म्यूचुअल फंड की स्कीम में निवेश के दो विकल्प हैं। पहला डायरेक्ट और दूसरा रेगुलेर है। यह माना जाता है कि डायरेक्ट फंड सस्ता है, जिससे इसके जरिए निवेश करने में ज्यादा फायदा है। रेगुलर फंड की कॉस्ट ज्यादा होती है, इसलिए इससे निवेश में नुकसान है। लेकिन, सिर्फ इस आधार पर फैसला नहीं लिया जा सकता। डायरेक्ट और रेगुलर में से कौन आपके लिए सही है यह कई बातों पर निर्भर करता है। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
डायरेक्ट और रेगुलेर फंड्स में फर्क
Direct Mutual Funds और Regular Mutual Funds एक ही अंडरलाइंग पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं। डायरेक्ट फंड में आप सीधे फंड हाउस या ऐसे प्लेटफॉर्म के जरिए निवेश करते हैं, जो एडवाइस ऑफर नहीं करते हैं। रेगुलर फंड्स में आप डिस्ट्रिब्यूटर या एडवाइजर के जरिए इनवेस्ट करते हैं। इसके लिए आप कमीशन चुकाते हैं, जो एक्सपेंस रेशियो में शामिल होता है।
डायरेक्ट फंड्स में रिटर्न ज्यादा
इस कमीशन की वजह से रेगुलर फंड्स की कॉस्ट ज्यादा होती है। लंबी अवधि में इस कॉस्ट का काफी असर पड़ता है। इससे आपका रिटर्न कम रह सकता है। इस वजह से रिटर्न के लिहाज से डायरेक्ट फंड बेहतर है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह डायरेक्ट और रेगुलर फंड के बीच बुनियादी फर्क है। लेकिन, रिटर्न पर कॉस्ट से ज्यादा असर इनवेस्टर के विहेबियर का पड़ता है।
कई इनवेस्टर्स बार-बार फंड्स स्विच करते हैं, परफॉर्मेंस पर ज्यादा फोकस करते हैं और मार्केट गिरने पर सिप रोक देते हैं। इसका काफी असर इनवेस्टर के रिटर्न पर पड़ता है। यह रेगुलर और डायरेक्ट प्लान की कॉस्ट में फर्क से ज्यादा असर डालता है। अगर कोई इनवेस्टर निवेश में अनुशासन बरतता है और एलोकेशन के फैसले लेता है तो उसके लिए डायरेक्ट फंड सही है। लेकिन, अगर इनवेस्टर बहुत अनुशासित नहीं है और वह मार्केट में गिरावट से डर जाता है तो उसके लिए एडवाइजर के जरिए निवेश करना फायदेमंद है।
इनवेस्टमेंट एडवाइजर सिर्फ आपको यह नहीं बताता कि आपको किस फंड में निवेश करना चाहिए। वह एसेट ऐलोकेशन में भी आपकी मदद करता है। बाजार में गिरावट के समय आपको सही सलाह देता है। इनवेस्टमेंट गोल के हिसाब से आपको निवेश करने में मदद करता है। इसलिए अगर आप खुद निवेश के फैसले नहीं ले सकते तो आपको डायरेक्ट की जगह रेगुलर प्लान में निवेश करना ठीक रहेगा।