हेल्थ इंश्योरेंस लेते वक्त हर किसी की यही उम्मीद होती है कि बीमार पड़ने पर इलाज आसानी से मिल जाएगा और अस्पताल से छुट्टी भी समय पर हो जाएगी। लेकिन हकीकत यह है कि इलाज तो जल्दी मिल जाता है, पर डिस्चार्ज की प्रक्रिया में घंटों की देरी पॉलिसी होल्डर्स के लिए एक नई मुसीबत बन चुकी है। कई बार बीमा कंपनियां मरीज के क्लेम को मंजूर करने में देर करती हैं, जिससे मरीज को 6 से 48 घंटे तक अस्पताल में अतिरिक्त रुकना पड़ता है। इलाज का खर्चा बढ़ता है और मानसिक तनाव भी।
इलाज की मंजूरी तो तुरंत, पर पेमेंट में लेट-लतीफी
अक्सर बीमा कंपनियां इलाज की अनुमति तो जल्दी दे देती हैं, लेकिन पेमेंट प्रोसेस पर बार-बार सवाल उठते हैं। कुछ कंपनियां क्लेम रिजेक्शन का हवाला देकर बीमारियों को पहले से मौजूद बताकर देरी करती हैं। ऐसे हालात में मरीज को डॉक्टरी रिपोर्ट और दस्तावेज देने पड़ते हैं, तब जाकर उसका क्लेम स्वीकृत होता है। लेकिन फिर भी मरीज को कमरा किराया और अन्य खर्चों के लिए अतिरिक्त भुगतान करना पड़ जाता है।
डिस्चार्ज समरी और बिल के बाद भी देरी क्यों?
अस्पतालों का कहना है कि डिस्चार्ज समरी बनाने में वक्त लगता है, लेकिन एक्सपर्ट्स पूछते हैं कि जब सारी रिपोर्ट्स पहले से सिस्टम में हैं तो यह प्रक्रिया सरल क्यों नहीं हो सकती। सबसे बड़ी देरी प्रशासनिक कामकाज और अस्पताल-बैंकिंग-नौकरशाही के कारण सामने आती है। क्लेम अप्रूवल में बेहतर समन्वय की कमी समग्र समस्या का हिस्सा है। फाइनल बिल में पेश की गई रकम और बीमा की शुरुआती मंजूरी में अक्सर फर्क होता है और इसी वजह से क्लेम अप्रूवल में समय लग जाता है।
बीमा वाले मरीजों के लिए अस्पताल में ज्यादा रूकना
यह भी देखा गया है कि बिना बीमा वाले मरीजों को डिस्चार्ज मिलने में औसतन 3.5 घंटे लगते हैं, जबकि बीमा वाले मरीजों को 5 घंटे से भी ज्यादा लग जाता है। इसके पीछे अस्पतालों की पुरानी आईटी व्यवस्था, इंश्योरेंस कंपनियों की धीमी डिजिटल प्रोसेसिंग और आपसी समन्वय की कमी है।
IRDAI के नियम और नया NHCX प्लेटफॉर्म
भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के नियमों के अनुसार, अस्पताल को फाइनल बिल और डिस्चार्ज समरी मिलते ही तीन घंटे के भीतर क्लेम अप्रूव करना चाहिए। अगर देरी होती है तो एक्स्ट्रा रूम रेंट का खर्च बीमा कंपनियों को अपने शेयरहोल्डर फंड से चुकाना पड़ेगा, जिससे पॉलिसी होल्डर्स पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। 33 से ज्यादा इंश्योरेंस कंपनियां अब सरकार के NHCX प्लेटफॉर्म से जुड़ गई हैं, जिससे क्लेम प्रक्रिया तेज और पारदर्शी हो रही है। इस नई व्यवस्था से भविष्य में मरीजों को राहत मिलने की उम्मीद है और इंश्योरेंस क्लेमिंग का तनाव कम होगा।