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तलाकशुदा पत्नी को 50,000 रुपये मंथली गुजारा भत्ता, हर दो साल में 5% बढ़ोतरी, सुप्रीम कोर्ट ने पति की बढ़ती सैलरी-महंगाई का रखा ध्यान

Divorce: सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी के डिवोर्स केस में अहम फैसला सुनाया। तलाकशुदा पत्नी के गुजारे भत्ते में महंगाई और पति की बढ़ती मंथली सैलरी को भी ध्यान में रखा। एक ऐसे ही मामले में हुआ जब पत्नी के 20,000 रुपये के गुजारे भत्ते को बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया

अपडेटेड Jun 07, 2025 पर 2:22 PM
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Divorce: तलाकशुदा पत्नी के गुजारे भत्ते में महंगाई और पति की बढ़ती मंथली सैलरी को भी ध्यान में रखा। (Photo - प्रतिकात्मक फोटो)

Divorce: सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी के डिवोर्स केस में अहम फैसला सुनाया। तलाकशुदा पत्नी के गुजारे भत्ते में महंगाई और पति की बढ़ती मंथली सैलरी को भी ध्यान में रखा। एक ऐसे ही मामले में हुआ जब पत्नी के 20,000 रुपये के गुजारे भत्ते को बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया। साथ ही हर 2 साल में गुजारेभत्ते में 5 फीसदी के बढ़ोतरी के नियम को भी जोड़ दिया। साथ ही पति के दूसरी शादी करने के बाद भी पहली पत्नी के बेटे को पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार होने की बात को स्वीकार किया।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

29 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पति को अपनी पूर्व पत्नी को हर महीने 50,000 रुपये पर्मानेंट एलिमनी देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस अमाउंट में हर दो साल में 5% की बढ़ोतरी होगी। यह फैसला उस समय आया जब पत्नी ने पहले से तय 20,000 रुपये के अमाउंट को नाकाफी बताते हुए इसे बढ़ाने की मांग की थी।


क्या कहा कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी जो अब तक अविवाहित और स्वतंत्र रूप से रह रही हैं, उन्हें ऐसा भरण-पोषण मिलना चाहिए जो उनके वैवाहिक जीवन के स्तर को दर्शाता हो और उनके भविष्य को सुरक्षित रखे। कोर्ट ने ये भी माना कि पति की आमदनी में समय के साथ बढ़ोतरी हुई है और वह अधिक भरण-पोषण देने की स्थिति में है। इसलिए, पहले तय की गई अमाउंट को बढ़ाया जाना जरूरी है। ये डिवोर्स का मामला 17 साल से चल रह है।

अब तक ये हुआ पति-पत्नी के डिवोर्स के मामले में..

18 जून 1997: दोनों की शादी हिंदू रीति-रिवाज से हुई।

5 अगस्त 1998: दंपति को एक बेटा हुआ।

जुलाई 2008: पति ने तलाक के लिए केस दायर किया। पत्नी ने भी भरण-पोषण के लिए अलग से केस दाखिल किया।

14 जनवरी 2010: ट्रायल कोर्ट ने पत्नी को 8,000 रुपये मंथली अंतरिम भरण-पोषण और 10,000 रुपये वकील खर्च के लिए देने का आदेश दिया।

28 मार्च 2014: कोर्ट ने पति को पत्नी को 8,000 रुपये और बेटे को 6,000 रुपये मंथली देने का आदेश दिया।

14 मई 2015: हाई कोर्ट ने यह अमाउंट बढ़ाकर 15,000 रुपये कर दिया।

1 जनवरी 2016: कोर्ट ने पति के दायर तलाक का केस खारिज कर दिया।

14 जुलाई 2016: हाई कोर्ट ने पत्नी के लिए भरण-पोषण 20,000 रुपये मंथली तय कर दिया।

25 जून 2019: हाई कोर्ट ने तलाक की मंजूरी दी।

7 नवंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में भरण-पोषण अमाउंट 75,000 रुपये मंथली कर दी थी, जिसे बाद में चुनौती दी गई।

29 मई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम आदेश में 50,000 रुपये मंथली कर दिया। इसमें हर 2 साल में 5% बढ़ोतरी का प्रावधान भी जोड़ा गया।

पत्नी की दलील

पत्नी की ओर से कहा गया कि 20,000 रुपये का अमाउंट तब तय किया था जब पति की इनकम बहुत कम थी, लेकिन अब उनकी मंथली इनकम 4 लाख रुपये के आसपास है, फिर भी इतने कम पैसे में गुजारा करना मुश्किल है। पत्नी के वकीलों ने कहा कि यह अमाउंट अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर तय हुई थी, स्थायी नहीं और इसे अब जरूर बढ़ाया जाना चाहिए।

पति की दलील

पति ने कहा कि वह अब दोबारा शादी कर चुके हैं और उन्हें अपने बुजुर्ग माता-पिता और नई पत्नी की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। उन्होंने यह भी कहा कि उनका बेटा अब 26 साल का है और स्वतंत्र है, इसलिए उसे किसी भी तरह का भरण-पोषण देना जरूरी नहीं। उन्होंने अपनी सैलरी स्लिप, बैंक स्टेटमेंट और इनकम टैक्स रिटर्न भी अदालत के सामने पेश किए।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

पत्नी को 50,000 रुपये मंथली मिलेंगे, और यह अमाउंट हर दो साल में 5% बढ़ेगी। बेटे के लिए अब कोई अनिवार्य भरण-पोषण नहीं देना होगा, लेकिन पति यदि चाहें तो स्वेच्छा से उसकी पढ़ाई या जरूरतों में मदद कर सकते हैं। बेटे का पैतृक संपत्ति में अधिकार बना रहेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह दर्शाता है कि भरण-पोषण केवल सिर्फ नाम के लिए नहीं होना चाहिए। ये व्यावहारिक और न्यायपूर्ण होना चाहिए। यह फैसला उन महिलाओं के लिए राहत भरा संदेश है, जो तलाक के बाद अकेले जीवन बिता रही हैं और अपने पूर्व पति की फाइनेंशियल स्टेटस के तौर पर न्याय की उम्मीद रखती है।

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