रिटायरमेंट, चाइल्ड एजुकेशन या फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस जैसी लॉन्ग टर्म प्लानिंग में हम अक्सर कुछ डेटा दिमाग में रखते हैं। इनमें इक्विटी से रिटर्न, इनफ्लेशन, लाइफ एक्सपेक्टेंसी और इनकम में इजाफा शामिल होता है। ज्यादातर लोग इक्विटी से सालाना 12 फीसदी रिटर्न का अंदाजा लगाते हैं। इनफ्लेशन 6 फीसदी मानकर चलते हैं। लाइफ एक्सपेक्टेंसी 85 साल और सालाना इनकम ग्रोथ का 10 फीसदी अनुमान लगाते हैं।
इसमे दिक्कत यह है कि हम इसे सिर्फ अनुमान नहीं मानते हैं, बल्कि इसे निश्चित मान लेते हैं। हकीकत में इनफ्लेशन का रेट एक समान नहीं होता। मार्केट्स से हमेशा अच्छे रिटर्न की उम्मीद नहीं की जा सकती। इनकम में इजाफा अक्सर हमारे अनुमान के मुताबिक नहीं होता है। लाइफ एक्सपेक्टेंसी की बात की जाए तो हम इसे अक्सर ज्यादा महत्व नहीं देते।
अगर इनमें से किसी डेटा को लेकर अनुमान गलत होता है तो उसका असर कई दशकों तक पड़ता है। यह असर कंपाउंडिंग के रूप में होता है। हमें काफी बाद में जाकर इसके बारे में पता चलता है। इससे यह साबित होता है कि फाइनेंशियल प्लानिंग में सबसे बड़ा रिस्क मार्केट में उतार-चढ़ाव नहीं है बल्कि हमारा गलत अनुमान है।
अगर इनफ्लेशन की बात की जाए तो छोटी अवधि में हमें यह ज्यादा अहम नहीं लगता है। लेकिन लंबी अवधि में इसका व्यापक असर पड़ता है। इसमें 2-3 फीसदी के फर्क से पूरा नतीजा बदल जाता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए आपका मंथली खर्च 70,000 रुपये है। 4 फीसदी इनफ्लेशन से 70,000 का मंथली खर्च 20 साल बाद बढ़कर 1.53 लाख रुपये हो जाएगा।
अगर इनफ्लेशन 6 फीसदी रहता है तो मंथली खर्च बढ़कर 2.24 लाख रुपये हो जाता है। यह प्रति माह करीब 70,000 रुपये एक्स्ट्रा है। एतिहासिक रूप से इंडिया में रिटेल इनफ्लेशन औसतन करीब 6 फीसदी रहा है। लेकिन, इसमें उतार-चढ़ाव होता रहा है। इसका मतलब है कि फाइनेंशियल प्लानिंग में इनफ्लेशन का सही अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है।
इक्विटीज का रिटर्न लॉन्ग टर्म में अच्छा रहता है। उदाहरण के लिए निफ्टी 50 टीआरआई का 10 साल का औसत रोलिंग रिटर्न 11.88 फीसदी रहा है। औसत रिटर्न अनुमान लगाने के लिए ठीक है, लेकिन निवेश के पूरे समय में पूरे पोर्टफोलियो का शेयरों में निवेश कम ही होता है। गोल्स के नजदीक आने पर एसेट ऐलोकेशन ज्यादा कंजरवेटिव हो जाता है। इसलिए पीक हिस्टोरिकल एवरेज की जगह 11-12 फीसदी रिटर्न का अनुमान ज्यादा सही लगता है।
रिटायरमेंट के लिए की गई सेविंग्स कब तक चलेगी, यह व्यक्ति की लाइफ एक्सपेक्टेंसी पर निर्भर करता है। अगर लाइफ एक्सपेक्टेंसी 80 साल है तो इसका मतलब है कि रिटायरमेंट के बाद 20 साल तक के खर्च के लिए 4.33 करोड़ रुपये का कॉर्पस होना चाहिए। इसके लिए मंथली 23,085 निवेश जरूरी होगा।
लाइफ एक्सपेक्टेंसी 25 साल होने पर रिटायरमेंट के बाद 25 साल तक के खर्च के लिए 5.19 करोड़ का कॉर्पस चाहिए। इसके लिए मंथली 27,629 रुयये का निवेश करना होगा। लाइफ एक्सपेक्टेंसी 90 साल है तो रिटायरमेंट के बाद 30 साल के खर्च के लिए 5.96 करोड़ रुपये का कॉर्पस चाहिए। इसके लिए मंथली निवेश 31,767 रुपये करना होगा।
इनकम में ग्रोथ का असर सेविंग्स पर पड़ता है। इनकम की ग्रोथ एकसमान नहीं होती है। करियर में बदलाव, इंडस्ट्री की स्थितियों और पर्सनल चॉइस का असर इस पर पड़ता है। ज्यादातर प्लान में इनकम में सालाना 10 फीसदी ग्रोथ का अनुमान लगाया जाता है। लेकिन, असल ग्रोथ इससे कम या ज्यादा हो सकती है। हालांकि, पिछले इंक्रीमेंट्स और जॉब में बदलाव के आधार पर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इनकम ग्रोथ का अंदाजा लगाने में थोड़ा कंजरवेटिव होना सही रहेगा।