Home Loan: मौजूदा बैंक के पास रुकें, या स्विच करें? जानिए कैसे सस्ता होगा आपका होम लोन
Home Loan: RBI की लगातार रेपो रेट कटौती के बाद होम लोन सस्ते हो रहे हैं। लेकिन असली सवाल है, क्या मौजूदा बैंक के साथ रहना फायदेमंद है या नए लेंडर के पास जाना? एक्सपर्ट से जानिए कैसे लें सही फैसला।
Home Loan: मौजूदा लेंडर से रीनेगोशिएशन का असर क्रेडिट स्कोर पर नहीं होता।
Home Loan: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने साल 2025 में लगातार रेपो रेट में कटौती की है। अधिकतर बैंकों ने इसका फायदा ग्राहकों को ट्रांसफर भी किया है। इस बदलाव से लाखों होम लोन ग्राहकों के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या उन्हें कम ब्याज दर का फायदा लेने के लिए लोन शिफ्ट करना चाहिए? और अगर हां, तो यह कदम मौजूदा लेंडर के साथ उठाना सही रहेगा या नए लेंडर के पास जाना बेहतर होगा?
दो रास्ते: रीनेगोशिएशन और रीफाइनेंसिंग
फाइनेंशियल प्लानिंग फर्म- हम फौजी इनिशिएटिव्स के सीईओ कर्नल संजीव गोविला (रिटायर्ड) का कहना है कि होम लोन पर कम ब्याज दर पाने के दो तरीके हैं। पहला- मौजूदा लेंडर से ब्याज दर पर दोबार बातचीत। यह विकल्प अपेक्षाकृत आसान, कम कागजी कार्यवाही वाला और समय बचाने वाला होता है।
हालांकि, यह पूरी तरह मुफ्त नहीं है। बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां (NBFC) आमतौर पर बकाया लोन राशि का 0.25%-0.5% या निश्चित प्रोसेसिंग शुल्क लेते हैं।
दूसरा विकल्प है- रीफाइनेंसिंग या बैलेंस ट्रांसफर। इसमें लोन को पूरी तरह किसी नए लेंडर के पास शिफ्ट किया जाता है जो कम ब्याज दर दे रहा हो। इसमें संभावित बचत ज्यादा हो सकती है, लेकिन प्रक्रिया लंबी होती है और प्रॉपर्टी का दोबारा मूल्यांकन, कानूनी व तकनीकी जांच और अतिरिक्त शुल्क देना पड़ सकता है।
कब कौन-सा विकल्प चुनें?
कर्नल संजीव का कहना है कि अगर ब्याज दर का फर्क मामूली है (0.25%–0.5%), मौजूदा लेंडर के कन्वर्जन चार्ज उचित हैं, टेन्योर कम बचा है और सुविधा आपके लिए अहम है तो रीनेगोशिएशन बेहतर है।
लेकिन, अगर ब्याज दर का फर्क बड़ा है (0.75% या अधिक), आप लोन के शुरुआती या मध्य चरण में हैं, मौजूदा लेंडर दर घटाने को तैयार नहीं है और बचत लागत से कहीं अधिक है तो रीफाइनेंसिंग फायदेमंद है।
आंकड़ों से तय करें फायदा
कर्नल संजीव आखिरी फैसला लेने से पहले कैलकुलेशन का सहारा लेने का सुझाव देते हैं। उनका कहना है कि ग्राहक को नीचे दिए फॉर्मूले से कैलकुलेशन करें।
(मासिक बचत × शेष टेन्योर के महीने) – स्विचिंग लागत = शुद्ध लाभ
अगर लागत से शुद्ध बचत 15–20% अधिक है, तो कदम वित्तीय रूप से सही है। उदाहरण के तौर पर, 120 महीनों तक हर महीने ₹2,000 की बचत (₹2.4 लाख) और ₹25,000 की लागत होने पर शुद्ध लाभ ₹2.15 लाख रहेगा।
होम लोन के स्टेज की अहमियत
शुरुआती वर्षों में EMI का अधिकांश हिस्सा ब्याज पर जाता है, इस समय दर घटाने से अधिकतम लाभ मिलता है। वहीं, मध्य चरण में ब्याज दर का बड़ा अंतर होने पर यह फायदेमंद रह सकता है। अंतिम वर्षों में EMI का बड़ा हिस्सा प्रिंसिपल पर होता है, इसलिए दर घटाने का लाभ सीमित होता है।
EMI घटाएं या टेन्योर कम करें?
कर्नल संजीव का कहना है कि अगर मासिक कैश फ्लो अहम है, तो EMI घटाएं। अगर जल्दी कर्ज-मुक्त होना चाहते हैं, तो टेन्योर घटाएं। इससे ब्याज में बड़ी बचत होगी। संतुलित लाभ के लिए EMI और टेन्योर दोनों में थोड़ा-थोड़ा बदलाव कराना सही रहेगा।
क्रेडिट स्कोर पर असर
मौजूदा लेंडर से रीनेगोशिएशन का असर क्रेडिट स्कोर पर नहीं होता। रीफाइनेंसिंग में एक-दो बार क्रेडिट चेक होता है, जो सामान्य है। लेकिन एक साथ कई लेंडर्स को अप्लाई करने से बचें। इसका क्रेडिट स्कोर पर बुरा असर हो सकता है।
फिक्स्ड बनाम फ्लोटिंग रेट
फिलहाल फ्लोटिंग रेट लोकप्रिय हैं क्योंकि RBI के फैसलों का असर इनमें जल्दी दिखता है। महंगाई नियंत्रण में रही तो ये दरें कुछ समय तक नरम रह सकती हैं। वहीं, फिक्स्ड रेट स्थिरता देते हैं और रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके या सीमित बजट वालों के लिए बेहतर विकल्प हो सकते हैं।
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