8th Pay Commission: कैसे बदलेगी कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन, सरकारी खजाने पर कितना बढ़ेगा बोझ; जानिए सबकुछ

8th Pay Commission: केंद्र सरकार ने 8वें वेतन आयोग को लेकर ToR मंजूर किया है। अब सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन की समीक्षा का रास्ता साफ हो गया है। इसके बाद आयोग सैलरी और पेंशन में बढ़ोतरी की सिफारिश करेगा। जानिए सैलरी-पेंशन में कितना इजाफा होगा और इसका सरकारी खजाने पर कितना बोझ पड़ेगा।

अपडेटेड Nov 20, 2025 पर 4:14 PM
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8वें वेतन आयोग की सिफारिशों से केंद्र सरकार के लगभग 47 लाख कर्मचारी और 69 लाख पेंशनभोगी प्रभावित होंगे।

8th Pay Commission: केंद्र सरकार ने 28 अक्टूबर 2025 को 8वें केंद्रीय वेतन आयोग (8th Central Pay Commission) के लिए Terms of Reference (ToR) को मंजूरी दे दी है। इसका मतलब है कि अब केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के वेतन, भत्तों और पेंशन स्ट्रक्चर की समीक्षा शुरू हो जाएगी।

सरकार ने इस साल जनवरी 2025 में ही आयोग का गठन कर दिया था। इसे अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए 18 महीने का समय मिला है। आम तौर पर हर 10 साल में एक बार सरकार अपने कर्मचारियों के वेतन की समीक्षा करती है, ताकि यह महंगाई और जीवन-यापन की लागत के हिसाब से अपडेट रह सके।

क्या होता है वेतन आयोग


वेतन आयोग केंद्र सरकार की बनाई एक्सपर्ट कमेटी होती है। ये तय करती है कि सरकारी कर्मचारियों, रक्षा कर्मियों और पेंशनभोगियों को कितना वेतन और भत्ता मिलना चाहिए। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना होता है कि कर्मचारियों की आय महंगाई, नौकरी की जिम्मेदारियों और जीवन-यापन की लागत के मुताबिक बनी रहे।

इसके साथ ही आयोग यह भी देखता है कि सभी सेवा वर्गों में वेतन समानता बनी रहे। 8वां वेतन आयोग इससे पहले लागू हुए 7वें वेतन आयोग के बाद आया है, जो जनवरी 2016 से लागू किया गया था।

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आयोग किन चीजों की समीक्षा करेगा

8वां वेतन आयोग मौजूदा पे मैट्रिक्स (Pay Matrix) की समीक्षा करेगा। इसमें अलग-अलग स्तर के वेतन और ग्रेड पे शामिल होते हैं। यह एक फिटमेंट फैक्टर (Fitment Factor) तय करेगा, जो बेसिक वेतन पर गुणा करके नई सैलरी तय करता है।

आयोग मकान किराया भत्ता (HRA), ट्रांसपोर्ट अलाउंस, मेडिकल भत्ता जैसे भत्तों की समीक्षा करेगा। जरूरत पड़ने पर उन्हें इंटीग्रेट या रिवाइज्ड करने की सिफारिश करेगा। साथ ही, यह पेंशन फॉर्मूला में बदलाव और जॉब क्लासिफिकेशन यानी नौकरी वर्गीकरण में भी सुधार सुझा सकता है।

फिटमेंट फैक्टर कितना रह सकता है

7वें वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर 2.57 तय किया गया था, यानी 6वें वेतन आयोग की बेसिक सैलरी को 2.57 से गुणा करके नई बेसिक पे तय की गई। इसमें न्यूनतम बेसिक पे ₹18,000 प्रति माह तय किया गया था। अब कर्मचारी संगठन चाहते हैं कि 8वें वेतन आयोग में इसे कम से कम 3.68 किया जाए। उनकी मांग है कि न्यूनतम बेसिक पे को बढ़ाकर करीब ₹26,000 से ₹39,000 के बीच किया जाए

8वें वेतन आयोग के लिए फिटमेंट फैक्टर को लेकर अभी तक कई तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह न्यूनतम 1.83 से 1.92 के बीच और अधिकतम अनुमान 2.46 से 2.86 तक रह सकती है। हालांकि, यह सिर्फ शुरुआती चर्चा है। वास्तविक फिटमेंट फैक्टर आयोग की अंतिम रिपोर्ट और राष्ट्रपति या केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी के बाद ही तय किया जाएगा।

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वेतन आयोग की प्रक्रिया कैसे चलती है

सरकार जब नया वेतन आयोग बनाती है, तो उसे एक Terms of Reference (ToR) दिया जाता है। इसमें यह तय होता है कि आयोग को किन बिंदुओं पर काम करना है, कितने समय में रिपोर्ट देनी है और किन मानकों का पालन करना है। इसके बाद आयोग कर्मचारियों की संख्या, मौजूदा वेतन ढांचा, महंगाई दर, निजी क्षेत्र के वेतन और पेंशन देनदारियों से जुड़ा डेटा इकट्ठा करता है।

फिर यह कर्मचारी संगठनों, मंत्रालयों और अन्य हितधारकों से चर्चा करता है और एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करता है। सरकार रिपोर्ट मिलने के बाद सिफारिशों की समीक्षा करती है। फिर तय करती है कि कौन-सी बातें लागू की जाएंगी। इसके बाद Implementation Order जारी किया जाता है।

इस बार सरकार ने क्या निर्देश दिए हैं

8वें वेतन आयोग को इस बार सरकार ने निर्देश दिया है कि वह केवल कर्मचारियों के हितों पर ही नहीं, बल्कि राजकोषीय संतुलन (Fiscal Stability) और राज्य सरकारों पर पड़ने वाले प्रभाव को भी ध्यान में रखे।

कई राज्य सरकारें केंद्र के वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करती हैं, इसलिए इसका असर पूरे देश की वित्तीय स्थिति पर पड़ सकता है। सरकार चाहती है कि आयोग कर्मचारियों के कल्याण और देश की आर्थिक क्षमता - दोनों के बीच संतुलन बनाए।

कर्मचारियों और पेंशनभोगियों पर क्या असर होगा

8वें वेतन आयोग की सिफारिशों से केंद्र सरकार के लगभग 47 लाख कर्मचारी और 69 लाख पेंशनभोगी प्रभावित होंगे। अगर आयोग फिटमेंट फैक्टर बढ़ाता है, तो इसका सीधा असर न्यूनतम बेसिक पे पर पड़ेगा और कर्मचारियों की सैलरी में अच्छी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।

यह सिर्फ वेतन बढ़ाने तक सीमित नहीं रहेगा। इससे भत्ते, पेंशन और यहां तक कि प्राइवेट के सैलरी स्ट्रक्चर पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि कई कंपनियां सरकारी सैलरी स्ट्रक्चर को बेंचमार्क की तरह मानती हैं। पेंशनभोगियों के लिए यह सुधार महंगाई से घटती क्रय शक्ति (Purchasing Power) को फिर से बढ़ा सकता है।

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सरकार पर कितना बढ़ेगा खर्च

2016 में जब 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू हुई थीं, तब सरकारी खजाने पर लगभग ₹1 लाख करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ा था। इससे उस समय वित्तीय घाटा (Fiscal Deficit) में करीब 0.6-0.7% GDP की बढ़ोतरी हुई थी। अब अनुमान है कि 8वें वेतन आयोग से केंद्र सरकार पर ₹2.4-3.2 लाख करोड़ तक का खर्च बढ़ सकता है, जो देश के GDP का लगभग 0.6-0.8% होगा।

इससे सरकार का Revenue Expenditure यानी खर्च बढ़ेगा। अगर इसे संतुलित करने के लिए टैक्स रेवेन्यू या बचत में वृद्धि नहीं हुई, तो Capital Expenditure यानी सड़क, रेल, इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे प्रोजेक्ट्स पर असर पड़ सकता है। हालांकि, कर्मचारियों की आय बढ़ने से खपत (Consumption) में उछाल आ सकता है। इससे कंज्यूमर गुड्स, ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट सेक्टर को फायदा मिलेगा।

सरकार के लिए संतुलन की चुनौती

अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह कर्मचारियों के हितों और आर्थिक अनुशासन (Fiscal Discipline) के बीच सही संतुलन बनाए। वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी से कर्मचारियों का मनोबल और खर्च करने की क्षमता बढ़ेगी, लेकिन अगर यह वृद्धि बहुत बड़ी हुई तो इसका असर देश की वित्तीय स्थिरता और विकास योजनाओं पर पड़ सकता है।

सरकार को अब यह तय करना है कि कितनी बढ़ोतरी उचित है। इतनी कि कर्मचारियों को राहत मिले, लेकिन देश की आर्थिक स्थिति पर दबाव न पड़े।

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