एजुकेशन लोन समय पर न चुकाने से छात्र और गारंटर दोनों को कानूनी और वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। सबसे पहले बैंक या वित्तीय संस्था देय राशि के लिए नोटिस भेजती है, जिसके बाद भी अगर भुगतान नहीं होता तो संपत्ति कुर्की और कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। यह प्रक्रिया न केवल छात्र के लिए बल्कि गारंटर के लिए भी गंभीर होती है, क्योंकि दोनों के क्रेडिट स्कोर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
यदि छात्र वित्तीय कठिनाइयों के कारण भुगतान करने में असमर्थ है, तो बैंक से पुनर्भुगतान शर्तों में बदलाव या मोहलत के लिए अनुरोध किया जा सकता है। इस तरह की योजना से डिफॉल्ट की स्थिति टाली जा सकती है और कानूनी कार्यवाही से बचा जा सकता है। लेकिन यदि जानबूझकर या धोखाधड़ी करके भुगतान नहीं किया गया तो भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत सख्त कार्रवाई संभव है। इसके अलावा, चेक बाउंस मामले में भी आपराधिक धाराएं लग सकती हैं, जो जेल या जुर्माने का कारण बनती हैं।
इस तरह के डिफॉल्ट का सीधा असर छात्र और गारंटर दोनों की वित्तीय प्रतिष्ठा पर पड़ता है, जिससे भविष्य में लोन लेना या क्रेडिट कार्ड प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। अतः शिक्षा लोन लेने वाले छात्र और उनके गारंटर दोनों को समय पर भुगतान और बैंक के साथ संवाद बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है ताकि वित्तीय संकट से बचा जा सके और लंबी अवधि में लाभ पहुंचाया जा सके।
यदि किसी वित्तीय समस्या का सामना हो रहा हो तो कानूनी सलाह लेना और बैंक से खुलकर समाधान ढूंढना सबसे उचित कदम होगा। यह सावधानी भविष्य के आर्थिक जोखिमों को कम करती है और आपकी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करती है।