हॉस्पिटल के CGHS के तहत नहीं आने पर भी एंप्लॉयी मेडिकल रिम्बर्समेंट का हकदार, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया फैसला

डायरेक्टोरेट ऑफ एजुकेशन और स्कूल अथॉरिटीज ने इस आधार पर एंप्लॉयी सीमा मेहता का रिम्बर्समेंट क्लेम रिजेक्ट कर दिया था कि उन्होंने जिस हॉस्पिटल में इलाज कराया है, वह CGHS के तहत नहीं आता है। हाईकोर्ट ने इसे गलत मानते हुए डीओई और स्कूल को इलाज का खर्च रिम्बर्स करने का आदेश दिया

अपडेटेड Dec 19, 2024 पर 1:10 PM
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कोर्ट ने DoE और स्कूल अथॉरिटीज को छह हफ्तों के अंदर मेहता के इलाज पर आए 5.85 लाख रुपये के खर्च को रिम्बर्स करने का आदेश दिया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने एप्लॉयी के इलाज खर्च के रिम्बर्समेंट पर बड़ा फैसला दिया है। उसने कहा है कि इमर्जेंसी की स्थिति में एंप्लॉयीज का जिस हॉस्पिटल में इलाज हुआ है, अगर वह सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (सीजीएचएस) के तहत नहीं आता है तो भी एंप्लॉयीज इलाज खर्च के रिम्बर्समेंट का हकदार है। हाईकोर्ट के इस फैसले से बड़ी संख्या में एंप्लॉयीज को फायदा होगा। यह इमर्जेंसी की स्थिति में एंप्लॉयीज के इलाज के मामले में नजीर के रूप में काम करेगा।

हादसे का शिकार होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने यह फैसला सीमा मेहता के मामले में दिया है, जो एक ऐडेड स्कूल की एंप्लॉयी हैं। गंभीर हादसे का शिकार होने पर इमर्जेंसी की स्थिति में उनका हॉस्पिटल में इलाज चला। लेकिन, स्कूल ने इलाज पर आने वाले खर्च को रिम्बर्स करने से इनकार कर दिया। लाइव लॉ की खबर के मुताबिक, मेहता साल 2000 से स्कूल की एंप्लॉयी थीं। वह 18 सितंबर, 2013 को रोड हादसे का शिकार हो गईं। उनके सिर में गंभीर चोट आई। शुरुआत में उनका इलाज गुरु तेगबहादुर हॉस्पिटल में चला। बाद में उन्हें सर गंगाराम हॉस्पिटल में रेफर कर दिया गया।


इलाज पर 5.85 लाख रुपये का खर्च आया

गंगाराम हॉस्पिटल में मेहता के दिमाग में सर्जरी करनी पड़ी। उनकी रिकवरी की रफ्तार सुस्त रही। उन्हें दोबारा हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा। लंबे समय के बाद उन्हें जनवरी 2014 में हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। मार्च 2014 में उन्हें फिर से नौकरी पर जाने के लिए फिट घोषित कर दिया गया। मेहता के इलाज पर करीब 5.85 लाख रुपये का खर्च आया था। उन्होंने इस पैसे के रिम्बर्समेंट के लिए क्लेम किया। लेकिन, स्कूल और डायरेक्टोरेट ऑफ एजुकेशन (DoE) ने उनका क्लेम रिजेक्ट कर दिया। इसकी वजह यह बताई गई कि सर गंगाराम हॉस्पिटल CGHS के तहत नहीं आता है।

क्लेम रिजेक्ट करने का आधार गलत

दिल्ली हाईकोर्ट की जज जस्टिस ज्योति सिंह ने इस मामले की व्यापक सुनवाई के बाद अपना फैसला दिया। उन्होंने कहा कि इमर्जेंसी की स्थिति में इलाज पर आने वाले खर्च के रिम्बर्समेंट क्लेम को इस आधार पर रिजेक्ट नहीं किया जा सकता कि हॉस्पिटल सीजीएचएस के तहत नहीं आता है। उन्होंने कहा कि जब कोई एंप्लॉयी इमर्जेंसी की स्थिति में किसी हॉस्टिपटल में भर्ती किया जाता है तो सीजीएचएस की गाइडलेंस के तहत पहले से एप्रूवल हासिल करना मुमकिन नहीं है। खासकर तब जब व्यक्ति की जिंदगी खतरे में है।

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कोर्ट ने इलाज खर्च पर इंटरेस्ट चुकाने को भी कहा

हाईकोर्ट ने कहा कि मेहता के रिम्बर्समेंट क्लेम को खारिज नहीं किया जा सकता। खासकर तब जब हॉस्पिटल की तरफ से जारी किया गया इमर्जेंसी सर्टिफिकेट सही है। कोर्ट ने DoE और स्कूल अथॉरिटीज को छह हफ्तों के अंदर मेहता के इलाज पर आए 5.85 लाख रुपये के खर्च को रिम्बर्स करने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस तारीख को क्लेम रिजेक्ट किया, उस तारीख से लेकर एक्चुअल पेमेंट की तारीख के बीच की अवधि में पर 6 फीसदी का इंटरेस्ट भी देना होगा।

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