ITR Filing: सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स (CBDT) ने फाइनेंशियल ईयर 2024-25 (असेसमेंट ईयर 2025-26) के लिए टैक्स ऑडिट रिपोर्ट दाखिल करने की आखिरी तारीख 30 सितंबर से बढ़ाकर अब 31 अक्टूबर कर दी है। इस फैसले से बिजनेस और प्रोफेशनल्स को थोड़ी राहत मिली है। हालांकि, अगर नई तारीख तक भी रिपोर्ट फाइल नहीं हुई तो जुर्माना और कानूनी दिक्कतें झेलनी पड़ सकती हैं।
डेलॉइट इंडिया के पार्टनर अमित बाबलानी के मुताबिक इस बार टैक्स ऑडिट में दिक्कतें ज्यादा आईं। एक तरफ टाइमलाइन काफी कम थी, वहीं दूसरी तरफ कई और कॉम्प्लायंस की जिम्मेदारियां भी साथ में थीं। इसके अलावा ई-फाइलिंग पोर्टल पर बार-बार तकनीकी दिक्कतें आ रही थीं।
उत्तर भारत के कुछ राज्यों में बाढ़ जैसे हालात ने भी टैक्सपेयर और ऑडिटर्स के लिए मुश्किल खड़ी की। यही कारण रहा कि ICAI और इंडस्ट्री बॉडीज ने CBDT से राहत की मांग की, जिसके बाद डेडलाइन बढ़ाई गई।
टैक्स ऑडिट का मतलब है कि किसी बिजनेस या प्रोफेशन के अकाउंट्स की जांच ताकि यह तय हो सके कि इनकम टैक्स कानूनों का पालन हुआ है या नहीं। यह ऑडिट कंपनी एक्ट या कॉस्ट ऑडिट से अलग होता है। इसमें घोषित आय की सही जांच होती है। ये देखा जाता है कि सभी रिकॉर्ड्स का ठीक से मेंटेन हैं। इसके जरिये टैक्स चोरी भी रोकी जाती है।
टैक्स ऑडिट रिपोर्ट कैसे फाइल होती है?
चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) अपनी लॉगिन डिटेल्स से ऑनलाइन रिपोर्ट अपलोड करते हैं। इसके बाद टैक्सपेयर को अपने पोर्टल से रिपोर्ट को Accept या Reject करना होता है। अगर रिजेक्ट हो जाए तो CA को फिर से रिपोर्ट फाइल करनी पड़ती है।
अगर समय पर टैक्स ऑडिट फाइल नहीं किया गया, तो इनकम टैक्स एक्ट की धारा 271B के तहत जुर्माना लग सकता है। यह जुर्माना कुल टर्नओवर या ग्रॉस रिसीट्स का 0.5% या अधिकतम 1,50,000 रुपये हो सकता है। हालांकि, अगर देरी का कारण वाजिब हो तो पेनाल्टी नहीं लगती। जैसे प्राकृतिक आपदा, ऑडिटर का इस्तीफा, हड़ताल, अकाउंट्स का न मिलना या जिम्मेदार पार्टनर की अचानक मौत।
क्यों जरूरी है समय पर फाइलिंग?
बाबलानी के मुताबिक नियमों और डेडलाइन को समझकर चलना बेहद जरूरी है। समय पर फाइलिंग से पेनाल्टी, टैक्स की एक्स्ट्रा लाएबिलिटी और कानूनी झंझटों से बचा जा सकता है।