आज के जमाने में हेल्थ इंश्योरेंस लेना जरूरी हो गया है, लेकिन कई बार यह पता चलता है कि सामान्य हेल्थ पॉलिसी गंभीर बीमारियों को कवर नहीं करती। इससे इलाज के लिए जमा की गई पूंजी तेजी से खत्म हो जाती है। इसीलिए क्रिटिकल इलनेस कवर लेना बेहद जरूरी हो जाता है, जो ऐसी बीमारियों की सुरक्षा करता है जो आम पॉलिसी में शामिल नहीं होतीं, जैसे कैंसर, दिल का दौरा, स्ट्रोक, किडनी फेलियर और गंभीर सर्जरी।
क्यों जरूरी है क्रिटिकल इलनेस कवर?
साधारण हेल्थ इंश्योरेंस अस्पताल के बिल तक सीमित होती है, जबकि गंभीर बीमारियों का इलाज लंबा और खर्चीला होता है। क्रिटिकल इलनेस कवर मिलने पर मरीज को एकमुश्त राशि क्लेम के रूप में मिलती है, जो इलाज के अलावा घर चलाने, दवाइयों और अन्य खर्चों में मदद करती है। कई बार बीमारी की वजह से नौकरी जाने पर यह राशि परिवार की आर्थिक मदद भी करती है।
क्रिटिकल इलनेस कवर कैसे काम करता है?
यह कवर एक राइडर या ऐड-ऑन का रूप में बेसिक हेल्थ इंश्योरेंस में जोड़ा जाता है। इसके लिए अतिरिक्त प्रीमियम देना पड़ता है, लेकिन यह निवेश सुरक्षित भविष्य का सहारा बनता है। क्लेम प्रक्रिया में मरीज को सिर्फ डॉक्टरी रिपोर्ट देनी होती है, और निश्चित राशि एक साथ मिल जाती है, जिससे इलाज और परिवार की अन्य जरूरतें पूरी की जा सकती हैं।
पॉलिसी लेते वक्त ध्यान रखें ये बातें
- अपनी मौजूदा पॉलिसी जरूर चेक करें कि उसमें क्रिटिकल इलनेस कवर है या नहीं।
- कम से कम 10-15 गंभीर बीमारियों का कवरेज होना चाहिए।
- फैमिली फ्लोटर प्लान लें, जिससे पूरे परिवार को फायदा हो।
- वेटिंग पीरियड का ध्यान रखें, जैसे 90 दिन की शुरुआत और 36 महीने की प्री-एग्जिस्टिंग बीमारी से सुरक्षा।
- टैक्स बेनिफिट्स का लाभ भी सेक्शन 80डी के तहत उठाएं।
आज के वक्त में सिर्फ हेल्थ इंश्योरेंस लेना ही काफी नहीं है, बल्कि उसमें क्रिटिकल इलनेस कवर होना भी जरूरी है। यह आपकी और आपके परिवार की वित्तीय सुरक्षा को मजबूत करता है और बीमारियों से हुए बड़े झटकों से रक्षा करता है। इसलिए, सही पॉलिसी चुनें और इसे समय-समय पर अपडेट करते रहें ताकि आर्थिक और मानसिक दोनों तरह की सुरक्षा बनी रहे।