पिछले कुछ सालों में स्टॉक्स के फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (एफएंडओ) में इनवेस्टर्स की दिलचस्पी बढ़ी है। ऐसे लोगों को एफएंडओ पर टैक्स के नियमों को ठीक तरह से समझना जरूरी है। टैक्स के लिहाज से एफएंडओ ट्रेडिंग से हुए प्रॉफिट या लॉस को बिजनेस या प्रोफेशन से हुआ प्रॉफिट माना जाता है। इनकम टैक्स एक्ट में बिजनेस इनकम को स्पेकुलेटिव या नॉन-स्पेकुलेटिव माना जाता है।
F&O प्रॉफिट पर स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है
Income Tax Act के सेक्शन 43(5) में डेरिवेटिव ट्रांजेक्शंस को स्पेकुलेटिव इनकम के दायरे में नहीं रखा गया है। इस वजह से F&O से होने वाले प्रॉफिट या लॉस को नॉन-स्पेकुलेटिव बिजनेस इनकम माना जाता है भले ही इसमें डिलीवरी (शेयरों की) नहीं होती है। इसका मतलब है कि F&O से हुए लॉस को किसी दूसरे सामान्य बिजनेस इनकम के साथ सेट-ऑफ किया जा सकता है। एफएंडओ इनकम पर टैक्सपेयर्स के स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है।
टर्नओवर लिमिट से ज्यादा होने पर ऑडिट जरूरी
अकाउंट का टैक्स ऑडिट कराना होगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि एफएंडओ का टर्नओवर कितना है। टर्नओवर के तय लिमिट से ज्यादा हो जाने पर टैक्स ऑडिट जरूरी हो जाता है। इसके लिए 1 करोड़ रुपये की लिमिट तय है। लेकिन, अगर 95 फीसदी से ज्यादा बिजनेस ट्रांजेक्शन डिजिटल हैं तो यह लिमिट बढ़कर 10 फीसदी हो जाती है। टैक्स ऑडिट की डेडलाइन 30 सितंबर है। इस डेडलाइन के मिस करने पर टैक्सपेयर को टर्नओवर का 0.5 फीसदी या 1.5 लाख रुपये से में से जो कम होगा वह चुकाना पड़ेगा।
एफएंडओ में लॉस हुआ है तो ऑडिट जरूरी नहीं
एफएंडओ में अगर लॉस हुआ है तो टैक्स ऑडिट की जरूरत नहीं पड़ेगी। चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रतिभा गोयल ने इस बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है, "एफएंडओ में लॉस होने का मतलब यह नहीं है कि टैक्स ऑडिट जरूरी हो जाएगा।" लेकिन, इस बारे में एक अपवाद है। अगर आपने सेक्शन 44एडी के तहत प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन स्कीम को सेलेक्ट किया है और अब आप लॉस दिखाना चाहते हैं यानी आप 44एडी से बाहर निकलना चाहते हैं तो आपके लिए टैक्स ऑडिट अनिवार्य हो जाएगा।
सेक्शन 44एडी की स्कीम में टैक्स
सेक्शन 44एडी रजिडेंट इंडिविजुअल्स, HUF या पार्टनरशि फर्मों पर लागू होता है। इसके तहत 2 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाले टैक्सपेयर्स प्रिजम्प्टिव बेसिस पर इनकम डिक्लेयर कर सकते हैं। यह टर्नओवर का 8 फीसदी होगा। अगर टर्नओवर 3 करोड़ रुपये तक है और डिजिटल मोड से रिसीट 5 फीसदी से ज्यादा नहीं है तो यह टर्नओवर का 6 फीसदी होगा।
सेक्शन 44एडी की स्कीम में ऑडिट
टैक्सपेयर अगर एक बार सेक्शन 44एडी को सेलेक्ट करता है तो उसे कम से कम 5 साल के लिए इसमें बने रहना होता है। अगर वह पांच साल पूरे हुए बगैर इससे बाहर निकलता है तो अगले पांच साल तक दोबारा इस स्कीम का फायदा नहीं उठा सकता। चार्टर्ड अकाउंटेंट और टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन ने कहा, "सेक्शन 44एडी को सेलेक्ट करना वाला कोई एसेसी अगर बाद में यह दावा करता है कि उसका प्रॉफिट तय फीसदी से कम है तो उसे बुक्स ऑफ अकाउंट मेंटेन करना होगा और उसका ऑडिट कराना होगा। शर्त यह है कि उसकी टोटल इनकम बेसिक एंग्जेम्प्शन लिमिट से ज्यादा होनी चाहिए। "