अक्सर ये देखने को मिलता है कि होमाबायर्स को फ्लैट मिल जाता है लेकिन बिल्डर्स फ्लैट में खराब क्वालिटी का माल इस्तेमाल करते हैं। दीवारों का सीमेंट झड़ा रहा होता है या घर में सीलन होती है। आपको बता दें कि घर का कब्जा मिलने के बाद भी बायर्स बिल्डर्स के खिलाफ शिकायत कर सकते हैं। बिल्डर को खराब क्वालिटी के लिए मुआवजा देना होगा। कुछ ऐसा ही दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में रहने वाली एक महिला मधुबाला के साथ हुआ। उन्होंने अपने दिवंगत पति के नाम पर आवंटित फ्लैट को लेकर एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। यह कहानी सिर्फ उनके संघर्ष की नहीं है, बल्कि उन तमाम घर खरीदारों की है, जो बिल्डरों की लापरवाही और सर्विस में कमी के कारण मुश्किलों का सामना करते हैं।
फ्लैट की बुरी हालत के लिए की शिकायत
1996 में मधुबाला के पति के नाम पर एक फ्लैट आवंटित हुआ था। लेकिन पति के निधन के बाद फ्लैट का कब्जा पाने के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ा। जब आखिरकार 2019 में उन्होंने फ्लैट का कब्जा लिया, तो वह बुरी हालत में था—जर्जर दीवारें, खराब निर्माण और भारी मरम्मत की जरूरत। अपनी बचत से उन्होंने फ्लैट की मरम्मत करवाई, लेकिन इससे उन्हें बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। इस नुकसान की भरपाई के लिए उन्होंने 20 लाख रुपये का मुआवजा मांगते हुए 2020 में जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई।
दावा खारिज और उम्मीद की किरण
दुर्भाग्य से जिला उपभोक्ता आयोग ने उनकी शिकायत यह कहते हुए खारिज कर दी कि फ्लैट का कब्जा लेने के बाद वह अब उपभोक्ता नहीं रहीं। यह फैसला मधुबाला के लिए झटका था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की।
राज्य उपभोक्ता आयोग की चेयरपर्सन न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल और न्यायिक सदस्य पिंकी की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति सर्विस में कमी के लिए मुआवजा मांग सकता है, चाहे उसने संपत्ति का कब्जा ले लिया हो या नहीं। राज्य आयोग ने कहा कि बिल्डरों और डेवेलपर्स की जिम्मेदारी है कि वे उपभोक्ताओं को क्वालिटी सर्विस दें। कब्जा लेने या रजिस्ट्री पूरी होने के बाद भी अगर सर्विस में कमी पाई जाती है, तो मुआवजे का अधिकार बनता है।
राज्य आयोग ने जिला आयोग के फैसले को गलत ठहराते हुए उसे कैंसिल कर दिया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए जिला आयोग को लौटा दिया। मधुबाला का संघर्ष और राज्य आयोग का फैसला सभी घर खरीदारों के लिए एक मजबूत संदेश है। यह फैसला न केवल बिल्डरों को उनकी जिम्मेदारियों का एहसास कराएगा बल्कि ग्राहकों को यह भरोसा भी देगा कि न्याय मिल सकता है। मधुबाला की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहता है। यह फैसला इस बात की तरफ इशारा करता है कि कानूनी प्रक्रिया के जरिए अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है।