Personal Loan: आज पर्सनल लोन लेना बेहद आसान हो गया है। बैंक ऐप पर प्री-अप्रूव्ड ऑफर आता है, कुछ क्लिक होते हैं, डॉक्यूमेंट अपलोड होते हैं और पैसा सीधे खाते में पहुंच जाता है। यह प्रक्रिया इतनी सहज लगती है कि लोग इसके जोखिमों पर ध्यान ही नहीं देते।
Personal Loan: आज पर्सनल लोन लेना बेहद आसान हो गया है। बैंक ऐप पर प्री-अप्रूव्ड ऑफर आता है, कुछ क्लिक होते हैं, डॉक्यूमेंट अपलोड होते हैं और पैसा सीधे खाते में पहुंच जाता है। यह प्रक्रिया इतनी सहज लगती है कि लोग इसके जोखिमों पर ध्यान ही नहीं देते।
जबकि हकीकत यह है कि पर्सनल लोन सबसे महंगे क्रेडिट विकल्पों में शामिल होते हैं और जल्दबाजी में लिया गया फैसला EMI को लंबे समय तक भारी बना सकता है। परेशानी लोन लेने से नहीं, बिना सोचे-समझे लेने से शुरू होती है।
सिर्फ कम EMI नहीं, कुल खर्च भी देखें
ज्यादातर लोग लोन चुनते समय सिर्फ EMI देखते हैं। ₹3,400 की जगह ₹2,800 की EMI ज्यादा आकर्षक लगती है, लेकिन कम EMI अक्सर लंबी अवधि के साथ आती है। इसका मतलब है ज्यादा महीनों तक ब्याज चुकाना।
महीने-दर-महीने फर्क छोटा लगता है, लेकिन तीन या पांच साल में यह अतिरिक्त ब्याज कुल खर्च को काफी बढ़ा देता है। कई बार थोड़ी ज्यादा EMI लेकिन कम अवधि वाला लोन कुल मिलाकर सस्ता पड़ता है। इसलिए फैसला करते वक्त यह देखना जरूरी है कि पूरे लोन में कुल कितना पैसा जाएगा, न कि सिर्फ हर महीने कितना कटेगा।
लेंडर्स की तुलना किए बिना न लें लोन
सुविधा के चलते लोग उसी बैंक से लोन ले लेते हैं, जहां उनका अकाउंट पहले से होता है। लेकिन पर्सनल लोन की ब्याज दरें और फीस हर लेंडर में अलग-अलग होती हैं। दो बैंक या NBFC एक ही व्यक्ति को लोन दे सकते हैं, लेकिन कुल लागत में हजारों रुपये का फर्क हो सकता है।
ब्याज दर में सिर्फ 1% का अंतर भी लंबे समय में बड़ा असर डालता है। अपना बैंक, एक दूसरा बैंक और एक भरोसेमंद NBFC- इन तीनों की तुलना करने में 15 मिनट लगते हैं, लेकिन इससे बड़ी बचत हो सकती है।
बड़ी होती है छोटी लगने वाली फीस
प्रोसेसिंग फीस, डॉक्यूमेंटेशन चार्ज और इंश्योरेंस ऐड-ऑन अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। लेकिन ₹3 लाख के लोन पर 2% प्रोसेसिंग फीस का मतलब है ₹6,000 सीधे कट जाना। उस पर GST जुड़ जाए तो रकम और बढ़ जाती है।
कई बार यह फीस डिस्बर्समेंट से पहले ही काट ली जाती है, यानी खाते में उधार ली गई रकम से कम पैसा आता है। जब जरूरत के वक्त पूरा अमाउंट हाथ में नहीं आता, तब असली झटका लगता है। फीस सेक्शन पढ़ना उबाऊ नहीं, बल्कि लोन की असली कीमत समझने का जरूरी हिस्सा है।
जरूरत से ज्यादा लंबी अवधि से नुकसान
लंबी अवधि वाला लोन मानसिक तौर पर आसान लगता है क्योंकि EMI कम होती है। लेकिन यही लोन आपकी आने वाली जरूरतों तक खिंच जाता है- घर बदलना, बच्चों की पढ़ाई या आगे चलकर होम लोन।
जो आज आरामदायक लगता है, वही कल बड़े फाइनेंशियल लक्ष्यों से टकरा सकता है। अगर आप थोड़ी ज्यादा EMI आराम से चुका सकते हैं, तो कम अवधि चुनना बेहतर होता है। इससे ब्याज कम लगता है और आपकी आमदनी जल्दी फ्री होती है।
पैसा आने से पहले रीपेमेंट की योजना
अक्सर लोग लोन के आने को आखिरी स्टेप मान लेते हैं, जबकि असली जिम्मेदारी वहीं से शुरू होती है। जैसे ही पैसा खाते में आता है, खर्च बढ़ जाता है और EMI को लेकर सोच बाद में करने की आदत बन जाती है।
लेकिन पर्सनल लोन की EMI तय होती है और त्योहार, ट्रैवल या इमरजेंसी का इंतजार नहीं करती। बेहतर है कि पैसा खर्च करने से पहले ही ऑटो-डेबिट सेट करें, पहली EMI के लिए बफर रखें और अगर संभव हो तो प्रीपेमेंट की योजना भी पहले से बनाएं।
सोच-समझकर लोन लेने में ही फायदा
उधार लेना गलत नहीं है। सही समय पर लिया गया लोन इमरजेंसी में काम आता है, बचत को सुरक्षित रखता है और जरूरी जरूरतें पूरी करता है। दिक्कत तब आती है, जब रफ्तार समझदारी से आगे निकल जाती है।
ब्याज दर, फीस, अवधि, रीपेमेंट प्लान और कुल खर्च पर कुछ मिनट ध्यान देना आगे कई महीनों के तनाव से बचा सकता है। जब पर्सनल लोन को झटपट समाधान नहीं, बल्कि एक फाइनेंशियल फैसला माना जाता है, तब वह बोझ नहीं बनता, बल्कि एक उपयोगी साधन साबित होता है।
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