आधार-बेस्ड डिजिटल पेमेंट (एईपीएस) पिछले तीन साल में स्थिर है या इसमें थोड़ी गिरावट आई है। देश की बड़ी आबादी इस पेमेंट सिस्टम का इस्तेमाल करती है। अप्रैल 2022 में करीब 27,900 करोड़ रुपये का एईपीएस ट्रांजेक्शन हुआ था। इस साल सितंबर में यह घटकर 23,600 करोड़ रुपये पर आ गया। नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) के डेटा से यह पता चला है। अप्रैल 2022 में ट्रांजेक्शन की कुल संख्या 20.5 करोड़ थी, जो इस साल सितंबर में घटकर 20.2 करोड़ रुपये पर आ गई।
क्या है आधार बेस्ड डिजिटल पेमेंट?
बैंक ग्राहकों को बेसिक सुविधाएं देने के लिए एईपीएस (AePS) का इस्तेमाल करते हैं। इनमें बैलेंस इनक्वायरी, कैश डिपॉजिट, कैश विड्रॉल जैसी सुविधाएं शामिल हैं। ये सुविधाएं बिजनेस कॉरेसपॉन्डेंट (BC) के जरिए दी जाती हैं। बीसी बैंकों का एजेंट होता है, जिसे बैंक की तरफ से ग्राहकों को बेसिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की इजाजत होती है। आबादी के बड़े हिस्से को बैंकिंग सुविधाओं के दायरे में लाने में एईपीएस की बड़ी भूमिका रही है।
सरकारी स्कीम का पैसा भेजने के लिए इस्तेमाल
NPCI ने AePS को डेवलप किया था। एनपीसीआई ही इस सिस्टम को ऑपरेट करती है। सरकार अपनी सब्सिडी स्कीम के तहत लोगों को पैसे भेजने के लिए एईपीएस का इस्तेमाल करती है। जिन महीनों में सरकार की तरफ से सब्सिडी का पैसा लाभार्थियों के बैंक अकाउंट में आता है, उन महीनों में ट्रांजेक्शन की संख्या और वैल्यू दोनों काफी बढ़ जाती हैं। इसका मतलब है कि इस सिस्टम के इस्तेमाल में ग्राहकों की ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिख रही है।
हर ट्रांजेक्शन के बीसी का वेरिफिकेशन
एक बैंक के सीनियर एग्जिक्यूटिव ने बताया, "पिछले दो सालों से कई बैंक खासकर सरकारी बैंक उन ग्राहकों की तरफ से ऑरिजिनेट होने वाले ट्रांजेक्शन को डेक्लाइन कर रहे हैं, जो दूसरे बैंकों के बीसी के जरिए आते हैं। आरबीआई के नियम में कहा गया है कि बीसी को एक से दूसरे बैंक के बीच ट्रांजेक्शन को पूरा करना होगा। लेकिन, इस नियम का उल्लंघन हो रहा है।" दो साल पहले एईपीएस का इस्तेमाल मनी लाउन्ड्रिंग के लिए भी होने की आशंका जताई गई थी। इसके बाद RBI ने बीसी के वेरिफिकेशन को अनिवार्य बना दिया था। इसका मतलब है कि हर ट्रांजेक्शन के लिए बीसी का फिंगरप्रिंट्स के जरिए वेरिफिकेशन जरूरी है।
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बैंक ट्रांजेक्शन को डेक्लाइन कर रहे
हर ट्रांजेक्शन के लिए बीसी का वेरिफिकेशन अनिवार्य हो जाने के बाद फ्रॉड के लिए एईपीएस के इस्तेमाल में कमी आई है। लेकिन, इसकी आड़ में कई बैंक इंटर-बैंक ट्रांजेक्शन के डेक्लाइन कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे अकाउंटहोल्डर के बारे में नहीं जानते। उनका जोर इस बात पर है कि अकाउंटहोल्डर को अपनी ब्रांच में जाना चाहिए इस तरह के ट्रांजेक्शन के लिए अलग से इजाजत देनी चाहिए।