जीएसटी काउंसिल ने लाइफ इंश्योरेंस और हेल्थ इंश्योरेंस पर जीएसटी पूरी तरह खत्म कर दिया है। अभी दोनों तरह की पॉलिसीज के प्रीमिमय पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है। इस खबर के बाद पॉलिसीहोल्डर्स के मन में सबसे बड़ा सवाल यह चल रहा है कि जीएसटी खत्म होने के बाद उनका प्रीमियम कितना कम हो जाएगा?
इंश्योरेंस कंपनियां अब ITC क्लेम नहीं कर सकेंगी
इंश्योरेंस कंपनियों का कहना है कि GST 2.0 लागू होने के बाद वे Input Tax Credit (ITC) क्लेम नहीं कर सकेंगी। आसान शब्दों में इसका मतलब है कि इंश्योरेंस कंपनियां अपने कामकाज से जुड़े खर्च पर जो जीएसटी चुकाती हैं, उस पर वह इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम नहीं कर सकेंगी। इस वजह से उनकी कॉस्ट बढ़ जाएगी।
नुकसान से बचने के लिए प्रीमियम बढ़ाना पड़ सकता है
ब्रोकरेज फर्मों का कहना है कि आईटीसी क्लेम नहीं करने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए इंश्योरेंस कंपनियों को प्रीमियम बढ़ाना पड़ सकता है। विदेशी ब्रोकरेज फर्म CLSA का मानना है कि इंश्योरेंस कंपनियां बेस प्रीमियम 1-4 फीसदी तक बढ़ा सकती हैं। प्रीमियम बढ़ने का मतलब है कि पॉलिसीहोल्डर्स को जीएसटी में होने वाली कमी का पूरा फायदा नहीं मिलेगा। यह पॉलिसीहोल्डर्स के बुरी खबर है। इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम पर जीएसटी हटने से उन्हें प्रीमियम में बड़ी कमी आने की उम्मीद थी।
बीमा कंपनियों को आईटीसी पर तस्वीर साफ होने का इंतजार
HDFC Ergo General Insurance के एमडी और सीईओ अनुज गुप्ता ने कहा, "यह अनुमान लगाया जा रहा है कि टैक्स खत्म होने से पॉलिसीज के प्रीमियम घट जाएंगे। लेकिन प्रीमियम कितना कम होगा इस बारे में इनपुट टैक्स क्रेडिट को लेकर तस्वीर साफ होने के बाद ही बताया जा सकता है। अगले कुछ दिनों में इस बारे में तस्वीर साफ हो जाने की उम्मीद है।" इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम नहीं करने से इंश्योरेंस कंपनियों को नुकसान होगा। इसलिए इंश्योरेंस कंपनियां आईटीसी के फायदे के बगैर जीएसटी हटाने के प्रस्ताव के खिलाफ थीं।
पुरानी पॉलिसीज का प्रीमियम बढ़ाना मुश्किल
IRDAI के पूर्व सदस्य निलेश साठे ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट में कहा है, "आईटीसी क्लेम नहीं करने से इंश्योरेंस कंपनियों को नई सेल्स में रेवेन्यू का करीब 3 फीसदी नुकसान होगा। लेकिन, बड़ा नुकसान उन्हें पहले इश्यू की गई पॉलिसीज पर उठाना होगा। इसकी वजह यह है कि इंश्योरेंस कंपनियां इस वजह से पुरानी पॉलिसीज का प्रीमियम नहीं बढ़ा सकती कि अब ITC उपलब्ध नहीं है।" कुछ इंश्योरेंस कंपनियां इस नुकसान का बोझ खुद उठा सकती हैं, जबिक कुछ नई पॉलिसी का प्रीमियम बढ़ाकर इस लॉस की भरपाई करने की कोशिश करेंगी।
बीमा कंपनी के सामने दो विकल्प
जीएसटी हटने से पॉलिसीहोल्डर्स को प्रीमियम के मामले में कितना फायदा होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगी कि संबंधित कंपनी आईटीसी उपलब्ध नहीं होने से होने वाले नुकसान को खुद बर्दाश्त करती हैं या इसका बोझ पॉलिसीहोल्डर्स पर डालती हैं। लेकिन, यह तय है कि जीएसटी हटने से उन्हें अपनी पॉलिसी पर पहले से कम प्रीमियम चुकाना होगा। चार्टर्ड अकाउंटेंट नितेश बुद्धदेब ने कहा कि पॉलिसीहोल्डर्स को अब कम प्रीमियम चुकाना होगा, लेकिन उनका प्रीमियम 18 फीसदी तक कम नहीं होगा।
ऐसे समझ सकते हैं पूरा मामला
इस पूरे मामले को हम एक उदाहरण की मदद से समझ सकते हैं। मान लीजिए आपकी पॉलिसी का बेस प्रीमियम 20,000 रुपये है। 18 फीसदी जीएसटी की वजह से फाइनल प्रीमियम 23,600 हो जाता है। इंश्योरेंस कंपनी का ऑपरेशन पर होने वाला खर्च 5,000 रुपये है। इस पर वह 900 रुपये का जीएसटी चुकाती है। अभी इंश्योरेंस कंपनियां इस 900 रुपये पर ITC क्लेम करती थीं। इंश्योरेंस पॉलिसीज पर जीएसटी खत्म होने के बाद इंश्योरेंस कंपनी इस 900 रुपये पर आईटीसी क्लेम नहीं कर सकेगी। इससे पॉलिसी का बेस प्रीमियम बढ़कर 20,900 रुपये हो जाएगा। इसका मतलब है कि जीएसटी हटने की वजह से पॉलिसीहोल्डर को कुल 3,600 रुपये के फायदे की जगह 2,700 रुपये का फायदा होगा।