अगर आप प्राइवेट नौकरी करते हैं और ईपीएफओ के तहत आते हैं तो आपको भी एंप्लॉयीज डिपॉजिट लिंक्ड इंश्योरेंस (ईडीएलआई) का फायदा मिलेगा। दरअसल, ईपीएफओ का हर मेंबर इस स्कीम के दायरे में आता है। ईडीएलआई स्कीम की शुरुआत 1976 में हुई थी। इस स्कीम में प्राइवेट नौकरी करने वाले व्यक्ति की मौत पर उसके परिवार के सदस्यों को आर्थिक सहायता मिलती है। हालांकि, यह स्कीम बहुत पुरानी है लेकिन प्राइवेट नौकरी करने वाले ज्यादातर लोगों को इस स्कीम के बारे में जानकारी नहीं है।
अभी मौत पर कितनी मिलती है आर्थिक सहायता?
Employees’ Deposit Linked Insurance (EDLI) स्कीम में अभी ईपीएफओ मेंबर की मौत पर उसके परिवार के सदस्य को न्यूनतम 2.5 से अधिकतम 7 लाख रुपये की आर्थिक सहायता मिलती है। 2021 से पहले आर्थिक सहायता 1.5 लाख से 6 लाख रुपये के बीच थी। 2021 में इसे बढ़ा दिया गया था। इस स्कीम की अवधि तीन साल के लिए बढ़ाई गई थी, जो 27 अप्रैल, 2024 को खत्म हो रही थी। लेकिन, सरकार ने इस बेनेफिट को अगले आदेश तक बढ़ाने का फैसला किया था। इसका मतलब है कि यह स्कीम अनिश्चित काल तक जारी रहेगी और इस मामले में सरकार के किसी तरह की अधिसूचना जारी करने की जरूरत नहीं है।
पिछले महीने ईपीएफओ ने स्कीम में किए हैं क्या बदलाव?
पिछले महीने EPFO ने EDLI स्कीम में कुछ बदलाव का ऐलान किया था। केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया की अगुवाई में ईपीएफओ के सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज (CBT) की बैठक में इस स्कीम के नियमों में बदलाव के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। इसमें कहा गया था कि अगर नौकरी शुरू करने के पहले साल में एंप्लॉयी की मौत हो जाती है तो उसे ईडीएलआई स्कीम के तहत कम से कम 50,000 रुपये की आर्थिक सहायता मिलेगी। ईपीएफओ ने कहा था कि नियम में इस बदलाव से 5,000 से ज्यादा परिवारों को फायदा होगा।
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नियमों में बदलाव से क्या फायदें होंगे?
EDLI स्कीम के नए नियम के मुताबिक, अगर ईपीएफ में पहले कंट्रिब्यूशन के छह महीने के अंदर एंप्लॉयी की मौत हो जाती है तो उसका परिवार ईडीएलआई के बेनेफिट का हकदार होगा। शर्त यह है कि उसका नाम पेरोल से खत्म नहीं किया गया हो। नियम में इस बदलाव से हजारों परिवार को फायदा होने का अनुमान जताया गया था, क्योंकि हर साल ऐसे करीब 14,000 मामले आते हैं। इससे पहले दो नौकरी के बीच थोड़ा भी गैप (समय के मामले में) होने पर ईडीएलआई स्कीम का बेनेफिट एंप्लॉयीज को नहीं मिलता था। नए नियम के मुताबिक, नौकरी में दो महीने तक के गैप को कंटिन्यूअस सर्विस माना जाएगा।