरिक्ष में जा रही थी।"
अपने मास्टर के लिए, उन्होंने नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के लिए एक प्रोजेक्ट पर काम किया और IIT के क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग सेंटर में ISRO के साथ मिलकर भी काम कर रहे थे।
चंदना और डाका ने एक ही समय में ग्रेजुएशन किया था। 2012 में उनका कैंपस प्लेसमेंट ISRO में हुआ। डाका IIT-मद्रास के छात्र हैं। वे ISRO के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में एक-दूसरे मिले, जहां चंदना ने एक वैज्ञानिक के रूप में और डाका ने एक एवियोनिक्स इंजीनियर के रूप में काम किया।
Skyroot Aerospace का Vikram-S रॉकेट
चंदना ने कहा, "मैं करीब छह साल से प्रक्षेपण यान (Launch Vehicles) पर काम कर रहा था। मैं GSLV Mark-3 प्रोग्राम का हिस्सा था, जो देश में अब तक का सबसे बड़ा रॉकेट है।" चंदना ने कहा कि ISRO में ही रॉकेट में उनकी दिलचस्पी '100 गुना' बढ़ गई थी।
चंदना की प्रेरणा, साराभाई के अलावा जर्मन-अमेरिकी एयरोस्पेस इंजीनियर वर्नर वॉन ब्रॉन हैं, जिन्होंने अंतरिक्ष में जाने वाला पहला रॉकेट बनाया था। यही वो रॉकेट भी था, जिसने पहले इंसान को चंद्रमा पर भेजा था।
Vikram-S Launch: मौके की तलाश
2018 में ISRO में काम करते हुए, चंदना और डाका भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पेस कमर्शियल इंडस्ट्री में इंटरेस्ट लेने लगे थे। उनके दिमाग में भारत के लिए भी कुछ इसी तरह के विचार आने लगे थे।
स्काईरूट शुरू करने की सोच के पीछे अपने विचार को समझाते हुए, उन्होंने कहा, "भारत दुनिया के शीर्ष पांच अंतरिक्ष यात्री देशों में से एक था। हमारे पास सब कुछ था - इकोसिस्टम, तकनीक और प्रगति। हम दुनिया में सबसे ज्यादा लागत वाले अंतरिक्ष यात्री देश थे।"
उन्होंने बताया, "तो स्वाभाविक रूप से बाजार में बहुत अच्छी डिमांड थी, खासतौर से छोटी सेटेलाइट्स के लिए। हमने एक बड़ा अवसर देखा, क्योंकि हमारा स्पेस इकोसिस्टम मजबूत था और हमारे देश में पहले से ही जरूरी तकनीक भी मौजूद थी।"
हालांकि, चंदना और डाका ये तो जानते थे कि मौका है, लेकिन साथ ही साथ वे उस समय देश में अंतरिक्ष नीति की कमी के बारे में भी जानते थे। अंतरिक्ष से जुड़ी गतिविधियां काफी हद तक ISRO तक ही सीमित थीं और देश में स्पेस-टेक स्टार्टअप ज्यादातर अनसुने थे।
इसलिए, उन्होंने इस उम्मीद के साथ इस मौके पर एक दांव लगाया कि स्पेस टेक्नोलॉजी प्लेयर्स की बढ़ती संख्या से अवगत सरकार ऐसी नीतियों के साथ आएगी, जो इस सेक्टर को और बढ़ा सकती हैं।
उन्होंने कहा, "यह चिकन और अंडे के जैसी समस्या थी। जब तक कंपनियां नहीं आतीं, कोई नीति नहीं होगी। इसलिए हम इस अंधे कुए में विश्वास के साथ छलांग लगाने वाली पहली कुछ कंपनियों में से एक थे।"
Vikram-S Launch: क्या-क्या रहीं चुनौतियां?
स्काईरूट की स्थापना के बाद जिन बड़ी चुनौतियों का उन्होंने सामना किया, उनमें से एक पूंजी जुटाना और टैलेंट वालों लोगों को काम पर रखना था।
उन्होंने कहा, "आप रॉकेट कंपनी बनाने के लिए पर्सनल कैपिटल नहीं लगा सकते हैं। यह असंभव है। आपको एक अच्छी शुरुआत की जरूरत है। इसके लिए एक सही निवेशक की काफी जरूरत है।"
यह तब था, जब वे Myntra के फाउंडर मुकेश बंसल से मिले, जो cult.fit के CEO हैं। उन्होंने कहा, "उस कनेक्शन ने वास्तव में अच्छी तरह से काम किया और वह निवेश करने के लिए तैयार हुए। अंतरिक्ष क्षेत्र में यह सबसे बड़ा फंडिंग दौर था।"
2018 में, बंसल ने अपने इनक्यूबेटर मेराकी लैब्स के जरिए स्काईरूट में 1.5 मिलियन डॉलर का निवेश किया। वर्तमान में वह स्टार्टअप के बोर्ड के सदस्य के रूप में काम करते हैं।
कुछ सालों के बाद, स्काईरूट ने Greenko Group के फाउंडर्स अनिल चलमलासेटी और महेश कोल्ली से फंडिंग 11 मिलियन डॉलर की सीरीज-A फंडिंग हासिल की।
हाल ही में, उन्होंने सिंगापुर-हेडक्वार्टर GIC से 51 मिलियन डॉलर की सीरीज-B फंडिंग जुटाई, जो भारत के अंतरिक्ष तकनीक क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा फंडिंग राउंड है। GIC इंडिया के डायरेक्टर मयंक राव स्काईरूट के बोर्ड में शामिल हुए।
चंदना ने कहा, "तो हर राउंड में, कैपिटल जुटाकर हम आग बढ़ रहे थे। यह वास्तव में मुश्किल था, सबसे पहले लोगों को समझाना, आप जानते हैं, इस तरह की जोखिम लेने की क्षमता है। साथ ही सही टैलेंट को खोजना भी काफी मुश्किल था, क्योंकि इस सेक्टर के ज्यादातर लोग सरकारी संस्थान में हैं।"
स्काईरूट एयरोस्पेस के कर्मचारी हैदराबाद के बाहरी इलाके आदिबाटला में अपने कारखाने में
कोंडापुर, हैदराबाद में स्काईरूट एयरोस्पेस के ऑफिस भी अंतरिक्ष की थीम पर ही डिजाइन किया गया है। बड़े पैमाने पर सफेद और नीले रंग का पेंट हुआ, ऑफिस स्पेस, एक कॉमन वर्किंग एरिया के अलावा, एक के बाद एक ढेर सारे केबिन हैं।
इनमें से हर एक केबिन में सीवी रमन, एपीजे अब्दुल कलाम और विक्रम साराभाई समेत कई बड़े स्पेस और रॉकेट साइंस से जुड़ी हस्तियों की तस्वीरें बनाई गई हैं। उनके लॉन्च व्हिकल Vikram-S और Vikram I/II/III का नाम साराभाई के नाम पर ही रखा गया है।
Vikram-S Launch: इवेंट की पूरी तैयारी
लॉन्चिंग से पहले चंदना ने कहा, "हमने कभी नहीं सोचा था कि इसे इतना बड़ा इवेंट माना जाएगा। हम एक मील के पत्थर की घोषणा कर रहे थे और ये तो उससे भी ज्यादा बड़ा साबित हुआ।" वह इस बात को लेकर उत्साहित थे कि 18 नवंबर को क्या होगा, लेकिन वे पहले लॉन्च के अतीत से भी सावधान हैं कि वे कैसे फेल हुए हैं।
रॉकेट की डिटेल पर ध्यान देने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, "रॉकेट विस्फोट करने के लिए बहुत कुख्यात हैं।" प्राइवेट स्पेस कंपनियों के साथ-साथ NASA और ISRO जैसे दिग्गजों के पहले प्रक्षेपण अक्सर विफल रहे हैं। मस्क का SpaceX तीन असफल प्रयासों के बाद Falcon 1 को ऑर्बिट में लॉन्च कर पाया था।
रॉकेट लॉन्च से पहले, चंदना ने कहा कि मीडिया की चकाचौंध और प्रक्षेपण पर ध्यान दिए जाने के कारण पिछले कुछ दिन कठिन रहे हैं और अब श्रीहरिकोटा में नेटवर्क कनेक्टिविटी की कमी से उन्हें इससे राहत मिली है। इससे उन्हें लॉन्चिंग पर ध्यान लगाने में मदद मिली।